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महावीर-वाणी
भाग : 1
मैं कभी मिली नहीं। __उस आदमी ने कहा-माफ करिए, आप कुछ गलती में हैं। आई एम नाट ए सुपरिन्टेंडेंट, आई एम वन आफ इन्मेट्स । मैं कोई सुपरिन्टेंडेंट नहीं। सुपरिन्टेंडेंट आज बाहर गया है। मैं तो इसी पागलखाने में एक पागल हूं। इलनौर ने कहा-तुम और पागल! तुम जैसा स्वस्थ आदमी मैंने नहीं देखा। किसने तुम्हें पागल किया है?
कहा-यही तो मैं समझा रहा है. आज सात साल हो गए समझाते. लेकिन कोई सनता नहीं। कोई मानने को राजी नहीं। अब कोई पागल कहे, मैं पागल नहीं, कौन मानने को राजी है। सुपरिन्टेंडेंट कहता है कि सभी पागल यही कहते हैं कि हम पागल नहीं हैं। इसमें क्या खास बात है? ___ रूजवेल्ट की पत्नी ने कहा-यह तो बहुत बुरा मामला है। तुम घबराओ मत, मैं जाकर गवर्नर को आज ही कहूंगी, कल ही तुम्हारी छुट्टी हो जाएगी। तुम एकदम स्वस्थ आदमी हो साधारण नहीं, असाधारण रूप से बुद्धिमान आदमी हो। तुमको कौन पागल कहता है? अगर तुम पागल हो तो हम सब पागल हैं। पागल ने कहा-यही तो मैं समझाता हूं, लेकिन कोई मानता नहीं।
इलनौर ने कहा कि तुम बिलकुल बेफिक्र रहो। मैं आज ही जाकर बात करती हूं। कल सुबह ही तुम मुक्त हो जाओगे। नमस्कार करके, धन्यवाद देकर इलनौर मुड़ी, उस पागल ने उचककर जोर से लात मारी इलनौर की पीठ पर। सात-आठ सीढ़ियां वह नीचे धड़ाम से जाकर गिरी। बहुत घबराकर उठी। उसने कहा-तुमने यह क्या किया? यह तुमने किया क्या? उस पागल ने कहा-जस्ट टु रिमाइंड यू। भूल मत जाना। गवर्नर को कह देना कि कल सुबह...जस्ट टु रिमाइंड यू।
मगर वह तीन घण्टे पर पानी फिर गया। तो तीन घण्टे जो वह बोल रहा था, उसमें क्या वह ठीक बोल सकता है? सवाल यह है। क्या उस तीन घण्टे में वह ठीक बोल सकता है? नहीं, वह ठीक बोलने का सिर्फ आभास पैदा कर सकता है-आभास, फैलिसी। तर्काभास पैदा कर सकता है। लेकिन असलियत यह नहीं हो सकती कि जो वह बोल रहा है वह ठीक हो। ऐसा दिखाई पड़ सकता है कि बिलकुल ठीक है। आप पकड़ न पाएं कि उसमें गलती कहां है, यह दूसरी बात है। लेकिन कोई न कोई घड़ी वह प्रगट कर देगा।
सोया हआ आदमी भी इसी तरह कर रहा है। दिनभर बिलकुल ठीक है, जरा क्रोध नहीं कर रहा है। अचानक एक रसीद कर देता है चांटा अपने लड़के को कि तू देर से क्यों आया? आप नहीं समझते, आप कहते हैं यह आदमी बिलकुल ठीक है, बाकी वक्त तो ठीक ही रहता है। यह इसका चांटा बताता है कि बाकी वक्त यह सिर्फ तर्काभास पैदा करता है। यह ठीक नहीं रहता, यह ठीक रह नहीं सकता। क्योंकि उस ठीक आदमी से जो यह निकल रहा है, यह निकल नहीं सकता। एक आदमी एकदम छाती में छुरा मार देता है, किसी को हम कहते हैं कल तक बिलकुल भला आदमी था-एकदम भला आदमी था। माना कि बिलकुल भला था, लेकिन वह आभास था। सोया हुआ आदमी अच्छे का सिर्फ आभास पैदा करता है। बुरा होना उसकी नियति है। वह उससे प्रगट होगा ही। क्षण दो क्षण रोक सकता है, इधर-उधर डांवांडोल कर सकता है, लेकिन वह उससे प्रगट होगा ही।
पता है कि आप अपने को परे वक्त संभालकर चलते हैं? जो आपके भीतर है उसको दबाकर चलते हैं? जो आप कहना चाहते हैं वह नहीं कहते, कुछ और कहते हैं। जो आप बताना चाहते हैं नहीं बताते, कुछ और बताते हैं। लेकिन कभी-कभी वह उभर जाता है। हवा का कोई झोंका और कपड़ा उठ जाता है, भीतर जो है वह दिख जाता है, कोई परिस्थिति। तब आप कहते हैं,
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