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________________ दो शब्द प्रस्तुत पुस्तक में ओशो (भगवान रजनीश) के इकत्तीस प्रवचन हैं। यद्यपि ये प्रवचन 'समण-सुत्तं' की गाथाओं पर दिए |गए थे, तथापि उन्होंने उन गाथाओं की मात्र व्याख्या नहीं की, उनमें उनका गहन तथा सूक्ष्म मौलिक चिंतन मुखरित हुआ है। आचार्य से ओशो तक की रजनीश की यात्रा जितनी लंबी है, उतनी ही उतार-चढ़ावों से भरी हुई है। इस यात्रा में वे ऊंचे-ऊंचे पर्वतों पर चढ़े हैं, गहरी उपत्यकाओं में घूमे हैं, सघन | वनों में विचरे हैं और सागर की अतल गहराइयों में उन्होंने डुबकी लगाई है। लेकिन ये पर्वत, ये उपत्यकाएं और ये सागर भौतिक जगत के नहीं हैं, उस लोक के हैं, जहां महावीर, बुद्ध, ईसा, जरथुस्त्र प्रभृति ने विचरण किया था और उसके द्वारा जीवन के शाश्वत सत्यों को प्राप्त किया था। इन प्रवचनों को पढ़ते हुए पाठक अनुभव करता है कि ओशो उसे दृश्य जगत के आर-पार उस लोक में ले जाते हैं, जहां पहुंच कर मानव को पाने के लिए कुछ भी शेष नहीं रह जाता। वस्तुतः ओशो ने सामान्य जीवन नहीं जिया । वे घिसे-पिटे रास्ते पर नहीं चले। उन्होंने अपना रास्ता स्वयं बनाया और | निर्भीकतापूर्वक उस पर अग्रसर होते रहे। इस पुस्तक के प्रवचनों को पढ़ कर विस्मय होता है। कितना अध्ययन किया है ओशो ने धर्म, दर्शन, विज्ञान, इतिहास, साहित्य, संस्कृति, कला, आदि का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जो उनसे अछूता बचा । वे विद्या- व्यसनी रहे, उनका विशाल पुस्तकालय इसका प्रमाण है। उसकी अनगिनत पुस्तकों Jain Education International 2010_03 में सभी पुस्तकें उनकी पढ़ी हुई हैं। वेद, उपनिषद, पुराण, महाभारत, गीता, बाइबिल, धम्मपद, ग्रंथसाहिब आदि सब कुछ उन्होंने आत्मसात कर लिया है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने धर्म-ग्रंथों में लिखे शब्द को यथावत स्वीकार नहीं किया। उस शब्द की भावना को अपने मौलिक चिंतन की कसौटी पर कसा और उसके गूढ़ अर्थ को प्रकट किया। उनकी दृष्टि एक वैज्ञानिक की दृष्टि है। वही दृष्टि इस पुस्तक में दिखाई देती है। ओशो सबसे बड़ी विजय आत्म-विजय मानते हैं। जिन वही है, जिसने अपने को जीत लिया है। अपने को जीतने के लिए मन को जीतना होता है, वासनाओं को जीतना होता है, इंद्रियों को जीतना होता है। इस परमोपलब्धि के लिए मार्ग-निर्देश करते हैं जिन सूत्र, जिन्हें भगवान महावीर ने सम्यक रूप में प्रस्तुत किया है। आत्मार्थियों के लिए ये सूत्र अभूतपूर्व हैं, अप्रतिम हैं, अनूठे हैं। अपने प्रवचनों में ओशो ने इन सूत्रों को बड़े ही सरल शब्दों और सुबोध शैली में जन-जन के लिए बोध-गम्य बना दिया है। गूढ़-से- गूढ़ तत्वों को इतना सुगम बना दिया है कि वे सहज ही गले उतर जाते हैं। बीच-बीच में वे कहीं मुल्ला नसरुद्दीन की कहानियों का सहारा लेते हैं, कहीं बुद्ध के जीवन की घटनाओं का, कहीं किसी अन्य संतों के प्रसंगों का। कहने का तात्पर्य यह कि उनका विषय-प्रतिपादन अत्यंत सजीव और जीवंत बन जाता है। भगवान महावीर का संपूर्ण जीवन संकल्प और समर्पण, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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