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________________ इन दो स्तंभों पर आधारित था। इस मार्ग पर चल कर जो सूत्र जैसे महावीर धर्म के जगत के आइंस्टीन हों और आइंस्टीन उनके हाथ लगे, वे गणित और विज्ञान के सूत्र जैसे थे। वे स्वयं विज्ञान के जगत का महावीर हो।" में परिपूर्ण थे। उनकी परिपूर्णता के लिए किसी बाह्य उपकरण की | | संपूर्ण पुस्तक के पठन-पाठन से ओशो के इस कथन की आवश्यकता नहीं थी। उनका अनुसरण करके 'कैवल्य' तक | सत्यता प्रमाणित होती है। पहंच जाना निश्चित था। ओशो ने भगवान महावीर-प्रणीत पुस्तक के सभी प्रवचन एक से एक बढ़ कर हैं। उनके पढ़ने शास्त्रों को आध्यात्मिक ज्यामिति' कहा, अंतर्यात्रा की ज्यॉमेट्री। में एक निराले ढंग का आनंद अनुभव होता है, साथ ही भगवान जो वैज्ञानिक नहीं, उसे ओशो ने कभी मान्यता प्रदान नहीं | महावीर के सूत्रों के मर्म को समझने में सहायता मिलती है। की। यही कारण है कि उनका योगदान सार्वजनीन तथा प्रवचन अलग-अलग हैं, किंतु उनमें एकसूत्रता भी है। वे सार्वकालिक है। स्वर्ण को कंचन बनाने के लिए तपाना अनिवार्य | जीवन की समग्रता पर प्रकाश डालते हैं और उस मंजिल तक ले होता है। तपाने से उसका मैल छंट जाता है। ओशो ने भी अपनी जाने में सहायक होते हैं, जहां आत्मार्थियों को पहुंचना अभीष्ट भट्टी में तपा कर जहां भी मैल-मिलावट थी, उसे दूर किया और होता है। भगवान महावीर के सूत्रों को उनके विशुद्ध रूप में प्रस्तुत किया। यह पुस्तक पाठकों को एक नई दृष्टि प्रदान करती है और भगवान महावीर के शब्दों का अर्थ जहां बाहरी आवरणों में ढंक गली-कचों से निकल कर जीवन के राज-मार्ग पर चलने को गया था, वहां उन्होंने आवरण को हटा कर उनमें अर्थ भरा और प्रेरित करती है। इस प्रकार उनके शब्दों को सार्थक किया। __उस दिन एक भाई पूछ रहे थे कि ओशो ने प्रवचन क्यों इस पुस्तक में भगवान महावीर के परम तेजस्वी व्यक्तित्व दिए? लिखा क्यों नहीं? और उनकी दर्धर्ष साधना के दर्शन होते हैं। उनके व्यक्तित्व और इसका ठीक-ठीक उत्तर तो ओशो ही दे सकते थे. लेकिन साधना के नए-नए आयाम और ऊंचाइयां हैं। आयामों को देखते मैंने उनसे कहा कि व्यक्ति लिखता मस्तिष्क से है, परंतु बोलता और ऊंचाइयों को चढ़ते हुए साधक एक विचित्र उन्मेष का हृदय से है। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ओशो के अनुभव करता है। अपनी अनुपम मेधा से ओशो उस उन्मेष को इन प्रवचनों में उनके हृदय का स्पंदन सुनाई देता है। और भी स्पृहणीय बना देते हैं। ___ यह पुस्तक सब धर्मों, विश्वासों तथा मान्यताओं के भगवान महावीर की वैज्ञानिकता तथा उनकी अनिर्वचनीय अनुयायियों के लिए मंगलदायी है, कल्याणकारी है। ऊंचाइयों और गहराइयों के विषय में ओशो ने कहा है : “जब मैं अल्बर्ट आइंस्टीन का नाम लेता हूं महावीर के यशपाल जैन साथ, तो और भी कारण हैं। दोनों की चिंतन-धारा एक जैसी है। महावीर ने अध्यात्म में सापेक्षवाद ('रिलेटिविटी') को जन्म दिया, | यशपाल जी ने एक यशस्वी जीवन जिया है और उनकी और आइंस्टीन ने भौतिक विज्ञान में 'रिलेटिविटी' (सापेक्षवाद) | सुदीर्घ शब्द-साधना अनेक परवर्ती लेखकों का पाथेय बनी है। को जन्म दिया। दोनों का चिंतन-ढंग, दोनों की सोचने की | एक सुपथगा सरिता की तरह श्री यशपाल जैन की प्रतिभा । तर्क, एक जैसा है। अगर इस दनिया में दो सहज प्रवाहित हई है. वाणी के घाटों को तीर्थ करती हई। हिंदी आदमियों का मेल खाता हो बहुत निकट से तो महावीर और वांग्मय के एक युग विशेष को इनके अनवरत अथक परिश्रम आइंस्टीन का खाता है। महावीर का फिर से अध्ययन होना | ने सफलतापूर्वक रेखांकित किया है। चाहिए आइंस्टीन के आधार पर। तो महावीर में बड़े नए-नए संप्रति, श्री यशपाल जी सत्साहित्य की प्रमुख प्रकाशन तरंगों का, नए उद्भावों का जन्म होगा। जो हमें महावीर में | संस्था, 'सस्ता साहित्य मंडल' के मंत्री हैं और इनकी अनुभव दिखाई नहीं पड़ा था, वह आइंस्टीन के सहारे दिखाई पड़ सकता सिद्ध प्रतिभा का लाभ हिंदी के सुधी पाठकों को सतत प्राप्त हो है। महावीर और आइंस्टीन में जैसे धर्म और विज्ञान मिलते हैं. रहा है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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