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महावीर-वाणी
भाग : 1
कहा-'चोरी की कभी?' नसरुद्दीन ने कहा- 'नहीं।' 'कभी झूठ बोले?' 'नहीं।' 'कभी शराब पी?' नसरुद्दीन ने कहा—'नहीं।' 'कभी स्त्रियों के पीछे पागल होकर भटके?' नसरुद्दीन ने कहा- 'नहीं।'
सेंट पीटर बहुत चौंका। उसने कहा—'दैन व्हाट यू हैव बीन डूइंग देयर फार सो लांग ए टाइम? सौ साल तक तुम कर क्या रहे थे वहां? कैसे गुजारे इतने दिन?'
नसरुद्दीन ने कहा-'अब तुमने मुझे पकड़ा। यह तो झंझट का सवाल है।'
यह झंझट का सवाल है। लेकिन इसका जवाब मैं तुमसे एक सवाल पूछकर देना चाहता हूं। ' व्हाट हैव यू बीन डूइंग हियर?' तुम क्या कर रहे हो, यहां? हम तो सौ साल से, तुम्हारा... तो सुनते हैं अनंतकाल से तुम यहां हो? __ पाप न हो तो आदमी को लगता ही नहीं कि जिये कैसे। असंयम न हो तो आदमी को लगता ही नहीं कि जिये कैसे। अब महावीर जैसे लोग हमारी समझ के बाहर पड़ते हैं, इसका कारण है। इसका कारण एक्जिस्टेंशियल है। इंटेलेक्चुअल नहीं। उसका कारण बौद्धिक नहीं है कि वह हमारी समझ में नहीं आता। बुद्धि में बिलकुल समझ में आते हैं। फर्क हमारे जीने के ढंग का है। हमारी समझ में यह नहीं आता कि संयम, तो फिर जियेंगे क्या? न कोई स्वाद में रस रह जाएगा, न कोई संगीत में रस रह जाएगा, न कोई रूप आकर्षित करेगा, न भोजन पकारेगा. न वस्त्र बलाएंगे, महत्वाकांक्षा न रह जाएगी। तो फिर हम जियेंगे कैसे?
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि अगर महत्वाकांक्षा न रही, अगर बड़ा मकान बनाने का खयाल मिट गया, अगर और सुंदर होने का खयाल मिट गया, तो जियेंगे कैसे! अगर और धन पाने का खयाल मिट गया, तो जियेंगे कैसे! हमें लगता ही यह है कि पाप ही जीवन की विधि है, असंयम ही जीवन का ढंग है। इसलिए हम सुन लेते हैं कि संयम की बात अच्छी है, लेकिन वह कहीं हमें छू नहीं पाती। हमारे अनुभव से उसको कोई मेल नहीं है। और वह हमारा सवाल ठीक ही है क्योंकि जब भी हमें संयम का खयाल उठता है तो लगता है, निषेध–यह छोड़ो, वह छोड़ो, यह छोड़ो। यही तो हमारा जीवन है। सब छोड़ दें! तो फिर जीवन कहां है! यह निषेधात्मक होने की वजह से हमारी तकलीफ है। मैं नहीं कहता कि यह छोड़ो, यह छोड़ो, यह छोड़ो। मैं कहता हूं, यह भी पाया जा सकता है, यह भी पाया जा सकता है, यह भी पाया जा सकता है। इसे पाओ। हां, इस पाने में कुछ छूट जाएगा, निश्चित। लेकिन तब खाली जगह नहीं छूटेगी। तब भीतर एक नया फुलफिलमेंट, एक नया भराव होगा। _ और हमारी सभी इंद्रियां एक पैटर्न में, एक व्यवस्था में जीती हैं। अगर आपको अतींद्रिय दृश्य दिखाई पड़ने शुरू हो जाएं तो ऐसा नहीं कि सिर्फ आंख से छुटकारा मिलेगा। नहीं, जिस दिन आंख से छुटकारा मिलता है उस दिन अचानक कान से भी छुटकारा मिलना शुरू हो जाता है। क्योंकि अनुभव का एक नया रूप जब आपके खयाल में आता है कि आंख के जगत में भी भीतर का दर्शन है, तो फिर कान के जगत में भी भीतर की ध्वनि होगी, भीतर का नाद होगा। फिर स्पर्श के जगत में भी भीतर के जगत का स्पर्श होगा। फिर संभोग के जगत में भी भीतर की समाधि होगी। वह तत्कालखयाल में आना शुरू हो जाता है। जब एक जगह से ढांचा टूट जाए
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