________________
काम वासना है दूसरे की खोज
महावीर कहते हैं, जिसका अनुभव कर लिया जाये, अनुभव आदत का निर्माता हो जाता है..., और आदमी जीता है आदत से 1 आप चौबीस घंटे जो करते हैं, वह सिर्फ आदत है। जरूरी नहीं है कि करने के लिए कोई अंतःप्रेरणा रही हो। ठीक वक्त रोज भोजन करते हैं, उस वक्त शरीर कहता है, भूख लगी है। जरूरी नहीं है कि भूख लगी हो । और घड़ी अगर बदलकर रख दी जाये, और आप एक बजे रोज भोजन लेते हैं और आपको पता न हो कि घड़ी धोखा दे रही है, अभी ग्यारह ही बजे हैं और घड़ी में एक बज गया, तो आपका पेट खबर देना शुरू करेगा कि भूख लग गयी है। मन को खबर हुई कि एक बज गया, कि आदत दोहरनी शुरू हो जायेगी।
T
आप जिस वक्त सोते हैं, अगर उसी वक्त न सो जायें तो नींद तिरोहित हो जाती है। अगर नींद वास्तविक थी और आप रोज बारह बजे रात सोते थे, तो एक बजे रात तक और भी तीव्रता से आनी चाहिए। लेकिन अगर बारह बजे नहीं सोये, एक बज गया, तो नींद आती ही नहीं। वह जो बारह बजे की नींद थी, आदतन थी, हैबिचुअल थी । वास्तविक नींद नहीं थी। अगर आपको एक बजे भूख लगती है और तीन बज गये, तो आप हैरान होंगे, भूख मर जाती है। बढ़नी चाहिए। अगर वास्तविक भूख है तो एक बजे वाली भूख तीन बजे और गहरी हो जानी चाहिए। लेकिन तीन बजे भूख मर जाती है। क्योंकि भूख आदतन थी।
सभ्य आदमी जितना सभ्य होता है, उतनी आदत से जीता है। न असली भूख रह जाती है, न असली नींद रह जाती है । तब आदमी का काम - अनुभव भी आदत हो जाता है। तब जरूरी नहीं कि भीतर कोई अंतःप्रेरणा हो । पति-पत्नी आदत हो जाते हैं। और आदत दोहरती चली जाती है।
एक बहुत बड़े विचारक डी. एच. लारेंस ने लिखा है कि विवाह अनुभव कम, आदत ज्यादा है। वही कमरा, वही बिस्तर, वही रंग-रोनक, वही पत्नी, वही समय - आदत डी. एच. लारेंस ने लिखा है कि एक बात मुझे इतनी कष्टकर है जितनी और कोई नहीं । रोज उसी बिस्तर पर सोना। उसने लिखा है कि मैं कहीं भी मरना पसंद करूंगा, बिस्तर पर नहीं। ऐसे आमतौर से निन्यानबे प्रतिशत लोग बिस्तर पर मरते हैं। क्योंकि आदमी बड़ा मजेदार है।
अगर आप हवाई जहाज में बैठे हैं, तो लोग कहते हैं कि मत बैठो। कभी-कभी लाख में एकाध आदमी हवाई जहाज में मरता है । घोड़े पर सवारी करें, तो लोग कहते हैं, मत करो। कभी-कभी हजार में एक आदमी घोड़े से गिरकर मर जाता है। लेकिन कोई आपसे नहीं कहता, बिस्तर पर मत सोओ, निन्यानबे प्रतिशत आदमी बिस्तर पर मरते हैं। अधिकतम दुर्घटनाएं बिस्तर पर घटती हैं। डी. एच. लारेंस ने कहा है, बिस्तर एक आदत है। और ठीक समय पर जैसे भूख लगती है और नींद आती है, ठीक समय पर काम की वृत्ति पैदा हो जाती है । और तब लोग आदतें दोहराते रहते हैं
1
महावीर कहते हैं, अनुभव आदत का निर्माण करता है और आदमी आदत से जीता है, होश से नहीं जीता। अगर होश से जीये तो तंत्र की बात ठीक हो सकती है। लेकिन आदमी जीता है आदत से, होश से नहीं जीता। इसलिए महावीर की बात में भी अर्थ है ।
महावीर कहते हैं, एक बार आदत बननी शुरू हो जाये तो फिर बनती चली जाती है। बीज को जमीन में मत डालो तो अंकुर नहीं निकलता। एक बार डाल दो तो फिर अंकुर निकलता चला जाता है और वृक्ष बन जाता है। और वृक्ष में हजार करोड़ बीज लग जाते हैं। लेकिन बीज को जमीन में मत डालो, रखा रहने दो तो अंकुर नहीं निकलता है। एक दफा अनुभव में गुजरो, बीज जमीन पकड़ लेता है। और फिर आदत का अंकुर बढ़ना शुरू हो जाता है। फिर वह बढ़ता चला जाता है। फिर वह बड़ा होता चला जाता है।
इसलिए महावीर ने बच्चों को भी दीक्षा का मार्ग खोला। बल्कि महावीर के हिसाब से बच्चे को ही दीक्षा देनी चाहिए। अब तो मनोवैज्ञानकि भी कहते हैं कि सात साल की उम्र के बाद आदमी में बदलाहट मुश्किल हो जाती है। तो अगर सात साल, प्राथमिक सात वर्ष एक ढंग के निर्मित कर दिये जायें तो आदमी फिर उन्हीं ढंगों में जीता चला जाता है। इसलिए पहले सात वर्ष पूरे सत्तर वर्ष की
Jain Education International
407
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org