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________________ तप : ऊर्जा का दिशा-परिवर्तन भोग का ही विकृत रूप है। जो तप शरीर-केन्द्रित है, वह भोग का ही दूसरा नाम है। वह विषाद को उपलब्ध हो गए भोग की प्रतिक्रिया है। वह विषाद को उपलब्ध हो गए भोग की शरीर के साथ बदला लेने की, रिवेंज लेने की आकांक्षा है। इसे समझें तो फिर हम ठीक तप की दिशा में आंखें उठा सकेंगे। यह इन कारणों से तप जो है, आत्महिंसा बन गया है। अपने को जो जितना सता सकता है उतना बड़ा तपस्वी हो सकता है। लेकिन सताने से तप का कोई संबंध है? टार्चर, पीड़न, आत्म-पीड़न, उससे तप का कोई संबंध है? और ध्यान रखें, जो अपने को सता सकता है वह दूसरे को सताने से बच नहीं सकता। क्योंकि जो अपने को तक सता सकता है, वह किसी को भी सता सकता है। हां, उसके सताने के ढंग बदल जाएंगे। निश्चित ही भोगी का सताने का ढंग सीधा होता है। त्यागी के सताने का ढंग परोक्ष हो जाता है, इनडायरेक्ट हो जाता है। अगर भोगी को आपको सताना है तो आप पर सीधा हमला बोलता है। त्यागी को आपको सताना है तो बहुत पीछे से हमला बोलता है। लेकिन आपके खयाल में नहीं आता कि वह हमला बोल रहा है। अगर आप त्यागी के पास जाएं – तथाकथित त्यागी के पास, सो-काल्ड, जो आस्टेरिटी है, तपश्चर्या है - उसके पास आप जाएं; अगर आपने अच्छे कपड़े पहन रखे हैं और आपका त्यागी भभूत रमाए बैठा है तो आपके कपड़ों को ऐसे देखेगा जैसे दुश्मन देखता है। उसकी आंख में निन्दा होगी, आप कीड़े-मकोड़े मालूम पड़ेंगे। ऐसे कपड़े पहने हुए हैं! उसकी आंखों में इशारा होगा नरक का, तीर बना होगा नरक की तरफ कि गए नरक। वह आपको कहेगा - अभी तक संभले नहीं! अभी तक इन कपड़ों से उलझे हो, नरक में भटकोगे। ___ मैंने सुना है कि एक पादरी एक चर्च में लोगों को समझा रहा था, डरा रहा था नरक के बाबत कि कैसी-कैसी मुसीबतें होंगी। और जब कयामत का दिन आएगा तो इतनी भयंकर सर्दी पड़ेगी पापियों के ऊपर कि दांत खड़खड़ाएंगे। मुल्ला नसरुद्दीन भी उस सभा में था, वह खड़ा हो गया। उसने कहा - लेकिन मेरे दांत टूट गए हैं! उस फकीर ने कहा - घबराओ मत, फाल्स टीथ विल बी प्रोवाइडेड। नकली दांत दे दिए जाएंगे, लेकिन खड़खड़ाएंगे। साधु, तथाकथित तपस्वी आपको नरक भेजने की योजना में लगे हैं। उनका चित्त आपके लिए नरक के सारे इंतजाम कर रहा है। सच तो यह है कि नरक में कष्ट देने का जो इंतजाम है, वह तथाकथित झूठे तपस्वी की कल्पना है, फैंटेसी है। वह तथाकथित तपस्वी यह सोच ही नहीं सकता कि आपको भी सुख मिल सकता है! आप यहां काफी सुख ले रहे हैं। वह जानता है कि यह सुख है। वह यहां काफी दुख ले रहा है। कहीं तो बैलेंस करना पड़ेगा, कहीं संतुलन करना पड़ेगा। उसने यहां काफी दुख झेल लिया है। वह स्वर्ग में सख झेलेगा। आप यहां सख भोग रहे हैं। आप नरक में सडेंगे और दख भोगेंगे। और बड़े मजे की बात है कि उसके स्वर्ग के सुख आपके ही सुखों का मैगनीफाइड रूप हैं। आप जो सुख यहां भोग रहे हैं, वही सुख और विस्तीर्ण होकर, बड़े होकर वह स्वर्ग में भोगेगा, और जो दुख वह यहां भोग रहा है...यह मजे की बात है कि तपस्वी अपने आसपास आग जलाकर बैठते रहे हैं...आपको नरक में आग में सड़ाएंगे वे। जो तपस्वी अपने आसपास आग जलाएगा उससे सावधान रहना, उसके नरक में आग आपके लिए तैयार रहेगी। भयंकर आग होगी जिससे आप बच न सकेंगे। कड़ाहों में डाले जाएंगे, चुड़ाए जाएंगे और मर भी न सकेंगे क्योंकि मर गए तो मजा ही खत्म हो जाएगा। अगर मारा और मर गए तो दख कौन झेलेगा? इसलिए नरक में मरने का उपाय नहीं है। ध्यान रखना, नरक में तपस्वियों ने आत्महत्या की सुविधा नहीं दी है। आप मर नहीं सकते नरक में, आप कुछ भी करें। और कुछ भी करें, एक काम नरक में नहीं होता कि आप मर नहीं सकते। क्योंकि अगर आप मर सकते हैं तो दुख के बाहर हो सकते हैं। इसलिए वह सुविधा नहीं दी है। किसकी कल्पना से निकलता है यह सारा खयाल? यह कौन सोचता है, ये सारी बातें? सच में जो तपस्वी है वह तो सोच भी नहीं 135 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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