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________________ कायोत्सर्ग : शरीर से विदा लेने की क्षमता हो रहे हों या स्वास्थ्य से जब आप अचानक बीमार हो गए हों, अगर रास्ते पर आप जा रहे हों और कार का एकदम से एक्सिडेंट हो जाए तो आप उस क्षण का उपयोग कर सकते हैं। अगर कार आपकी एकदम टकरा गयी हो अचानक, तो उस वक्त आपके भीतर इतना परिवर्तन होता है, चेतना इतने जोर से, झटके से बदलती है कि अगर आप उस वक्त स्मरण कर लें कि मैं शरीर नहीं हूं, तो वर्षों स्मरण करने से जो नहीं होगा, वह एक स्मरण करने से हो जाएगा। लेकिन जब आपकी कार टकराती है तब आपको एकदम खयाल आता है कि मरा, मैं शरीर हं, मर गए। एक्सिडेंट्स का, दुर्घटनाओं का उपयोग किया जा सकता है। मैं शरीर नहीं है यह आपके भीतर गहरा जिस भांति भी बैठ सके, वह सब प्रयोग करने जैसे हैं। तो कायोत्सर्ग की पहली घटना घटती है। लेकिन वह नकारात्मक है। इतना काफी नहीं है कि मैं शरीर नहीं हूं। _ दूसरा विधायक अनुभव भी जरूरी है कि मैं आत्मा हूं। इस विधायक अनुभव को भी स्मरण रखना कीमती है। इसको स्मरण रखने के भी क्षण हैं। इस स्मरण को रखने के भी संक्रमण काल हैं। इस स्मरण को गहरा करने का भी आपके भीतर अवसर और मौका है। कब? जैसे आप संभोग करने के बाद वापस लौट रहे हैं। जब आप संभोग के बाद वापस लौट रहे होते हैं तो आप जानकर हैरान होंगे-उस वक्त आप सबसे कम शरीर हो जाते हैं। और कामवासना के बाद वापस लौटते हैं, तब आप सिर्फ फ्रस्ट्रेशन और विषाद में होते हैं। और ऐसा लगता है-व्यर्थ. भल. गलती. अपराध में गए। न जाते तो बेहतर। यह ज्यादा देर नहीं टिकेगी बात। घडी दो घड़ी में आप अपनी जगह वापस आ जाएंगे। लेकिन संभोग के क्षण के बाद शरीर को इतने झटके लगते हैं कि उसके बाद आपको, शरीर नहीं हूं यह प्रतीति, और मैं आत्मा हूं यह प्रतीति करने का अदभुत मौका है। ___ तंत्र ने इसका पूरा उपयोग किया है। इसलिए आप, अगर कोई तंत्र से थोड़ा भी परिचित रहा है तो वह जानकर हैरान होगा कि तंत्र ने संभोग का भी उपयोग किया है ध्यान के लिए। क्योंकि संभोग के बाद जितने गहरे में यह बात मन में उठायी जा सकती है कि मैं आत्मा हं, उतनी किसी और क्षण में उठानी बहुत मुश्किल है। क्योंकि उस वक्त शरीर टूट गया होता है, शरीर की आकांक्षा बुझ गयी होती है, शरीर के साथ तादात्म्य जोड़ने का भाव मर गया होता है। यह ज्यादा देर नहीं टिकेगा। और अगर आपकी आदत मजबूत हो गयी है, तो आपको पता ही नहीं चलेगा। तो अकसर लोग संभोग के बाद चुपचाप सो जाएंगे। सोने के सिवाय उन्हें कुछ नहीं सूझेगा। संभोग के बाद का क्षण बहुत कीमती हो सकता है। लेकिन हमें तो खयाल भी नहीं रहता है कि हम भूल करते हैं, अपराध करते हैं। __ मैंने सुना है कि वेटिकन के पोप ने अपने एक वक्तव्य में कहा कि ईसाइयत में एक सौ तैंतालीस पाप हैं—निंदित पाप। ऐसा माना है। हजारों पत्र वेटिकन के पोप के पास पहुंचे कि हमें पता ही नहीं था कि इतने पाप हैं, कृपा करके पूरी सूची भेजें। वेटिकन का पोप बहत हैरान हआ। इतने लोग क्यों उत्सुक हैं सूची के लिए? मुल्ला नसरुद्दीन ने भी उसको पत्र लिखा। उसने सच्ची बात लिख दी। उसने लिखा कि जब से तुम्हारा वक्तव्य पढ़ा, तब से मुझे ऐसा लग रहा है कि कितना हम चूकते रहे। इतने पाप हमने किए ही नहीं। दो-चार पाप करके ही अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं। जल्दी से भेजो, जिंदगी बिलकुल अर्थहीन मालूम पड़ रही है, जब से यह सुना कि एक सौ सैंतालीस पाप हैं। कितना हम मिस कर गए, कितना हम चूक गए, और जिंदगी थोड़ी बची है। __ आदमी का जो मन है, वह ऐसा ही है। आपको खबर लगे कि एक सौ तैंतालीस पाप हैं तो आप भी घर जाकर सोचेंगे, गिनती करेंगे। कितने दो-चार ही पांच गिनती में आते हैं। बहुत बड़े पापी हुए तो दस उंगलियां काफी पड़ेंगी। एक सौ तैंतालीस! चूक गए, जिंदगी बेकार गई, खो गया मौका। इतने हो सकते थे और नहीं किए। मल्ला जिस दिन मर रहा था, पुरोहित ने उससे कहा कि अब क्षमा मांग ले परमात्मा से, पश्चाताप कर । मुल्ला ने कहा-क्या खाक पश्चाताप करूं! मैं पश्चाताप यह कर रहा है कि जो पाप मैंने नहीं किए, कर ही लिए होते तो अच्छा था। क्योंकि जब माफी ही मांगनी 343 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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