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________________ हैं— क्षण- दो क्षण — फिर जल्दी ही चूक हो जाती है। मैं सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी मुल्ला की बड़ी प्रशंसा कर रही है। ऐसे दिन सौभाग्य के कम ही आते हैं कि पत्नी और पति की प्रशंसा करे! लेकिन मुल्ला बहुत डरा हुआ था, क्योंकि ऐसे सौभाग्य का मतलब होता है, कुछ न कुछ उपद्रव ! कुछ खर्चा करवा दे! या जरूर कुछ मतलब होगा पीछे। आखिर मतलब साफ हो गया। पत्नी ने कहा, अब बहुत हो गया, अब तुम खोजो, लड़की के लिए लड़का खोजना ही पड़ेगा। अब इस साल खाली नहीं जाना चाहिए। मुल्ला ने कहा कि क्या करूं, खोजता हूं, लेकिन गधों के अतिरिक्त कोई मिलता ही नहीं! तो पत्नी के से सच्ची बात निकल गयी। उसने कहा, अगर ऐसे ही मेरे पिता भी सोचते रहते तो मैं अनब्याही ही रह जाती ! | ज्यादा देर नहीं चला सकते। जल्दी ही असलियत बाहर आ जाती है। पूछना तो चाहते ही थे । बुद्धिमानी थोड़ी देर सम्हाली । दो लाइन चली। तीसरी लाइन में लंगड़ा गयी। पूछ ही बैठे। इसे थोड़ा समझना । मन की इस बात को समझना । कैसा लंगड़ाता हुआ मन है ! अगर सच में ही पूछने को न था तो यह प्रश्न लिखने की कोई जरूरत ही न थी । और अगर पूछने को कुछ था, तो यह बुद्धिमानी दिखाने की कोई जरूरत नहीं। ऐसा द्वंद्व क्यों पालते हो? ऐसे दोहरे क्यों होते हो? ऐसे दोहरे में खतरा है। ऐसे में तुम टूट-टूट जाओगे, खंड-खंड हो जाओगे। रहोगे कुछ, दिखाओगे कुछ। बोलोगे कुछ, भीतर होगा कुछ । यही तो मनुष्य का बड़े से बड़ा विषाद है। पूछना हो तो पूछो। न पूछना हो तो मत पूछो। यह बीच में दोनों के डांवांडोल होना खतरनाक है। लेकिन, जब पूछा है, प्रेम में प्रश्न हो, उत्तर हो या चुप्पी ? प्रेम में न तो प्रश्न है, न उत्तर है, न चुप्पी है। प्रेम चुप भी नहीं है और बोलता भी नहीं। प्रेम बड़ा विरोधाभास है। प्रेम बोलता भी नहीं, क्योंकि जो बोलना है वह बोलने में आता नहीं। और प्रेम चुप भी नहीं है, क्योंकि बोलने को बहुत कुछ है, जो बोलने में आता नहीं। तो प्रेम लबालब भरा है। बह जाना चाहता है। कूल - किनारे तोड़ देना चाहता है। दो प्रेमियों को पास-पास बैठे देखा? नहीं बोलते, इसलिए नहीं कि बोलने को कुछ नहीं है। नहीं बोलते इसलिए कि बोलने को इतना कुछ है, कैसे बोलें? और बोलने को कुछ ऐसा है कि Jain Education International 2010_03 बोलते से ही गंदा हो जाता है। शब्द उसे कुरूप कर देते हैं। उसे मौन में ही संवादित किया जा सकता है। उसे चुप रहकर ही कहा जा सकता है। लेकिन चुप्पी मुखर है। मौन भाषा है। शब्द तो शोर है तमाशा है भाव के सिंधु में बताशा है मर्म की बात ओंठ से न कहो मौन ही भावना की भाषा है किनारा भीतर है। लेकिन भाषा ही है मौन भी। मौन भी बोलता है। बड़ी प्रगाढ़ता से बोलता है। तुमने अगर कभी मौन को सुना नहीं, तो तुमने कुछ भी नहीं सुना। तुम जीवन के संगीत से अपरिचित ही रह गये । तुमने रात के सन्नाटे को सुना है? कैसा बोलता हुआ होता है ! वृक्षों में हवा भी नहीं होती, हवा के झोंके भी नहीं होते, एक पत्ता भी नहीं हिलता... अभी इस क्षण कोई हवा का झोंका नहीं है, पत्ता भी नहीं हिल रहा है, लेकिन वृक्ष मौन हैं, चुप हैं ? फूल खिले हैं, बोल रहे हैं। शब्द नहीं हैं, शोर नहीं है, अभिव्यक्ति तो है ही । चीन में कहावत है कि जब संगीतज्ञ संपूर्ण रूप से कुशल हो जाता है, तो वीणा तोड़ देता है। क्योंकि फिर वीणा के कारण संगीत में बाधा पड़ने लगती है । फिर तो वीणा के स्वर भी शोरगुल मालूम होने लगते हैं । कहावत है कि जब तीरंदाज अपनी तीरंदाजी में संपूर्ण कुशल हो जाता है, तो धनुषबाण तोड़ देता है। क्योंकि फिर उससे निशाना नहीं लगता, निशाने में बाधा पड़ने लगती है। जीवन के चरम शिखर विरोधाभास के शिखर हैं। शब्द तो शोर है, तमाशा है भाव के सिंधु में बताशा है मर्म की बात ओंठ से न कहो मौन ही भावना की भाषा है रोओ, आंसू कह देंगे। नाचो, भावभंगिमा कह देगी। गुनगुनाओ... कल सांझ ऐसा हुआ। वाणी, एक संन्यासिनी, जर्मनी से आयी है। उससे मैंने पूछा, कुछ कहने को है? और मुझे लगा बहुत कुछ कहने को है उसके पास, हृदय भरा है। उतने दूर से आयी है। दो-चार दिन के लिए ही आ पायी है। ज्यादा देर रुक भी न सकेगी। दो-चार महीने में भागी चली आती है । दो-चार दिन के लिए समय मिलता, कभी एक दिन के लिए For Private & Personal Use Only 73 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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