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महावीर-वाणी भाग : 1
और महावीर जो कह रहे हैं वह बिलकुल विपरीत है। उस विपरीतता में जो मौलिक बिंदु है, वह हम खयाल में ले लें तो फिर सूत्र समझ में आ जाये। __तंत्र कहता है, जिससे मुक्त होना है, उसमें जाओ। महावीर कहते हैं, जिससे मुक्त होना है, उसको छुओ ही मत। पहले कदम पर रुक जाओ। क्योंकि अंतिम कदम पर तुम रुक सकोगे, इसका भरोसा कम है।
कहता है, अगर शराब से मुक्त होना है तो शराब पीयो और होश को संभालो। शराब की मात्रा उतनी ही बढाते जाओ जितना होश बढ़ता जाये, लेकिन होश सदा ऊपर रहे और शराब कभी भी बेहोश न कर पाये।
और तांत्रिकों ने अदभुत प्रयोग किये। और ऐसे तांत्रिक हैं कि उनको कितना ही नशा पिला दो, बेहोश न कर पाओगे। बेहोशी न आये तो शराब पीयी भी और नहीं भी पीयी। शरीर में तो शराब गयी, और चेतना में शराब का कोई संस्पर्श न हुआ। तो तंत्र कहता है, चेतना को मुक्त करो, शराब को जाने दो शरीर में, लेकिन चेतना को अछूता रहने दो।
लंबी साधना की बात है। और सबके लिए शायद संभव भी नहीं, हालांकि सब करना चाहेंगे। लेकिन तंत्र का सूत्र पूरा करना कठिन है, क्योंकि तंत्र का सूत्र यह है कि होश न खो जाये, तो शराब पीयो। ___ महावीर कहते हैं, अगर होश खोता हो, तो बेहतर है, पीयो ही मत। लेकिन दोनों एक बात में राजी हैं कि होश नहीं खोना चाहिए। महावीर कहते हैं, पीयो ही मत, कहीं होश न खो जाये। तंत्र कहता है, पीयो और होश को बढ़ाओ।
यह सभी बातों के संबंध में है।
महावीर कहते हैं, मांस नहीं। तंत्र कहता है, मांस का भी प्रयोग किया जा सकता है। लेकिन तंत्र कहता है, चाहे सब्जी खाओ, चाहे मांस खाओ, भीतर मन में कोई भेद न पड़े। यह बहत कठिन बात है।
तंत्र कहता है कि अभेद को पाना है, अद्वैत को पाना है तो कोई भेद न पड़े। मांस खाओ तो, सब्जी लो तो, कोई भेद भीतर न पड़े। अगर भेद पड़ गया, तो मांस खाना खतरनाक हो गया। अगर भेद न पड़े भीतर कोई-जहर भी पिया या अमृत भी-भीतर कोई भेद न पड़े। भीतर अनासक्त मन बना रहे, दोनों बराबर मालूम पड़ें, तो तंत्र कहता है, तो फिर मांसाहार, मांसाहार नहीं है। ___ महावीर कहते हैं, यह कठिन है कि भेद न पड़े। जिनके जीवन में हर चीज में भेद है, वह कितना ही कहे कि सोना हमारे लिए मिट्टी है, फिर भी सोना सोना है और मिट्टी मिट्टी है। जिनके जीवन में हर चीज में भेद है, जो इंचभर बिना भेद के नहीं चलते, वह मदिरा और मांस लेकर पानी जैसे पी जायेंगे, इसकी आशा करनी कठिन है। तो महावीर कहते हैं, जहां से गिर जाने का डर हो वहां गति मत करो। इसलिए पूरी प्रक्रिया का रूप बदल जायेगा।
'जो मनुष्य काम और भोगों के रस को जानता है, उनका अनुभवी है, उसके लिए अब्रह्मचर्य त्याग कर ब्रह्मचर्य के महाव्रत को धारण करना अत्यंत दुष्कर है।' ___ आदत को तोड़ना अत्यंत दुष्कर है, और आप सब जानते हैं कि काम की आदत गहनतम आदत है। एक आदमी सिगरेट पीता है, उसे छोड़ना मश्किल है। हालांकि पीनेवाले सभी यह सोचते हैं कि जब चाहें, तब छोड़ दें। पीनेवाले कभी यह नहीं
अडिक्टेड हैं, या हम कोई उसके गलाम हो गये। ___ मुल्ला नसरुद्दीन को उसके डाक्टर ने कहा कि अब तुम शराब बंद कर दो, क्योंकि शराब से अडिक्शन पैदा होता है। आदमी गुलाम हो जाता है। मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा कि रहने दो, चालीस साल से पी रहा हूं, अभी तक अडिक्टेड नहीं हुआ, अब क्या खाक होऊंगा ! अनुभव से कहता हूं कि चालीस साल से रोज पी रहा हूं, अभी तक अडिक्टेड नहीं हुआ।
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