SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 76 जिन सूत्र भाग: 2 और एक अजीब आनंद से भर जाता हूं। यह सब क्या है ? ने जीवन में कुछ भी हम सहजता से स्वीकार नहीं करते । बड़ा चित्रकार हुआ पिकासो । एक चित्र बना रहा था। किसी पूछा, यह क्या है? पिकासो ने अपने सिर से हाथ मार लिया। और कहा कि कोई नहीं पूछता जाकर फूलों से और कोई नहीं पूछता पक्षियों से, मेरे पीछे क्यों पड़े हो ? कोई नहीं पूछता इंद्रधनुषों से कि क्या है ? क्यों ? पिकासो की बात में अर्थ है। पिकासो यह कह रहा है, यह मेरे आनंद का उद्भव है। क्या है, क्यों है, मुझे कुछ पता नहीं । । पश्चिम का एक बहुत बड़ा विचारक कवि हुआ, कूलरिज कूलरिज से किसी ने पूछा- एक प्रोफेसर ने― कि तुम्हारी कविता को मैं पढ़ाता हूं यूनिवर्सिटी में, अर्थ मेरी पकड़ में नहीं आते, अर्थ क्या है? कूलरिज ने कहा तुम जरा देर से आये । जब मैंने इसे लिखा था, तो दो आदमियों को पता थे इसके अर्थ । अब केवल एक को पता है। तो उसने कहा कि निश्चित वह एक तुम हो। तुमने ही यह कविता लिखी, तुम तो मुझे बता दो । कूलरिज ने कहा, वह एक मैं नहीं हूं। जब मैंने लिखी तो मुझे और परमात्मा को पता था। अब केवल परमात्मा को पता है । अब मुझे भी पता नहीं। मैं खुद ही सोचता हूं कि इसका अर्थ क्या है ? कई बार खुद ही मैं चकित हो जाता हूं। तुम भले आ गये। कई दफा मैं सोचता था जाकर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों से पूछ आऊं, वे तो अर्थ लोगों को समझाते हैं। अगर तुम्हें मुझे सुनते-सुनते मेरे चारों तरफ एक आभा का अनुभव हो, तो क्या जरूरी है कि प्रश्न बनाओ ही ? तो क्या जरूरी है कि तुम उसका उत्तर खोजो ही ? क्या इतना काफी नहीं है कि तुम उस आभा को पीओ और उसमें डूबो और तल्लीन हो जाओ ? अगर तुम्हें मेरे आसपास रंगों का एक इंद्रधनुष दिखायी पड़े, तो क्यों जल्दी से उसे तुम प्रश्न बना लेते हो ? प्रश्न का अर्थ है, संदेह । निष्प्रश्न का अर्थ है, श्रद्धा । अगर तुम्हारे मन में श्रद्धा हो, तो तुम जो देखोगे उसे तुम स्वीकार कर लोगे कि ठीक है, ऐसा है, इंद्रधनुष बना । और तुम आह्लादित होओगे। और तुम्हारे आह्लाद की कोई सीमा न होगी। और तुम प्रफुल्लित होओगे । और तुम किसी दूर की दूसरी दुनिया में उड़ने लगोगे । एक नये आकाश में तुम्हारे पंख खुल Jain Education International 2010_03 जायेंगे। लेकिन तत्क्षण प्रश्न खड़ा हो जाता है। प्रश्न यह है कि पता नहीं यह मामला क्या है ? कुछ धोखा है, कुछ जादू है, या मेरा मन सम्मोहित हो गया, या मेरी कल्पना है, या मैं कोई सपना देख रहा हूं ? लेकिन तुमने कभी खयाल किया कि जब तुम यह प्रश्न बनाओगे, वह इंद्रधनुष तुम्हारे लिए रुका न रहेगा। जब तुम प्रश्न बना रहे हो, इंद्रधनुष खो जाएगा। वह जो घड़ीभर के लिए झरोखा खुला था और अतींद्रिय दर्शन की संभावना बनी थी, वह तुम चूक गये। तुम सोच-विचार में खड़े रह गये । प्रश्नों से थोड़ा अपने को बचाओ। फुर्सत के समय कर लेना, जब कुछ भी न घट रहा हो जीवन में तब खूब प्रश्न कर लेना । जब कुछ घटता हो, तब प्रश्न को बीच में मत लाओ। क्योंकि उसके कारण दीवाल खड़ी हो जाती है। वही दीवाल तुम्हारीआंख पर पर्दा बन जाएगी। जो है, है । जो जैसा है, वैसा है। तथ्यों के आगे-पीछे मत जाओ, तथ्यों में प्रवेश करो। ये रूपहली छांव, ये आकाश पर तारों का जाल जैसे सूफी का तसव्वुर, जैसे आशिक का खयाल आह लेकिन कौन जाने, कौन समझे जी का हाल ऐ गमे - दिल क्या करूं, ऐ वहशते - दिल क्या करूं ये रूपहली छांव, ये आकाश पर तारों का जाल । जैसे सूफी का तसव्वुर... जैसे कोई सूफी ध्यान की मस्ती में डूबा हो।... . जैसे आशिक का खयाल । जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेयसी की भावना में डूबा हो। ऐसा ही है। ये रूपहली छांव, ये आकाश पर तारों का जाल । यह सब रहस्यमय है । यह सब परम रहस्य है। तुम प्रश्न मत उठाओ। तुम धीरे-धीरे रहस्य को चखो। स्वाद लो। तुम्हें हैरानी होगी। अगर मैं यहां बैठा-बैठा क्षणभर को तुम्हारे लिए खो जाता हूं और एक रंगों का जाल यहां प्रगट होता है, तो तुम प्रश्न मत उठाओ, यह मौका प्रश्न का नहीं है। यह मौका तो इन रंगों में उतर जाने का है। पूछ लेना पीछे, कल । कह दो मन को कि बाद में सोच लेंगे। अभी तो स्वाद ले लें। और उसी स्वाद में उत्तर मिलेगा। कल पूछने की जरूरत न रह जाएगी। और एक बार अगर तुम्हें उन रंगों में उतरने का पाठ पकड़ जाए, तुम एक सीढ़ी भी इस गहराई में उतर जाओ, तो जरूर नहीं है कि फिर तुम मेरे पास ही उन रंगों को देखो। अगर तुम किसी वृक्ष को भी इतनी ही शांति और प्रेम से देखोगे, जैसा तुमने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy