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________________ प्रायश्चित : पहला अंतर तप हो, कोई नहीं, कोई आकाश में सुननेवाला नहीं जिससे तुम कहो कि मेरे पाप क्षमा कर देना। कोई क्षमा करेगा नहीं, कोई है नहीं। चिल्लाना मत, घोषणा से कुछ भी न होगा। दया की भिक्षा मत मांगना, क्योंकि कोई दया नहीं हो सकती। कोई दया करनेवाला नहीं है। प्रायश्चित-नहीं, दूसरे के समक्ष नहीं, अपने ही समक्ष अपने नरक की स्वीकृति है। और जब पूर्ण स्वीकृति होती है भीतर, तो उस पूर्ण स्वीकृति से ही रूपांतरण शुरू हो जाता है। यह बहुत कठिन मालूम पड़ेगा कि पूर्ण स्वीकृति से क्यों शुरू हो जाता है? जैसे ही कोई व्यक्ति अपने को पूरा स्वीकार करता है उसकी पुरानी इमेज, उसकी पुरानी प्रतिमा खण्ड-खण्ड होकर गिर जाती है, राख हो जाती है। और अब वह जैसा अपने को पाता है, ऐसा अपने को क्षणभर भी देख नहीं सकता, बदलेगा ही और उपाय नहीं है। जैसे घर में आग लग गई हो और पता चल गया कि आग लग गई, तब आप यह न कहेंगे कि अब हम सोचेंगे, बाहर निकलना है कि नहीं। तब आप यह न कहेंगे कि गुरु खोजेंगे, कि मार्ग क्या है? तब आप यह न कहेंगे कि पहले बाहर कुछ है भी पाने योग्य कि हम घर छोड़कर निकल जाएं और बाहर भी कुछ न मिले। ये सब उस आदमी की बातें हैं जिसके मन में कहीं-न-कहीं खयाल बना है कि घर में कोई आग नहीं लगी। एक बार दिख जाएं लपटें चारों तरफ, आदमी बाहर हो जाता है। जम्प, छलांग लग जाती है। ___ मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी का आपरेशन हुआ। तो जब उसे आपरेशन की टेबल पर लिटाया गया तो खिड़कियों के बाहर वृक्षों में फूल खिले हुए हैं, इंद्रधनुष फैला हुआ है। जब उसका आपरेशन हो गया और उसके मुंह से कपड़ा उठाया गया तो उसने देखा कि सब पर्दे बंद हैं, खिड़कियां, द्वार-दरवाजे बंद हैं, तो उसने मुल्ला से पूछा कि सुंदर सुबह थी, क्या सांझ हो गई या रात हो गई? इतनी देर लग गई? मुल्ला ने कहा-रात नहीं हुई है, पांच मिनट हुआ। तो उसने कहा-ये दरवाजे क्यों बंद हैं? तो मुल्ला ने कहा-बाहर के मकान में आग लग गई है। और हम डरे कि अगर कहीं तू होश में आए और एकदम देखे आग लगी, तो समझे कि नरक में पहुंच गए हैं। इसलिए हमने खिड़कियां बंद कर दी कि नरक में आग जलती रहती है तो तू कहीं यह न सोच ले कि मर गए खत्म। कभी ऐसा हो जाता है कि सोच लिया कि मर गए तो आदमी मर भी जाता है। तो मुल्ला ने कहा- यह मैंने बंद की हैं खिड़कियां, और मकान में आग लग गयी है बाहर । ___ मुल्ला के खुद के जीवन में ऐसा घटा कि वह बेहोश हो गया और लोगों ने समझा कि मर गया। उसकी अर्थी बांध ही रहे थे कि वह होश में आ गया। लोगों ने कहा- अरे, तुम मरे नहीं! मुल्ला ने कहा-मैं मरा नहीं, और जितनी देर तुम समझ रहे थे कि मैं मर गया, उतनी देर भी मैं मरा हुआ नहीं था। मुझे पता था कि मैं जिंदा हूं। तो उन्होंने कहा- तुम बिलकुल बेहोश थे, तुम्हें पता कैसे हो सकता है। क्या तुम्हें पता था? क्या प्रमाण तुम्हारे भीतर था कि तुम जिंदा हो? उसने कहा-प्रमाण यह था कि मैं भूखा था, मुझे भूख लगी थी। अगर स्वर्ग में पहुंच गया होता तो कल्पवृक्ष के नीचे भूख खत्म हो गई होती। और पैर में मुझे ठंडक लग रही थी। अगर नरक में पहुंच गया होता तो वहां ठंडक कहां है, और दो ही जगहें हैं जाने को। मुझे पता था कि मैं जिंदा हूं। __ मुल्ला के गांव का एक नास्तिक मर गया-वह अकेला नास्तिक था। वह मर गया तो मुल्ला उसको बिदा करने गया। वह लेटा हुआ है। सूट सुंदर उसे पहना दिया गया था, टाई-वाई बांध दी गयी थी—सब बिलकुल तैयार। मुल्ला ने बड़े दुख से कहा, पुअर मैन! थारोली ड्रेस्ड ऐंड नो व्हेअर टु गो? नास्तिक था, न नरक जा सकता था, न स्वर्ग। क्योंकि मानता ही नहीं। तो मुल्ला ने कहा-इतने बिलकुल तैयार लेटे हो, गरीब बेचारा और जाना उसको कहीं भी नहीं है। __वह जो हमारे भीतर आग है, नरक है, जहां हम खड़े ही हैं। नरक जाने को जगह नहीं है कोई, वहां हम खड़े हुए हैं, वह हमारी स्थिति है। स्वर्ग कोई स्थान नहीं है। इसलिए महावीर पहले आदमी हैं इस पृथ्वी पर जिन्होंने कहा कि स्वर्ग और नरक मनोदशाएं 267 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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