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महावीर वाणी
एक बच्चा शैतानी कर रहा है और मां ने चांटा मारा। आप कहेंगे, कारण साफ है कि बच्चा शैतानी कर रहा था। लेकिन यह हेतु नहीं है, यह कारण नहीं है कि बच्चा शैतानी कर रहा था। हेतु आपके भीतर होगा, क्योंकि कल भी यह बच्चा इसी वक्त शैतानी कर रहा था, लेकिन आपने नहीं मारा। आज मारा। कल भी परिस्थिति यही थी । परसों भी यह बच्चा शैतानी कर रहा था। लेकिन तब आपने पड़ोसियों से उसकी प्रशंसा की कि मेरा बच्चा बड़ा शैतान है। कल मारा नहीं, देख लिया, आज मारा। क्या बात है ? हेतु बदल रहे हैं, कारण तो तीनों में एक हैं; आपके भीतर हेतु बदल रहे हैं। जब आपने पड़ोसी से कहा, मेरा बच्चा बड़ा शैतान है, तब आपके अहंकार को तृप्ति मिल रही थी। इस बच्चे की शैतानी आपको रस पूर्ण मालूम पड़ी। कल बच्चा शैतानी कर रहा था, आप अपने भीतर खोये थे, आप अपने में लीन थे। इस बच्चे की शैतानी ने आपको कोई चोट नहीं पहुंचाई। आज सुबह ही पति से या पत्नी से कलह हो गयी है और आप अपने भीतर नहीं जा पाते और क्रोध उबल रहा है, और यह बच्चा शैतानी कर रहा है। चांटा पड़ जाता है।
यह चांटा आपके भीतर के क्रोध के हेतु से उपजता है। यह बच्चे का कारण सिर्फ बहाना है, खूंटी है, कोट आपके भीतर से आकर टंगता है। महावीर कहते हैं, सावधानीपूर्वक । उसका अर्थ है - हेतु को देखते हुए कि मैं क्यों सच बोल रहा हूं ।
'सावधान रहते हुए असत्य को त्याग कर हितकारी सत्य वचन ही बोलने चाहिए । '
सावधान रहें और जो भी असत्य मालूम पड़े, उसे त्याग दें। कोई भी मूल्य हो, महावीर मूल्य नहीं मानते। साधक के लिए एक ही मूल्य है, उसकी आत्मा का निर्माण, सृजन । कोई भी कीमत हो, अप्रमाद से सावधानीपूर्वक हेतु की परीक्षा करके, जो भी असत्य है, उसे तत्काल छोड़ दें।
यह निगेटिव बात हुई, नकारात्मक, असत्य को छोड़ दें। और इसके बाद वे कहते हैं हितकारी सत्य वचन ही बोलें। अभी सत्य वचन में फिर एक शर्त है, वह यह कि वह दूसरे के हित में हो ।
आपके भीतर कोई हेतु न हो बुरा, यह भी काफी नहीं है। क्योंकि मेरे भीतर कोई हेतु बुरा न हो, फिर भी आपका अहित हो जाये । तो महावीर कहते हैं, वैसा जो दूसरे का अहित कर दे वैसा सत्य भी नहीं। बड़ी शर्तें हो गयीं । असत्य का त्याग सीधी बात न रही । असत्य के त्याग असावधानी का त्याग गया। प्रमाद का त्याग हो गया। और दूसरे के अहित का भी त्याग हो गया, और तब जो सत्य बचेगा वही बोलें। आप मौन हो जायेंगे। बोलने को शायद कुछ बचेगा नहीं ।
महावीर बारह वर्ष तक मौन रहे, इस साधना में। न बोलेंगे वे। हम कहेंगे हद्द हो गयी। अगर सत्य भी बोलना है, तो भी बोलने को बहुत बातें हैं। आप गलती में हैं। अगर महावीर जैसी निकट कसौटी आपके पास हो तो मौन हो जाना पड़ेगा। क्योंकि असत्य बहुत प्रकार के हैं। पहले तो असत्य ऐसे हैं, जिनको आप सत्य माने हुए बैठे हैं, जो सत्य हैं नहीं। और अगर आपके समाज ने भी उनको माना है तो आपको पता ही नहीं चलता कि ये असत्य हैं।
आप कहते हैं, ईश्वर है। आपको पता है ? महावीर नहीं बोलेंगे। वे कहेंगे यह मेरे लिए असत्य है, मुझे पता नहीं। लेकिन जिस समाज में आप पैदा हुए हैं, अगर यह असत्य कि ईश्वर है -असत्य इसलिए नहीं कि ईश्वर नहीं है, असत्य इसलिए कि बिना जाने इसे मानना असत्य है। जिस समाज में आप पैदा हुए हैं, वह मानता है कि ईश्वर है, तो आप भी मानते हैं कि ईश्वर है। आपने फिर कभी लौटकर सोचा ही नहीं कि है भी ?
जब मैं मंदिर के सामने हाथ जोड़ रहा हूं, तो यह हाथ जोड़ना तब तक असत्य है जब तक मुझे ईश्वर का कोई पता न हो । महावीर मंदिर के सामने हाथ न जोड़ेंगे। क्योंकि महावीर कहते हैं, सामूहिक असत्य है, कलैक्टिव अनट्रुथ । जब पूरा समूह बोलता है, तो
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भाग : 1
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