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सकता है। इसलिए बहुत-सी शर्तें लगायीं ।
सदा अप्रमादी, होशपूर्वक सत्य बोलना चाहिए ।
कई बार आप सत्य बोलते हैं सिर्फ दूसरे को चोट पहुंचाने के लिए। असत्य ही बुरा होता है, ऐसा नहीं, सत्य भी बुरा होता है, बुरे आदमी के हाथ में। आप कई बार सत्य इसलिए बोलते हैं कि उससे हिंसा करने में आसानी होती है। आप अंधे आदमी को कह देते हैं, अंधा। सत्य है बिलकुल । चोर को कह देते हैं, चोर । पापी को कह देते हैं, पापी । सत्य है बिलकुल । लेकिन महावीर कहेंगे, बोलना नहीं था ।
क्योंकि जब आप किसी को चोर कह रहे हैं तो वस्तुतः आप उसकी चोरी की तरफ इंगित करना चाहते हैं, या चोर कह कर उसे अपमानित करना चाहते हैं ? वस्तुतः आपको प्रयोजन है सत्य बोलने से ? या एक आदमी को अपमानित करने से ? वस्तुतः जब आप किसी को चोर कहते हैं, तो आपको पक्का है कि वह चोर है ? या आपको मजा आ रहा है किसी को चोर कहने में ? क्योंकि जब भी हम किसी को चोर कहते हैं, तो भीतर लगता है कि हम चोर नहीं हैं। वह जो रस मिल रहा है, वह सत्य का रस है ? वह सत्य का रस नहीं है
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इसलिए महावीर कहते हैं, 'सदा अप्रमादी'। पहली शर्त होशपूर्वक सत्य बोलना । बेहोशी में बोला गया सत्य, असत्य से भी बदतर हो सकता है। सावधान रहते हुए, एक-एक बात को देखते हुए, सोचते हुए सावधानीपूर्वक, ऐसे मत बोल देना तत्काल । बोलने के पहले क्षणभर चेतना को सजग कर लेना, रुक जाना, ठहर जाना, सब पहलुओं से देख लेना ऊपर उठकर; अपने से, परिस्थिति
से
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सत्य सदा सार्वभौम है
सावधान का अर्थ है, क्या होगा परिणाम ? क्या है हेतु ? जब आप बोल रहे हैं सत्य, क्या है हेतु ? क्यों बोल रहे हैं ? क्या परिणाम की इच्छा है ? बोलकर क्या चाहते हैं कि हो जाये ?
सत्य बोलकर आप किसी को फंसा भी दे सकते हैं। सत्य बोलकर ... आपके भीतर क्या हेतु है, क्या मोटिव ? क्योंकि महावीर का सारा जोर इस बात पर है कि पाप और पुण्य कृत्य में नहीं होते, हेतु में होते हैं। मोटिव में होते हैं, एक्ट में नहीं होते ।
एक मां अपने बेटे को चांटा मार रही है। इस चांटा मारने में... और एक दुश्मन एक दुश्मन को चांटा मार रहा है, फिजियोलाजिकली, शरीर के अर्थ में कोई भेद नहीं है। और अगर एक वैज्ञानिक मशीन पर दोनों के चांटे को तौला जाये तो मशीन बता नहीं सकेगी, चांटे का वजन बता देगी, कितने जोर से पड़ा, कितनी चोट पड़ी, कितनी शक्ति थी चांटे में, कितनी विद्युत थी, सब बता देगी। लेकिन यह नहीं बता पायेगी कि हेतु क्या था ? लेकिन मां के द्वारा मारा गया चांटा, दुश्मन के द्वारा मारा गया चांटा, दोनों एक से कृत्य हैं, लेकिन एक से हेतु नहीं हैं ।
जरूरी नहीं है कि मां का चांटा भी हर बार मां का ही चांटा हो। कभी-कभी मां का चांटा भी दुश्मन का चांटा होता है। इसलिए मां भी दो बार चांटा मारे तो जरूरी नहीं है कि हेतु एक ही हो। इसलिए माताएं ऐसा न समझें कि हर वक्त चांटा मार रही हैं, तो हेतु मां का होता है। सौ में निन्यानबे मौके पर दुश्मन का होता है। मां भी इसलिए चांटा नहीं मारती कि लड़का शैतानी कर रहा है, मां भी इसलिए चांटा मारती है कि लड़का मेरी नहीं मान रहा है। शैतानी बड़ा सवाल नहीं है, सवाल मेरी आज्ञा है, सवाल मेरा अधिकार है, सवाल मेरा अहंकार है ।
तो मां का चांटा भी सदा मां का नहीं होता। महावीर मानते हैं कि मोटिव क्या है ? भीतर क्या है ? किस कारण ? इस फर्क को समझ लें ।
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