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धर्म का मार्ग : सत्य का सीधा साक्षात्
दे रहा है। उसे प्रगट करो। नहीं है हिम्मत कि सारी दुनिया को प्रगट कर दें, तो किसी को तो बता पाते हैं ।
इस दुनिया में उस आदमी से अकेला कोई भी नहीं, जिसके कोई भी इतना निकट नहीं है, जिससे कम से कम वह झूठ बता कि जो-जो मैं गलत कर रहा हूं, वह यह है। मनोवैज्ञानिक तो कहते हैं कि प्रेम का लक्षण ही यह है कि जिसके सामने तुम पूरे सच्चे प्रगट हो जाओ। अगर एक भी ऐसा आदमी नहीं है जगत में, जिसके सामने आप नग्न हो सकते हैं अंतःकरण से, तो आप समझना आपको प्रेम का कोई अनुभव नहीं हुआ है।
लेकिन जो आदमी सारे जगत के सामने अंतःकरण से नग्न हो सकता है, उसको प्रार्थना का अनुभव हुआ है। एक व्यक्ति के सामने भी आप पूरे सच हो जाते हैं तो जो क्षणभर को राहत मिलती है, जो सुगंध आती है, जो ताजी हवाएं दौड़ जाती हैं प्राणों के आर पार, वे भी काफी हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति समस्त जगत के सामने सच हो जाता है, जैसा है, वैसा ही हो जाता है, तब उसके जीवन में दुर्गंध का कोई उपाय नहीं है।
महावीर धर्म कहते हैं, स्वभाव की सत्यता को, जैसा है भीतर वैसा ही। कोई टेढ़ा-मेढ़ा नहीं। ठीक वैसा ही, नग्न जैसे दर्पण के सामने कोई खड़ा हो। ऐसा जो सहज है भीतर, वह जगत के सामने प्रगट हो जाये। इस अभिव्यक्ति का, सहज अभिव्यक्ति का जो अंतिम फल है वह है, मृत्यु मोक्ष बन जाती है। और हमारे समस्त झूठों के संग्रह का जो अंतिम फल है, पूरा जीवन एक असत्य, अप्रामाणिक अन-आथेंटिक यात्रा हो जाती है। चलते बहुत हैं, पहुंचते कहीं भी नहीं । दौड़ते बहुत हैं, मंजिल कोई भी हाथ नहीं आती । सिर्फ मरते हैं। जीवन कहीं पहुंचाता नहीं, सिर्फ भटकाता है। जो रात और दिन एक बार अतीत की ओर चले जाते हैं, वे फिर कभी वापस नहीं लौटते । जो मनुष्य अधर्म करता है, उसके वे रात-दिन बिलकुल निष्फल जाते हैं। लेकिन जो मनुष्य धर्म करता है, उसके वे रात-दिन सफल हो जाते हैं ।
महावीर के लिए सफलता का क्या अर्थ है? बैंक बैलेंस ? कि कितने लोग आपको मानते हैं ? कि कितने अखबार आपकी तस्वीर छापते हैं ? कि कितनी नोबल प्राइज आपको मिल जाती हैं ? नहीं, महावीर इसे सफलता नहीं कहते। थोड़ा सा उनकी जिंदगी देखें जिनको नोबल प्राइज मिलती है। उनमें से अधिक आत्महत्या कर लेते हैं। जो आत्महत्या नहीं करते, वे मरे-मरे जीते हैं।
अर्नेस्ट हेमिंग्वे का नाम सुना होगा। कौन इतनी सफलता पाता है? नोबल प्राइज है, धन है, प्रतिष्ठा है, सारे जगत में नाम है। उससे बड़ा कोई लेखक न था उसके समय में। लेकिन अर्नेस्ट हेमिंग्वे अंत में आत्महत्या कर लेता है। बड़ी अदभुत सफलता है। बाहर इतनी सफलता और भीतर इतनी पीड़ा है कि आत्महत्या कर लेनी पड़ती है। अपने को सहना मुश्किल हो जाता है, तभी तो कोई आत्महत्या करता है। जब अपने को बर्दाश्त करना आसान नहीं रह जाता, एक-एक पल, एक-एक घड़ी आदमी अपने को भारी पड़ने लगता है, तभी तो मिटाता है !
तो जिसको इतनी सफलता है चारों तरफ, इतना यश, गौरव है, वह भी भीतर इतनी दिक्कत में पड़ा है ! भीतर की धुरी टूट गयी है । सारी दुनिया तारीफ कर रही है चकों की, धुरी तो दुनिया को दिखायी नहीं पड़ती, वह तो भीतर है, स्वयं को दिखायी पड़ती है। सारी दुनिया चांदी के वर्क, सोने के वर्क लगा रही है चाकों पर; और सारी दुनिया कह रही है, क्या अदभुत चके हैं, कितनी - कितनी ऊबड़-खाबड़ यात्राएं कीं ! और भीतर धुरी टूट गयी, वह गाड़ी ही जानती है कि अब क्या होना है ! इन चकों पर लगे हुए सितारे काम नहीं पड़ेंगे। अंत में तो धुरी ही... उस धुरी की सफलता महावीर के लिए क्या हो सकती है ? महावीर के लिए सफलता एक ही है ।
समय तो बीत जाता है। उस समय में हम दो काम कर सकते हैंहैं, या उस समय में हम अपनी आत्मा को बिखेर सकते हैं, तोड़-तोड़, टुकड़े-टुकड़े कर सकते हैं।
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- या तो उस समय में हम अपनी आत्मा को इकट्ठा कर सकते
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