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प्रायश्चित: पहला अंतर तप
यह कर्म की भूल है, परिस्थिति की नहीं । परिस्थिति ने तो केवल अवसर दिया है कि आपके भीतर जो आप छिपा - छिपाकर चल रहे थे वह प्रगट हो गया ।
प्रायश्चित तब शुरू होगा जब आप जैसे हैं, अपने को वैसा जानें। छिपाएं मत, ढांकें मत, तो आप पाएंगे, आप उबलते हुए वा हैं, ज्वालामुखी हैं । ये सब बहाने हैं आपके, ये टीम-टाम हैं। ये ऊपर से चिपकाये हुए पलस्तर हैं, ये बहुत पतले हैं। यह सिर्फ दिखावा है। इस दिखावे के भीतर जो आप हैं, उसको आप स्वीकार करें ।
प्रायश्चित का पहला सूत्र – जो आप हैं - बुरे भले, निंदा-योग्य, पापी, बेईमान – एक्सेप्ट इट । आप ऐसे हैं । तथ्य की स्वीकृति प्रायश्चित है। तथ्य गलती से हो गया, इसको पोंछ देना पश्चात्ताप है। तथ्य हुआ, होता ही है मुझसे; जैसा मैं आदमी हूं, यही मुझसे होता – इसकी स्वीकृति प्रायश्चित का प्रारंभ है। स्वीकार, और पूर्ण स्वीकार, कहीं भी कोई चुनाव नहीं। क्योंकि चुनाव आपने किया तो आप बदलते रहेंगे। आज यह, कल वह, परसों वह, आपकी बदलाहट जारी रहेगी। प्रायश्चित पूर्ण स्वीकार है, मैं ऐसा हूं। मैं चोर हूं, तो मैं चोर हूं। मैं बेईमान हूं तो मैं बेईमान हूं । नहीं जरूरत है कि आप घोषणा करने जाएं कि मैं बेईमान हूं क्योंकि अकसर ऐसा होता है कि अगर आप घोषणा करें कि मैं बेईमान हूं तो लोग समझेंगे कि बड़े ईमानदार हैं। मुझे लोगों ने भगवान कहना शुरू किया । मैं चुप रहा बहुत दिन तक, मैंने सोचा कि मैं कहूं कि भगवान नहीं हूं तो उनका और पक्का भरोसा बैठ जाएगा कि यही तो लक्षण है भगवान का, कि वह इनकार करे। वह इनकार करे कि मैं नहीं हूं।
हमारा मन बड़ा अजीब है। अगर आपको किसी को सच में ही बेईमानी करके धोखा देना हो तो आप पहले उसको बता दें कि मैं बहुत बुरा आदमी हूं, मैं बहुत बेईमान हूं। वह आप पर ज्यादा भरोसा करेगा, आप बेईमानी ज्यादा आसानी से कर सकेंगे। और जब आप घोषणा करते हैं कि बेईमान हूं तब देखना कि इसमें कोई रस तो नहीं आ रहा है, क्योंकि दूसरे के सामने घोषणा में इसमें भी रस आ सकता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि लियो टालस्टाय ने अपनी आत्मकथा में जितने पाप लिखे हैं, उतने उसने किए नहीं थे। उसमें बहुत से पाप कल्पित हैं, जो उसने घोषणा करने के लिए लिखे। किए नहीं थे, आप सोच सकते हैं? पुण्यों की कोई घोषणा करे कि मैंने इतना दान किया तो आप कहेंगे कि यह घोषणा हो सकती है। लेकिन कोई कहे कि मैंने इतनी चोरी की, यह भी घोषणा हो सकती है? कोई ऐसा करेगा? आपने कभी सोचा है कि कोई अपने पाप की भी चर्चा करेगा, इतने जोर से? नहीं, पापी करते हैं । लेकिन टालस्टाय जैसे लोग नहीं करते। जेलखाने में आप जाइए, . जिसने दस रुपए की चोरी की है, वह कहता है दस लाख का डाला। क्योंकि दस की भी कोई चोरी करने का मतलब है? तो दस के ही चोर हैं! यह कोई मतलब नहीं है ।
एक कैदी कारागृह में प्रविष्ट हुआ। दूसरे कैदी ने, जो वहां सीखचों से टिककर बैठा था, उसने कहा- कितने दिन की सजा?
उसने कहा कि चालीस साल की सजा । तो उसने कहा कि तू दरवाजे के पास बैठ। हम दीवार के पास रहेंगे। पहले आदमी ने पूछा, 'क्यों?' उसने कहा—हमको पचहत्तर साल की सजा मिली है। तो तेरा मौका पहले आएगा निकलने का । सिक्खड़ मालूम पड़ता है। चालीस साल की कुल ! छोटा-मोटा काम किया! हमको पचहत्तर साल की सजा है। हम दीवार के पास रहेंगे, तू दरवाजे के पास। तेरा मौका निकलने का पहले आएगा । चालीस साल ही का तो मामला है। हमको और आगे पैंतीस साल रहना है। इसका मतलब है कि उन्होंने मास्टरी सिद्ध कर दी कि अब तू इस कमरे में शिष्य बनकर रह ।
तो जेलखानों में तो घोषणा चलती है। लेकिन यह कभी खयाल नहीं आता साधारणतः कि साधु-संतों ने भी जितने पापों की चर्चा की है, उतने वस्तुतः किए हैं। या पाप की घोषणा में भी रस हो सकता है?
मनोवैज्ञानिक कहते - रस हो सकता है। इस हिसाब से हिसाब नहीं लगाए गए हैं कभी। गांधी की आत्मकथा का कभी न
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