SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 1 मार्ग विपरीत भी एक लक्ष्य पर पहुंचा सकते हैं। इस संबंध में थोड़ी बात समझ लें, फिर यह सूत्र समझना आसान होगा। तंत्र की मान्यता है कि काम-ऊर्जा का पूरा अनुभव जब तक न हो, तब तक काम-ऊर्जा को रूपांतरित नहीं किया जा सकता। काम-ऊर्जा का जितना गहन अनुभव हो सके, उतना ही काम के रस से मुक्ति हो जाती है। यह महावीर से बिलकुल उलटा सूत्र है। ___ इसे थोड़ा ठीक से समझ लें तो फिर महावीर का, जो बिलकुल विपरीत दृष्टिकोण है, वह समझना आसान हो जायेगा। कंट्रास्ट में, एक दूसरे को सामने रखकर देखना आसान हो जायेगा। तंत्र मानता है कि हम केवल उसी से मुक्त हो सकते हैं, जिसका हमें अनुभव हो। लेकिन क्यों? हम उसी से क्यों मुक्त हो सकते हैं, जिसका हमें अनुभव हो? तब तो इसका यह अर्थ होगा कि जिस दिन हमें मोक्ष का अनुभव होगा, हम मोक्ष से मुक्त हो जायेंगे। तब तो इसका यह अर्थ होगा, जिस दिन हमें आनंद का अनुभव होगा हम आनंद से मुक्त हो जायेंगे। तब तो इसका यह अर्थ होगा कि जिस दिन हम आत्मा का अनुभव कर लेंगे, उस दिन आत्मा व्यर्थ हो जायेगी। नहीं, तंत्र का कहना यह है, जिस अनुभव की पूरी प्रक्रिया से गुजरकर अगर मुक्ति न हो तो समझना कि वह अनुभव स्वभाव है। और जिस अनुभव से गुजरकर मुक्ति हो जाये, समझना कि वह परभाव है। ___ उस अनुभव से मुक्ति हो जाती है जिसमें पहले सुख मालूम पड़ता था और पीछे दुख मिलता है। उस अनुभव से मुक्ति हो जाती है जिसके ऊपर तो लिखा था अमृत, लेकिन खोल फाड़ने पर जहर मिलता है। उस अनुभव से मुक्ति हो जाती है जो व्यर्थ सिद्ध हो जाता इसलिए तंत्र कहता है, काम का पूरा अनुभव आवश्यक है, ताकि काम का रस विलीन हो जाये। क्योंकि काम का रस भ्रांत है। रस है नहीं, प्रतीत होता है। जो प्रतीत होता है, अगर पूरे अनुभव से गुजरा जाये तो विलीन हो जायेगा। रात के अंधेरे में मुझे एक रस्सी सांप मालूम पड़ती है। उससे मैं कितना ही भागूं वह मेरे लिए रस्सी न हो पायेगी, सांप ही बनी रहेगी। तंत्र कहता है, निकट जाऊं, प्रकाश को जला लूं, देख लूं, जान लूं, अनुभव में आ जाये कि रस्सी है; सांप नहीं है, तो भय विलीन हो जायेगा। कामवासना मालुम होती है स्वर्ग है। मालम होता है, कामवासना में गहरा आनंद है। अगर वस्तुतः आनंद है तो तंत्र कहता है, छोड़ना पागलपन है। अगर वस्तुतः आनंद नहीं है तो अनुभव से गुजरकर जान लेना जरूरी है कि रस्सी रस्सी है, सांप नहीं है। और जिस दिन यह दिखायी पड़ जायेगा कि अनुभव आनंदहीन है, न केवल आनंदहीन बल्कि दुख परिपूरित है, उस दिन उसे कौन पकड़ना चाहेगा? यह तंत्र की दृष्टि है। यह एक उपाय है। दूसरा एक उपाय है जो महावीर की दृष्टि है, जो योग की दृष्टि है। और ये दोनों बिलकुल विपरीत हैं, पोलर अपोजिट्स हैं। __ महावीर कहते हैं, जिसका अनुभव हो जाये, उससे छुटकारा मुश्किल है। महावीर कहते हैं, जिसका हम अनुभव करते हैं तो अनुभव की प्रक्रिया में आदत निर्मित होती है। जितना अनुभव करते हैं, उतनी आदत निर्मित होती है। और आदत का एक दुष्टचक्र है-आदत का एक दुष्टचक्र है। धीरे-धीरे यांत्रिक हो जाता है। एक अनुभव किया, दूसरा अनुभव किया, फिर यह अनुभव हमारे शरीर की, रोयें-रोयें की मांग बन जाती है। फिर इस अनुभव के बिना अच्छा नहीं लगता, और अनुभव से भी अच्छा नहीं लगता। अनुभव करते हैं तो लगता है कुछ भी न मिला, और अनुभव नहीं करते हैं तो लगता है कुछ खो रहा है। तो अनुभव करते हैं, पछताते हैं और तब फिर खाली जगह मालूम होने लगती है, फिर अनुभव करते हैं। 406 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy