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संयम : मध्य में रुकना
परिचित हो जाना संयम है।
संयम इसे क्यों नाम दिया है? संयम नाम बहुत अर्थपूर्ण है और संयम का, संयम शब्द का अर्थ भी बहुत महत्वपूर्ण है। अंग्रेजी में जितनी भी किताबें लिखी गयी हैं और संयम के बाबत जिन्होंने भी लिखा है, उन्होंने उसका अनुवाद कंट्रोल किया है जो कि गलत
प्रेजी में सिर्फ एक शब्द है जो संयम का अनवाद बन सकता है. लेकिन भाषाशास्त्री को खयाल में नहीं आएगा। क्योंकि भाषा की दृष्टि से वह ठीक नहीं है। अंग्रेजी में जो शब्द है क्विलिटी, वह संयम का अर्थ हो सकता है। संयम का अर्थ है- इतना शांत कि विचलित नहीं होता, जो। संयम का अर्थ है- अविचलित, निष्कंप। संयम का अर्थ है - ठहरा हुआ। गीता में कृष्ण ने जिसे स्थितप्रज्ञ कहा है, महावीर के लिए वही संयम है। संयम का अर्थ है- ठहरा हुआ, अविचलित, निष्कंप, डांवाडोल नहीं होता है, जो। जो यहां-वहां नहीं डोलता रहता, जो कंपित नहीं होता रहता, जो अपने में ठहरा हुआ है। जो पैर जमाकर अपने में खड़ा हुआ है। ___ इसे हम और दिशा से समझें तो खयाल में आ जाएगा। अगर संयम का ऐसा अर्थ है तो असंयम का अर्थ हुआ कंपन, वेवरिंग, टेंबलिंग। यह जो कंपता हुआ मन है, और कंपते हुए मन का नियम है कि वह एक अति से दूसरी अति पर चला जाता है। अगर कामवासना में जाएगा तो अति पर चला जाएगा। फिर ऊबेगा, परेशान होगा- क्योंकि किसी भी वासना में होना संभव नहीं है सदा के लिए। सब वासनाएं उबा देती हैं, सब वासनाएं घबरा देती हैं क्योंकि उनसे मिलता कुछ भी नहीं है। मिलने के जितने सपने थे, वे और टूट जाते हैं। सिवाय विफलता और विषाद के कुछ हाथ नहीं लगता। तो वासना घिरा मन अति पर जाता है, फिर वासना से ऊब जाता है, घबड़ा जाता है फिर दूसरी अति पर चला जाता है। फिर वह वासना के विपरीत खड़ा हो जाता है। कल तक ज्यादा खाता था, फिर एकदम अनशन करने लगता है।
इसलिए ध्यान रखना, अनशन की धारणा सिर्फ ज्यादा भोजन उपलब्ध समाजों में होती है। अगर जैनियों को उपवास और अनशन अपील करता है तो उसका कारण यह नहीं है कि वे महावीर को समझ गये हैं कि उनका क्या मतलब होता है। उसका कुल मतलब इतना है कि वह ओवर-फैड समाज है। ज्यादा उनको खाने को मिला हुआ है, और कोई कारण नहीं है। कभी आपने देखा है, गरीब का जो धार्मिक दिन होता है, उस दिन वह अच्छा खाना बनाता है। और अमीर का जो धार्मिक दिन होता है, उस दिन वह उपवास करता है। अजीब मामला है। अजीब मजा है। तो जितने गरीब धर्म हैं दुनिया में, उनका उत्सव का दिन ज्यादा भोजन का दिन है। जितने अमीर धर्म हैं दुनिया में, उनके उत्सव का दिन उपवास का दिन है। जहां-जहां भोजन बढ़ेगा वहां-वहां उपवास का कल्ट बढ़ता है। आज अमरीका में जितने उपवास का कल्ट है, आज दुनिया में कहीं भी नहीं है। अमरीका में जितने लोग आज उपवास की चर्चा करते हैं और फास्टिंग की सलाह देते हैं, नैचरोपैथी पर लोग उत्सुक होते हैं, उतने दुनिया में कहीं भी नहीं। उसका कारण है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि आप महावीर को समझकर उत्सुक हो रहे हैं। आप ज्यादा खा गये हैं, इसलिए उत्सुक हो रहे हैं। दूसरी अति पर चले जाएंगे। पर्युषण आएगा, आठ दिन, दस दिन आप कम खा लेंगे और दस दिन योजनाएं बनाएंगे खाने की, आगे। और दस दिन के बाद पागल की तरह टूटेंगे और ज्यादा खा जाएंगे और बीमार पड़ेंगे। फिर अगले वर्ष यही होगा।
सच तो यह है कि ज्यादा खानेवाला जब उपवास करता है तो उससे कुछ उपलब्ध नहीं होता, सिवाय इसके कि उसको भोजन करने का रस फिर से उपलब्ध हो, रीओरिएंटेशन हो जाता है। आठ-दस दिन भूखे रह लिये, स्वाद जीभ में फिर आ जाता है। और महावीर कहते हैं- उपवास में रस से मुक्ति होनी चाहिए, उनका रस और प्रगाढ़ हो जाता है। उपवास में सिवाय रस के बाबत आदमी और कुछ नहीं सोचता, रस चिंतन चलता है और योजना बनती है। भूख जगती है, और कुछ नहीं होता। मर गयी भूख, स्टिल हो गयी
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