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________________ महावीर वाणी भाग : 1 करवाएगा तो घर आकर पाएगा - कुछ भी नहीं हुआ । यह तो बिलकुल बेकार निकल गया मामला। सिर्फ दस्तखत ही करके आ गए रजिस्टर पर, यह शादी है ! तो जो शादी सिर्फ दस्तखत करने से बन सकती है वह दस्तखत करने से किसी दिन टूट जाएगी । उसमें कोई मूल्य नहीं है। वह शादी एक खेल था जिसमें हम बच्चों को दिखाते थे कि भारी मामला है। कोई छोटा मामला नहीं, तोड़ा नहीं जा सकता। इतना बड़ा मामला । उसमें इतना शोरगुल मचाते थे, उसको घोड़े पर बिठाते, उसको राजा बना देते, छुरे लटका देते, बैंड बाजा बजा देते, भारी उत्सव मचता। उसको भी लगता कि कुछ हुआ है। कुछ ऐसा हो रहा है जिसको वापस लौटाना मुश्किल है। फिर इस सबके पीछे होता तो वही जो रजिस्ट्री के आफिस में होता है। लेकिन इस सबके पहले जो हो गया है वह एक रूप, एक खेल - वह खेल इतना भारी था कि उसको लौटाना मुश्किल था। और उसकी जिंदगी में याद रहता। शादी चाहे कुछ भी बन जाए बाद में, लेकिन वह जो शादी के पहले हुआ था वह उसे याद रहता। वह बार-बार सपने उसके देखता, वही घोड़े पर बैठना, वही राजा की पोशाक। और अब आज लड़का कहता है, इससे क्या होगा? यह पगड़ी मैं क्यों बांधू ? मत बांधो, लेकिन पत्नी जो हाथ लगेगी, वह छोटी लगेगी, क्योंकि खेल उसके पहले का पूरा नहीं हो पाया, बिना खेल के मिल गई है। नसरुद्दीन की जब पहली दफा शादी हुई, वह सुहागरात को गया । रात आ गई, चांद निकल आया, पूर्णिमा का चांद । नसरुद्दीन खिड़की पर बैठा है। दस बज गए, ग्यारह बज गए, बारह बज गए। पत्नी बिस्तर में लेट गई। उसने एक दफे कहा- अब सो भी जाओ, सो भी जाओ। नसरुद्दीन ने बारह बजे कहा कि बकवास बंद। मेरी मां कहा करती थी कि सुहागरात की रात इतनी आनंद की रात है कि चूकना मत तो मैं तो इधर खिड़की पर बैठकर एक क्षण भी चूकना नहीं चाहता हूं । तू सो जा। कहीं नींद लग गयी और चूक गए ! तो मैं तो पूरी रात जगूंगा इसी खिड़की पर बैठा हुआ। मुझे तो यह पता लगाना है जो मां ने कहा कि सुहागरात की रात बड़ी आनंद की होती है। तो आज की रात मैं फालतू बातों में नहीं खो सकता। तू सो जा । तुझे अगर बातचीत करनी है तो कल । इसके मन में सुहागरात की एक धारणा थी। आज ठीक उल्टी हालत है। मैंने सुना है— एक युवक अपनी सुहागरात से, हनीमून से वापस लौटा। मित्रों ने पूछा कि कैसी थी सुहागरात? उसने कहा- जस्ट लाइक बिफोर । अब तो सुहागरात का अनुभव पहले ही उपलब्ध है। उसने कहा— जस्ट लाइक बिफोर, नथिंग न्यू ! कुछ नया नहीं आज सुहागरात जैसी कोई चीज हो ही नहीं सकती । 1 पुरानी बुद्धिमत्ता महत्वपूर्ण थी। वह बच्चों जैसे आदमियों के लिए बनाए गये खेलों का इंतजाम था। उन खेलों के बीच आदमी जी लेता था। मैं नहीं कहता, खेल तोड़ दें। खेल जारी रखें। बड़े बूढ़ों को आदर देना जारी रखें, गुरुजनों को आदर दें, साधुओं को आदर दें। खेल जारी रखें। इससे कुछ नुकसान नहीं हो रहा है किसी का। लेकिन उसको विनय मत समझ लें। वह विनय नहीं है। मैं नहीं कहता नसरुद्दीन से कि तू खिड़की पर मत बैठ और चांद को मत देख । लेकिन मैं उससे यह कहता हूं कि इसे सुहागरात मत समझ । सुहागरात नहीं है। तू चांद देख । विनय बहुत और बात है । लेकिन हम ऐसे जिद्दी हैं जिसका कोई हिसाब नहीं। जैसे नसरुद्दीन था । दूसरी शादी की उसने । गया सुहागरात पर। बड़ा इठलाकर, अकड़कर चल रहा है। फिर पूर्णिमा है। बड़ा आनंदित है वह । रास्ते पर कोई मित्र मिल गया, उसने कहा- बड़े आनंदित हो । नसरुद्दीन ने कहा कि मेरी सुहागरात है। उस आदमी ने चारों तरफ देखा । लेकिन तुम्हारी पत्नी दिखाई नहीं पड़ती। उसने कहा आर यू मैड? पहली दफे उसको लेकर आया, उसने सब रात खराब कर दी। इस बार उसको घर ही छोड़ आया हूं। रातभर — Jain Education International 288 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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