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ज्ञान है परमयोग
तो महावीर की बड़ी अधूरी तस्वीर लोगों के हाथ में है और अधूरी ही नहीं, गलत तस्वीर हाथ में है। लोग कहते हैं, महावीर महात्यागी। मैं तमसे कहता हं, इतने बड़े महाभोगी कभी-कभी होते हैं। उन्होंने परमसत्य को भोगा। परमसत्ता को भोगा।
जो अप्पाणं जाणदि, असुइ-सरीरादु तच्चदो भिन्नं। जाणग-रूव-सरूवं, सो सत्थं जाणदे सव्वं।। एदम्हि रदो णिच्चं, संतुट्ठो होहि णिच्चमेदम्हि। एदेण होहि तित्तो, होहिदि तुह उत्तम सोक्ख।। किसने उनके उत्तम सुख को देखा? किसने देखा उनके स्वर्ग को? लेकिन वह देखा भी नहीं जा सकता बाहर से। बाहर से तो लौटती बारात दिखायी पड़ती है। शतरंज के मोहरे दिखायी पड़ते हैं। खिलाड़ी तो भीतर छिपा है। दल्हन तो डोली में है।
चल रहे हैं जो उन्हें चल के डगर से देखो तैरनेवाले को तट सेन, लहर से देखो।
आज इतना ही।
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