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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 संकल्प नहीं है। __ महावीर का यह जोर कि तुम जान-बूझकर गलत कर रहे हो, कारणवश है और वह कारण यह है कि अगर जान-बूझकर रहे हो तो ही बदलाहट हो सकती है। नहीं तो फिर कोई ट्रांसफार्मेशन, मनुष्य के जीवन में फिर कोई क्रांति संभव नहीं है। इसलिए महावीर बड़े साहस से ईश्वर को बिलकुल इंकार कर दिये, क्योंकि ईश्वर के रहते महावीर को लगा कि आदमी को सदा एक सहारा होता है कि वह जो करेगा, उसकी बिना आज्ञा के तो पत्ता भी नहीं हिलता, तो हम कैसे हिलेंगे। तो हम कहते हैं, उसकी आज्ञा के बिना पत्ता नहीं हिलता। अब हम व्यभिचारी हैं अब हम कैसे व्यभिचार से हिल जायें ! जब वह हिलायेगा, उसकी मर्जी। ___ आदमी बेईमान है, अपने परमात्माओं के साथ भी। आदमी बड़ा कुशल है और परमात्मा भी कुछ कर नहीं सकता। आदमी को जो उससे बुलवाना है, बुलवाता है। जो उससे करवाना है, करवाता है। मजा यह है कि परमात्मा की बिना आज्ञा के पत्ता हिलता है, या नहीं हिलता है, यह तो पता नहीं, आपकी बिना आज्ञा के परमात्मा भी नहीं हिल सकता। वह आप ही उसको हिलाते रहते हैं, जैसी मर्जी, आप ही अंततः निर्णायक हैं। इसलिए महावीर कहते हैं 'जान-बूझकर' । लेकिन कितना ही कोई जान-बूझकर गलत रास्ते पर जाये, रास्ता तो गलत ही होगा, और गलत रास्ते पर धुरी टूटेगी ही। रास्ते के गलत होने का मतलब ही इतना है कि जहां धुरी टूट सकती है। और तो कोई मतलब नहीं है। इसलिए अधर्म में गया हुआ आदमी रोज टूटता चला जाता है। निर्मित नहीं होता, बिखरता है। चोरी करके देखें, झूठ बोल कर देखें, बेईमानी करके देखें, धोखा करके देखें, किसी की हत्या करें, होगा क्या? आपकी आत्मा की धुरी टूटती चली जाती है, आप भीतर टूटने लगते हैं। भीतर इंटिग्रेशन, अखंडता नहीं रह जाती, खण्ड-खण्ड हो जाता है। कभी कुछ, जिसको धर्म कहा है, वह करके देखें तो भीतर अखंडता आती है। — इसको ऐसा सोचें कि जब आप झूठ बोलते हैं, तब आपके भीतर टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं,एक आत्मा नहीं होती। एक हिस्सा तो भीतर कहता ही रहता है कि मत करो, गलत है। एक हिस्सा तो जानता ही रहता है कि यह सच नहीं है। आप सारी दुनिया को झूठ बोल सकते हैं, लेकिन अपने से कैसे बोलिएगा? भीतर तो पता चलता ही रहता है कि यह झूठ है। इसलिए सतह पर भर आप झूठ के लेबल चिपका सकते हैं, आपकी अंतरात्मा तो जानती है कि यह झूठ है। इसलिए आप इकट्ठे नहीं हो सकते। आपकी परिधि और आपके केंद्र में विरोध बना रहेगा। भीतर कोई कहता ही रहेगा कि यह झूठ है, यह नहीं, यह नहीं बोलना था। जो बोला है वह ठीक नहीं था। यह भीतर खण्ड-खण्डकर जायेगा। - अब जो आदमी हजार झूठ बोल रहा है, उसके हजार खण्ड हो जायेंगे लेकिन जो आदमी सच बोल रहा है, उसके भीतर कोई खण्ड नहीं होता। क्योंकि सच के विपरीत कोई कारण नहीं होता। और मजा यह है कि अगर कभी विपरीत भी हो, जैसा कि सच बोलते में भी कभी परिधि कहती है, मत बोलो, नुकसान होगा; लेकिन तब भी सच आता है भीतर से और झूठ आता है बाहर से। भीतर हमेशा मजबत होता है। इसलिए परिधि ज्यादा देर टिक नहीं पाती. ट जाती है। लेकिन जब आप झठ बोलते हैं परिधि की मानकर, तब कभी भी कितना ही बोलते चले जायें, टिक नहीं सकता। रोज संभालें, फिर भी नहीं संभलता; क्योंकि भीतर गहरे में आप जानते ही हैं कि यह झूठ है। वह हजार तरह से निकलने की कोशिश करता है। इसलिए जो आदमी झूठ बोलता है वह बता देता है कि यह झूठ है। ___ आप जानते हैं क्यों? हम सब अपने इंटिमेसीज रखते हैं, आंतरिकताएं रखते हैं, जहां हम सब बता देते हैं। उससे मन हल्का होता है। नहीं बता पाये दुनिया को, कोई फिकर नहीं, अपनी पत्नी को तो बता दिया ! इससे राहत मिलती है। वह जो सच है भीतर, धक्के 376 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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