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महावीर वाणी हैं, माइंड स्टेट्स हैं, चित्तदशाएं हैं। मोक्ष कोई स्थान नहीं है इसलिए महावीर ने कहा कि वह स्थान के बाहर है -बियाण्ड स्पेस । वह कोई स्थान नहीं है, वह सिर्फ एक अवस्था है। लेकिन जहां हम खड़े हैं, वह नरक है। इस नरक की प्रतीति जितनी स्पष्ट हो जाए उतने आप प्रायश्चित में उतरेंगे। और जितनी प्रगाढ़ - इनटेंस हो जाए, कि आग जलने लगे आपके चारों तरफ तो छलांग लग जाएगी। और रूपांतरण शुरू हो जाएगा।
उस छलांग के पांच सूत्र हम कल से धीरे-धीरे शुरू करेंगे। यह पहला सूत्र है और ठीक से समझ लेना जरूरी है। संलीनता जैसे अंतिम सूत्र है बाह्य-तप का, और कीमती है, उसके बाद ही प्रायश्चित हो सकता है। प्रायश्चित बहुत कीमती है क्योंकि वह पहल सूत्र है अंतर- तप का । अगर आप प्रायश्चित नहीं कर सकते तो अंतर-तप में कोई प्रवेश नहीं है, वह द्वार है ।
आज इतना ही।
रुकें पांच मिनट, कीर्तन करें... !
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भाग : 1
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