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________________ संयम की विधायक दृष्टि संयम को चुनें। अपने को खोजें। सिद्धांत का बहुत आग्रह न रखें, अपने को खोजें। अपनी इंद्रियों को खोजें। अपने बहाव देखें कि मेरी ऊर्जा किस तरफ बहती है; उससे लड़ें मत, वही आपका मार्ग बनेगा। उससे ही पीछे लौटें और विधायक रूप से अतींद्रिय का थोड़ा अनुभव शुरू करें। और प्रत्येक व्यक्ति के पास अतींद्रिय क्षमता है - उसे पता हो, न पता हो। और प्रत्येक व्यक्ति चमत्कारी रूप से अतींद्रिय प्रतिभा से भरा हुआ है। जरा कहीं द्वार खटखटाने की जरूरत है और खजाने खुलने शुरू हो जाते हैं। और जैसे ही यह होता है वैसे ही इंद्रियों का जगत फीका हो जाता है। ___ एक दो-तीन बातें संयम के संबंध में और, क्योंकि कल हम तप की बात शुरू करेंगे। आदमी भूलें भी नयी-नयी नहीं करता है, पुरानी ही करता है-भूलें भी। जड़ता का इससे बड़ा और क्या प्रमाण होगा? अगर आप जिंदगी में लौटकर देखें तो एक दर्जन भल से ज्यादा भूलें आप न गिना पाएंगे। हां, उन्हीं-उन्हीं को कई बार किया। ऐसा लगता है कि अनुभव से हम कुछ सीखते ही नहीं। और जो अनुभव से नहीं सीखता वह संयम में नहीं जा सकेगा। संयम में जाने का अर्थ ही यह है कि अनुभव ने बताया कि असंयम गलत था; कि अनुभव ने बताया कि असंयम दुख था; कि अनुभव ने बताया कि असंयम सिर्फ पीड़ा थी और नरक था। लेकिन हम तो अनुभव से सीखते ही नहीं। अच्छा हो कि मैं मुल्ला की बात आपसे कहूं। __ साठ वर्ष का हो गया है, मुल्ला। काफी हाउस में मित्रों के पास बैठकर गपशप कर रहा है एक सांझ। गपशप का रुख अनेक बातों से घूमता इस बात पर आ गया कि एक बूढ़े मित्र ने पूछा-सभी बूढ़े हैं, साठ साल का नसरुद्दीन है, उसके मित्र हैं-एक बूढ़े ने पूछा कि नसरुद्दीन, तुम्हारी जिंदगी में कोई ऐसा मौका आया, तुम्हें खयाल आता है कि जब तुम बड़ी परेशानी में पड़ गए होगे-बहुत आकवर्ड मोमेंट? नसरुद्दीन ने कहा-सभी की जिंदगी में आता है। लेकिन तुम अपनी जिंदगी का कहो तो हम भी कहें। तो सभी बूढ़ों ने अपनी-अपनी जिंदगी के वे क्षण बताए जब वे बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं, जहां कुछ निकलने का रास्ता न रहा। कभी किसी ने कोई चोरी की और रंगे हाथों पकड़ा गया। कभी कोई झठ बोला और झठ नग्नता से प्रगट हो गया और कोई उपाय न रहा, उसको बचाने का। __ नसरुद्दीन ने कहा कि मुझे भी याद है। घर की नौकरानी स्नान कर रही है और मैं ताली के छेद से उसको देख रहा था। मेरी मां ने मुझे पकड़ लिया। उस वक्त मेरी बुरी हालत हुई। बूढ़े हंसे। आंखें मिचकाई। उन्होंने कहा—'नहीं, इसमें कोई इतने परेशान मत होओ। सभी की जिंदगी में, बचपन में ऐसे मौके आ जाते हैं।' नसरुद्दीन ने कहा—'व्हाट आर यू सेइंग? दिस इज अबाउट यस्टर्डे । क्या कह रहे हो, बचपन! यह कल की ही बात है।' बचपन और बुढ़ापे में चालाकी भला बढ़ जाती हो, भूलें नहीं बदलतीं। वही भूलें हैं। हां, बूढ़ा जरा होशियार हो जाता है और पकड़ में कम आता है, यह दूसरी बात है। लेकिन इससे बच्चा कम होशियार है, पकड़ में जल्दी आ जाता है। अभी उसके पास उपाय चालाकी के ज्यादा नहीं हैं। या यह भी हो सकता है कि बच्चे को पकड़नेवाले लोग हैं, बूढ़े को पकड़नेवाले लोग नहीं हैं। बाकी कहीं अनुभव में कुछ भेद पड़ता हो , ऐसा दिखाई नहीं पड़ता। नसरुद्दीन मरा। स्वर्ग के द्वार पर पहुंचा। सौ वर्ष के ऊपर होकर मरा। काफी जीया। कथा है कि सेंट पीटर ने, जो स्वर्ग के दरवाजे पर पहरा देते हैं, उन्होंने नसरुद्दीन से पूछा-काफी दिन रहे, बहुत दिन रहे, लंबा समय रहे, कौन-कौन-से पाप किए पृथ्वी पर? नसरुद्दीन ने कहा-पाप! किए ही नहीं। सेंट पीटर ने समझा कि शायद पाप बहुत जनरलाइज बात है, खयाल में न आती हो। बूढ़ा आदमी है। बाका बढ़ हसा आख 125 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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