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कायोत्सर्ग : शरीर से विदा लेने की क्षमता
सुनते वक्त आपको खयाल में भी न आया होगा कि महावीर जब यह कह रहे हैं कि उसे देवता भी नमस्कार करते हैं, तो कोई बहुत बड़ी क्रांतिकारी बात कह रहे हैं। महावीर के इस वक्तव्य के पहले आदमी देवताओं को नमस्कार करता रहा। इसके पहले कभी किसी देवता ने आदमी को नमस्कार नहीं किया था। यह पहला वक्तव्य है संगृहीत, जिसमें महावीर ने कहा है कि ऐसे मनुष्य को देवता भी नमस्कार करते हैं। सारा वैदिक धर्म देवताओं को नमस्कार करनेवाला है। आपके सुनते वक्त रोज यह दोहराया गया है, आपको खयाल में न आया होगा कि इसमें कोई खास बात है, कोई बड़ा क्रांति का सूत्र है। महावीर जिस समाज में पैदा हुए थे, वह सब देवताओं को नमस्कार करने वाला समाज था। उस समाज में महावीर का यह कहना कि ऐसे मनुष्य को देवता भी नमस्कार करते हैं, बड़ा क्रांतिकारी वक्तव्य था। हम भी सोचेंगे कि देवता क्यों नमस्कार करेंगे मनुष्य को! देवता तो मनुष्य से ऊपर हैं। __महावीर नहीं कहते। महावीर कहते हैं-मनुष्य से ऊपर कोई भी नहीं है। इसलिए मनुष्य की डिगनिटी और मनुष्य की गरिमा और गौरव का ऐसा वक्तव्य दूसरा नहीं है। महावीर कहते हैं—मनुष्य से ऊपर कुछ भी नहीं है, लेकिन साथ ही वे यह भी कहते हैं कि मनुष्य से नीचे जानेवाला भी और कोई नहीं है। मनुष्य इतने नीचे जा सकता है कि पशु उससे ऊपर पड़ जाएं और मनुष्य इतने ऊपर जा सकता है कि देवता उससे नीचे पड़ जाएं। मनुष्य इतना गहरा उतर सकता है पाप में कि कोई पशु न कर सके। सच तो यह है कि पशु क्या पाप करते हैं! आदमी को देखकर पशु के पाप का कोई अर्थ नहीं रह जाता। तो मनुष्य नर्क तक नीचे उतर सकता है और स्वर्ग तक ऊपर जा सकता है। देवता पीछे पड़ जाएं, वह वहां खड़ा हो सकता है; पशु आगे निकल जाएं, वहां वह उतर सकता है। मनुष्य की यह जो संभावना है, यह संभावना विराट है। इस संभावना में पाप भी आ जाते, पुण्य भी आ जाते; नर्क भी आ जाता, स्वर्ग भी आ जाता
लेकिन देवताओं के ऊपर क्या स्थिति बनती होगी? तो महावीर ने कहा है-नर्क मनुष्य के दुखों का फल है, स्वर्ग मनुष्य के पुण्यों का फल है। लेकिन नर्क भी चुक जाता है, पाप का फल भी समाप्त हो जाता है; स्वर्ग भी चुक जाता है, पुण्य का फल भी समाप्त हो जाता है। सिर्फ एक जगह कभी समाप्त नहीं होती, जब कोई आदमी पाप और पुण्य दोनों के पार उठ जाता है। पुण्य भी कर्म है, पाप भी कर्म है। पाप से भी बंधन लगता है—महावीर ने कहा है-वह बंधन लोहे की जंजीरों जैसा है। पुण्य से भी बंधन लगता है, वह सोने के आभूषणों जैसा है। लेकिन दोनों में बंधन है। महावीर कहते हैं-वह मनुष्य जो पाप और पुण्य दोनों के पार उठ जाता है, जो कर्म के ही पार उठ जाता है और स्वभाव में ठहर जाता है, वह देवताओं के भी ऊपर उठ जाता है। वह स्वर्ग के भी ऊपर उठ जाता है। ___ तो आपने दो शब्द सुने हैं महावीर तक, और अनेक धर्म दो शब्दों का उपयोग करते हैं-स्वर्ग और नर्क। महावीर एक नए शब्द
का भी उपयोग करते हैं-मोक्ष। तीन शब्द उपयोग करते हैं महावीर। नर्क वे कहते हैं उस चित्त दशा को जहां पाप का फल मिलता; स्वर्ग वे कहते हैं उस चित्त दशा को जहां पुण्य का फल मिलता; मोक्ष वे कहते हैं उस चेतना की अवस्था को जहां सब कर्म समाप्त हो जाते है और चेतना अपने स्वभाव में लीन हो जाती है। निश्चित ही वैसी चित्त दशा में देवता भी प्रणाम करें मनुष्य को, तो आश्चर्य नहीं।
अभी तो पशु भी हंसते हैं। ___ मैंने एक मजाक सुनी है। मैंने सुना है कि तीसरा महायुद्ध हो गया, सब समाप्त हो गया। कहीं कोई आवाज सुनायी नहीं पड़ती। एक घाटी में एक गुफा से एक बंदर बाहर निकला, उसके पीछे उसकी प्रेयसी बाहर निकली। वह बंदर उदास बैठ गया और उसने अपनी प्रेयसी से कहा-क्या सोचती हो, शैल वी स्टार्ट इट आल ओवर अगेन? क्या हम आदमी को अब फिर पैदा करें, फिर से दुनिया शुरू करें? डार्विन कहता है आदमी बंदरों से आया है। कहीं तीसरा महायुद्ध हो जाए तो बंदरों को चिंता फिर होगी कि क्या करें? लेकिन वह बंदर कहता है, शैल वी स्टार्ट इट आल ओवर अगेन? क्या फिर करने जैसा भी है या अब रहने दें?
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