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महावीर-वाणी
भाग : 1
संक्षिप्त कथा हैं। फिर वही दोहरता चला जाता है।
यह बड़ी मजे की बात है, इस पर थोड़ा सोचना जरूरी है कि आदत कितनी अदभूत है। आप अपनी मां को प्रेम करते हैं, सभी बच्चे करते हैं। लेकिन आपने कभी खयाल न किया होगा कि मां का प्रेम भी वैज्ञानिक अर्थों में सिर्फ आदत है। इस पर लारेंज ने बहुत काम किया। और लारेंज ने सब्स्टीट्यूट मदर्स, परिपूरक माताओं के प्रयोग किये।
जैसे एक बत्तख का बच्चा पैदा हुआ, तो बत्तख का बच्चा पैदा होता है, तो बत्तख ही उसे सबसे पहले मिलती है। मुर्गी का बच्चा पैदा होता है, तो मुर्गी ही उसे सबसे पहले मिलती है। स्वभावतः, आदमी का बच्चा पैदा होता है, तो पहला दर्शन और पहला अनुभव मां का होता है। __ लारेंज ने ऐसे प्रयोग किये कि मुर्गी का बच्चा पैदा हो, तो मुर्गी का उसे अनुभव न हो पाये। मुर्गी छिपा ली जाये। मुर्गी की जगह उसने एक रबर का फुग्गा फुलाकर रख दिया। बच्चे को पहला जो दर्शन हुआ बच्चे को, जो पहला अनुभव हुआ, वह पहला अनुभव
अंतिम अनुभव है। पहला अनुभव सबसे गहन अनुभव है। क्योंकि सबसे पहली आदत है। फिर सब कुछ उसके ऊपर निर्मित होगा।
उस बच्चे ने रबर का फुग्गा देखा। वह रबर के फुग्गे के प्रति वैसा ही आसक्त हो गया जैसा मां के प्रति । इसके बाद रबर का फुग्गा हवा में उड़ाया जाये तो बच्चा उसके पीछे दौड़े, लेकिन मां पास हो तो उसकी तरफ ध्यान भी न दे। मां व्यर्थ हो गयी, क्योंकि वह आदत न बन पायी। यह रबर का फुग्गा सार्थक हो गया, यह मां बन गया।
लारेंज कहता है, कि मां का कोई अर्थ नहीं। वह पहली आदत है। लेकिन और बड़े अनुभव हुए। यह जो मुर्गी का बच्चा रबर के गुब्बारे के पास बड़ा हुआ, इसको खाना, इसको पीना, सब यांत्रिक विधि से दिया गया, इसकी मां से नहीं। इसका मां से कोई संबंध नहीं जोड़ा गया। एक बड़ी हैरानी की बात हुई कि इस बच्चे के मन में मादाओं के प्रति कोई रस पैदा नहीं हुआ। वह मुर्गियों में उत्सुक नहीं रहा, उसके जीवन में सेक्स सूख गया ।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जिस बच्चे को मां से पहला संपर्क न हो, जीवन में स्त्री से उसके गहरे संबंध न हो पायेंगे। मां ही पहली आदत है। और इसलिए हर आदमी अपनी पत्नी में मां को खोजता रहता है, जाने अनजाने, चेतन अचेतन में मां को खोजता रहता है।
और बड़ी कठिनाई यह है कि मां दुबारा मिल नहीं सकती पत्नी में। इसलिए पत्नी से कभी चैन और शांति मिल नहीं सकती। मां पत्नी हो नहीं सकती, और कोई पत्नी मां बनने को राजी नहीं, और कठिनाई तो यह है कि यह अचेतन आकांक्षा है। इसलिए अगर कोई पत्नी मां बनने को राजी हो तो भी पति को दुख होगा।
पुरुषों का इतना आकर्षण स्त्रियों के स्तन में, मां के संबंध में बनी पहली आदत का परिणाम है, और कुछ भी नहीं है। मां से पहली आदत बनी, दूसरी आदत स्तन से बनी। इसलिए पुरुष स्त्री के स्तन में इतने आतुर हैं, इतने उत्सुक हैं।
चित्रकार, मुर्तिकार. फिल्में, वे सब स्त्री के स्तन के आस पास चली जाती हैं। कहानियां, कविताएं रोमांस. वे सब स्त्री के स्तन के आस पास निर्मित होता चला जाता है। उससे कुछ और पता नहीं चलता सिर्फ इतना ही पता चलता है, जैसे मुर्गी रबर के गुब्बारे के पास आसक्त हो गयी, बच्चा स्तन के प्रति आसक्त हो गया। और बूढ़ा भी मुक्त नहीं हो पाता उस आदत से। बूढ़ा भी मुक्त नहीं हो पाता स्तन की आदत से। वह रस कायम ही रहता है, वह रस बना ही रहता है ___अगर आदतें इतनी महत्वपूर्ण हैं, तो महावीर कहते हैं, जिस अनुभव से छूटना हो उस अनुभव में न उतरना ही उचित है। उतर जाने के बाद छूटना रोज-रोज मुश्किल होता चला जायेगा।
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