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महावीर-वाणी
भाग : 1
सुना है मैंने कि जब डार्विन ने कहा कि आदमी बंदरों से पैदा हुआ, है तो आदमी ही नाराज नहीं हुए, बंदर भी बहुत नाराज हुए। क्योंकि बंदर आदमी को सदा अपने अंश की तरह देखते रहे हैं, जो रास्ते से भटक गया। लेकिन जब डार्विन ने कहा-यह इवोल्यूशन है, विकास है, तो बंदर नाराज हुए। उन्होंने कहा—इसको हम विकास कभी नहीं मानते। यह आदमी हमारा पतन है। लेकिन बंदरों की खबर हम तक नहीं पहुंची। आदमी बहुत नाराज हुए, क्योंकि आदमी मानते थे, हम ईश्वर से पैदा हुए हैं और डार्विन ने कहा बंदर से, तो आदमी को बहुत दुख लगा। उसने कहा-यह कैसे हो सकता है, हम ईश्वर के बेटे! लेकिन बंदर भी बहुत नाराज हुए। _ निश्चित ही आदमी को देखकर बंदर भी हंसते होंगे। आदमी जैसा है वैसा तो पशु भी उसको प्रणाम न करेंगे। महावीर तो आदमी की उस स्थिति की बात कर रहे हैं जैसा वह हो सकता है; जो उसकी अंतिम संभावना है; जो उसमें प्रगट हो सकता है। जब उसका बीज पूरा खिल जाए और फूल बन जाए तो निश्चित ही देवता भी उसे नमस्कार करते हैं। इतना ही।
तीन सौ चौदह सूत्र हैं। एक सूत्र तो पूरा हुआ। लेकिन इस सूत्र को मैंने इस भांति बात की है कि अगर एक सूत्र भी आपकी जिंदगी में पूरा हो जाए तो बाकी तीन सौ तेरह की कोई जरूरत नहीं है। सागर की एक बूंद भी हाथ में आ जाए तो सागर का सब राज हाथ में आ जाता है और एक बूंद के रहस्य को भी कोई समझ ले तो पूरे सागर का भी रहस्य समझ में आ जाता है। दूसरी बूंद को तो इसलिए समझना पड़ता है कि एक बूंद से नहीं समझ पड़ा तो फिर दूसरी बूंद को समझना पड़ता है, फिर तीसरी बूंद को समझना पड़ता है। लेकिन एक बूंद भी अगर पूरी समझ में आ जाए तो सागर में जो भी है वह एक बंद में छिपा है।
इस एक सूत्र में मैंने कोशिश की कि धर्म की पूरी बात आपके खयाल में आ जाए। खयाल में शायद आ भी जाए, लेकिन खयाल कितनी देर टिकता है! धुएं की तरह खो जाता है। खयाल से काम नहीं चलेगा। जब बात खयाल में हो, तभी जल्दी करना कि किसी तरह वह कृत्य बन जाए, जीवन बन जाए - जल्दी करना। कहते हैं कि जब लोहा गर्म हो तभी चोट कर देना चाहिए। अगर थोड़ा भी लोहा गर्म हआ हो, उस पर चोट करना शुरू कर देना चाहिए। समझने से कुछ समझ में न आएगा, इतना ही समझ में आ जाए कि समझने से करने की कोई दिशा खुलती है, तो पर्याप्त है।
अभी रुकेंगे पांच मिनट, आखिरी दिन का कीर्तन करेंगे। फिर हम जायेंगे।
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