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________________ हा काम-ऊर्जा, सेक्स एनर्जी, मनुष्य के पास एकमात्र ऊर्जा है। एक ही शक्ति है मनुष्य के पास, उस शक्ति को हम कोई भी नाम दें। वह शक्ति दो दिशाओं में गतिमान हो सकती है। काम-ऊर्जा किसी दूसरे के प्रति गतिमान हो, तो यौन बन जाती है, और काम-ऊर्जा स्वयं के प्रति गतिमान हो तो योग बन जाती है। ऊर्जा एक है, दिशाओं के भेद से सारा जीवन भिन्न हो जाता है। ___ पानी को हम गर्म करें सौ डिग्री तक तो भाप बन जाता है, हल्का हो जाता है, आकाश की तरफ उड़ने में सक्षम हो जाता है। पानी को हम ठंडा करें शून्य डिग्री के नीचे, पत्थर का बर्फ हो जाता है, भारी हो जाता है। जमीन की गुरुत्वाकर्षण की शक्ति उस पर वजनी हो जाती है। भाप भी पानी है, बर्फ भी पानी है - भाप आकाश की तरफ उड़ती है, बर्फ जमीन की तरफ गिर जाती है। ऊर्जा एक है, दिशाएं दो हैं। जिसे हम यौन कहते हैं, सेक्स कहते हैं, वह उसी एक्स, अज्ञात ऊर्जा का नीचे की तरफ प्रवाह है। शून्य डिग्री के नीचे बर्फ बन जाना है। तब जमीन का गुरुत्वाकर्षण उस पर सघन हो जाता है। वही ऊर्जा, वही एक्स, अज्ञात शक्ति ऊपर की तरफ उठनी शुरू हो जाये, सौ डिग्री के पार, परमात्मा की तरफ, भाप की तरह उठनी शुरू हो जाती है। जमीन का नीचे का खिंचाव समाप्त हो जाता है। शक्ति एक है, दिशाएं अलग हैं। तो पहली बात तो यह समझ लेनी जरूरी है कि शक्ति एक है। उसके उपयोग पर निर्भर करेगा कि वह आपको कहां ले जाये। दूसरी बात यह समझ लेनी जरूरी है कि शक्ति तटस्थ है। शक्ति स्वयं आपसे नहीं कहती कि क्या करें। शक्ति आपको हेतु नहीं देती, गति नहीं देती। शक्ति तटस्थ आपके भीतर मौजद है। आप ही जो करना चाहें उस शक्ति का उपयोग करते हैं, शक्ति आपसे कुछ भी नहीं करवाती। आप नीचे की ओर बहाना चाहें तो ऊर्जा नीचे की ओर बहेगी, ऊपर की ओर बहाना चाहें तो ऊपर की ओर बहेगी। निर्णायक आप हैं, शक्ति नहीं। शक्ति आपके हाथ में है। अगर नीचे ले जायेंगे तो नीचे के जो सुख-दुख हैं वे मिलेंगे। अगर ऊपर ले जायेंगे तो ऊपर के जो अनुभव हैं, वे मिलेंगे। तीसरी बात समझ लेनी जरूरी है कि इस शक्ति के रूपांतरण के दो उपाय हैं। एक उपाय का नाम है योग, एक उपाय का नाम है तंत्र। दोनों विपरीत हैं। दोनों उपाय जितने विपरीत हो सकते हैं उतने विपरीत हैं, लेकिन दोनों का लक्ष्य एक है। 405 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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