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विनय : परिणति निरअहंकारिता की
बकवास करती रही-सो जाओ, यह करो, वह करो। पता नहीं रात कब चुक गई। और मेरी मां कहती थी कि सुहागरात ... । इस बार तो उसको घर ही छोड़ आया हूं, अकेले आया हूं। सुहागरात चूकनी नहीं है।
कभी-कभी शब्द ...मां ने जरूर कहा था और ठीक ही कहा था। लेकिन नसरुद्दीन जो समझे हैं, वह नहीं कहा था। परंपरा जो समझती है... शब्द वही हैं जो महावीर ने कहे थे, लेकिन परंपरा जो समझ लेती है, वह नहीं कहा था। विनय आविर्भाव होता है अंतस का और उसकी मैंने यह वैज्ञानिक प्रक्रिया आपसे कही। यह पूरी हो तो ही आविर्भाव होता है। हां, आप अपने को जो विनीत करने की कोशिश कर रहे हैं, वह जारी रखें। वह एक खेल है, वह अच्छा खेल है। उससे जिंदगी सुविधा से चलती है, कन्वीनियंटली। बाकी उससे कोई आप जीवन के सत्य को उपलब्ध नहीं होते हैं।
आज इतना ही। फिर कल आगे सूत्र पर बात करेंगे। लेकिन पांच मिनट बैठे...!
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