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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 नहीं हैं। महावीर के लिए संयम और है। उसकी हम बात करें, लेकिन हम जिसे संयम समझते हैं उसको भी हम खयाल में ले लें। हमारे लिए संयम का अर्थ है- अपने से लड़ता हुआ आदमी; महावीर के लिए संयम का अर्थ है- अपने साथ से राजी हुआ आदमी। हमारे लिए संयम का अर्थ है-अपनी वृत्तियों को संभालता हआ आदमी; महावीर के लिए संयम का अर्थ है-अपनी वृत्तियों का मालिक हो गया जो। संभालता वही है, जो मालिक नहीं है। संभालना पड़ता ही इसलिए है कि वृत्तियां अपनी मालकियत रखती हैं। लड़ना पड़ता इसीलिए है कि आप वृत्तियों से कमजोर हैं। अगर आप वृत्तियों से ज्यादा शक्तिशाली हैं तो लड़ने की जरूरत नहीं रहती। वृत्तियां अपने से गिर जाती हैं। महावीर के लिए संयम का अर्थ है- आत्मवान, इतना आत्मवान कि वृत्तियां उसके सामने खड़ी भी नहीं हो पाती, आवाज भी नहीं दे पातीं। उसका इशारा पर्याप्त है। ऐसा नहीं है कि उसे क्रोध को दबाना पड़ता है, ताकत लगाकर। क्योंकि जिसे ताकत लगाकर दबाना पड़े, उससे हम कमजोर हैं। और जिसे हमने ताकत लगाकर दबाया है, उसे हम कितना ही दबायें, हम दबा न पाएंगे। वह आज नहीं कल टूटता ही रहेगा, फूटता ही रहेगा, बहता ही रहेगा। महावीर कहते हैं : संयम का अर्थ है- आत्मवानइतना आत्मवान है व्यक्ति कि क्रोध क्षमता नहीं जटा सकता कि उसके सामने आ जाए। ___ एक कालेज में मैं था। वहां एक बहुत मजेदार घटना घटी। उस कालेज के प्रिंसिपल बहुत शक्तिशाली आदमी थे। बहुत दिन से प्रिंसिपल थे। उम्र भी हो गयी रिटायर होने की, लेकिन वे रिटायर नहीं होते थे। प्राइवेट कालेज था। कमेटी के लोग उनसे डरते थे। प्रोफेसर उनसे डरते थे। फिर दस-पांच प्रोफेसरों ने इकट्ठा होकर कुछ ताकत जटाई। और उनमें से जो सबसे ताकतवर प्रोफेसर था, उसको आगे बढ़ाने की कोशिश की और कहा कि तुम सबसे ज्यादा पुराने भी हो, सीनियर मोस्ट भी हो, तुम्हें प्रिंसिपल होना चाहिए और इस आदमी को अब हटना चाहिए। सारे प्रोफेसरों ने ताकत लगाकर...मैंने उनसे कहा भी कि देखो, तुम झंझट में पड़ोगे, क्योंकि मैं जानता हूं कि तुम सब कमजोर हो। और जिस आदमी को तुम आगे बढ़ा रहे हो, वह आदमी बिलकुल कमजोर है। फिर भी वे नहीं माने। उन्होंने कहासब संगठित हैं, संगठन में शक्ति है। सारे प्रोफेसर प्रिंसिपल के खिलाफ इकट्ठे हो गये और एक दिन उन्होंने कालेज पर कब्जा भी कर लिया। और जिन सज्जन को चुना था, उनको प्रिंसिपल की कुर्सी पर बिठा दिया। मैं देखने पहुंचा कि वहां क्या होनेवाला है। जो प्रिंसिपल थे उन्हें ठीक वक्त पर, उनके घर खबर कर दी गयी कि ऐसा-ऐसा हुआ है। उन्होंने कहा, हो जाने दो। वे ठीक वक्त पर ग्यारह बजे, जैसे रोज आते थे, आये दफ्तर में। वे दफ्तर में आये तो जिसको बिठाला था, उस आदमी ने उठकर नमस्कार किया और कहा - आइये, बैठिये। वह तत्काल हट गया वहां से। उस प्रिंसिपल ने नहीं की। इन लोगों ने खबर कर रखी थी कि कोई गड़बड़ हो तो...! मैंने उनसे पूछा कि आपने पुलिस को खबर नहीं की? उन्होंने कहाइन लोगों के लिए पुलिस को खबर! इनको जो करना है, करने दो। ___ शक्ति जब स्वयं के भीतर होती है तो वृत्तियों से लड़ना नहीं पड़ता। वृत्तियां आत्मवान व्यक्ति के सामने सिर झुकाकर खड़ी हो जाती हैं; वे तो कमजोर आत्मा के सामने ही सिर उठाती हैं। इसलिए तो हमने आमतौर से सुन रखी है परिभाषा संयम की- कि जैसे कोई सारथी रथ में बंधे हुए घोड़ों की लगामें पकड़े हुए बैठा है- ऐसा अर्थ संयम का नहीं है। वह दमन का अर्थ है, और गलत है। संयम का महावीर के लिए तो अर्थ है- जैसे कोई शक्तिवान अपनी शक्ति में प्रतिष्ठित है। उसकी शक्ति में प्रतिष्ठित होना ही, उसका अपनी ऊर्जा में होना ही वृत्तियों का निर्बल और नपुंसक हो जाना है, इम्पोटेंट हो जाना है। महावीर अपनी कामवासना पर वश पाकर ब्रह्मचर्य को उपलब्ध नहीं होते। ब्रह्मचर्य की इतनी ऊर्जा है कि कामवासना सिर नहीं उठा पाती। यह विधायक अर्थ है। महावीर अपनी हिंसा से लड़कर अहिंसक नहीं बनते। अहिंसक हैं, इसलिए हिंसा सिर नहीं उठा पाती। महावीर अपने क्रोध से लड़कर क्षमा नहीं करते। क्षमा की इतनी शक्ति है कि क्रोध को उठने का अवसर कहां है! महावीर के लिए अर्थ है- स्वयं की शक्ति से 102 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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