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जिन सूत्र भाग: 2
पैर फिसल गया, काई जमी थी घाट पर, गिर पड़ा। भागा वहां | वसंत को जिसने देख लिया, फिर एक-एक कली और से। जो सिखाने उसे ले गया था उसने कहा, कहां जा रहे हो? एक-एक फूल को थोड़े ही गिनता फिरता है। आ गया वसंत। नसरुद्दीन ने कहा, हो गया। अब जब तक तैरना सीख न लूं, वसंत को पूरा जिसने देख लिया, सब फूल समा गये उसमें। नदी के पास भी न फटकूँगा। यह तो खतरनाक मामला है, अभी ध्यान रहे, खंडों का जोड़ नहीं है पूर्ण। खंडों के जोड़ से बहुत पैर फिसल गया, अगर पानी में चले गये होते तो गये। अब ज्यादा है पूर्ण। वसंत सभी फूलों और कलियों का जोड़ नहीं है, आनेवाला नहीं हूं। अब तैरकर, सीखकर ही आऊंगा। लेकिन वसंत कलियों और फूलों के जोड़ से ज्यादा है। वसंत बहुत उस आदमी ने कहा, तुम तैरना सीखोगे कहां? कोई गद्दे-तकियों विराट है। कलियों और फूलों में तो थोड़ी-थोड़ी झलक पड़ी है, पर तो आदमी तैरना सीखता नहीं। कितने ही हाथ-पैर तड़फाओ थोड़ी प्रतिछवि आयी है। कलियों और फूलों में तो थोड़ा-सा गद्दे-तकियों पर, उससे तैरना न आएगा। सुविधापूर्ण है वैसा | प्रतिबिंब बना है, थोड़ी लहर गूंजी है। तैरना, खतरा बिलकुल नहीं है-अपने गद्दे-तकियों पर चमन को देख तो फिर फूल-पात को न देख हाथ-पैर फेंक रहे हैं, कौंन क्या करेगा? डूबने का कोई डर नहीं यानी पहचान खिलाड़ी को बस बिसात न देख है। लेकिन डूबने का जहां डर न हो, वहां तैरना आता ही नहीं। महावीर हैं, बुद्ध हैं, बड़ी उनकी बिसात है। शतरंज के मोहरे जितनी बड़ी जोखम, उतनी ही बड़ी आत्मा का जन्म होता है। बिछाकर बैठे हैं। तुम मोहरों को ही मत देखते रहना, खिलाड़ी वह डूबने से ही तैरने की कला आती है। डूबने की संभावना से को देख। उनके शब्द तो मोहरे हैं शतरंज के। उनके सिद्धांत भी ही तैरने का सत्य पकड़ में आता है।
मोहरे हैं। उसी में मत उलझ जाना। अन्यथा तुम ऊपर-ऊपर रह जाओगे। दौड़नेवाले को किनारे यानी पहचान खिलाड़ी को बस बिसात न देख से बैठकर देख लोगे, तैरनेवाले को किनारे से बैठकर देख लोगे। मेरी डोली की गरीबी पे ओ हंसनेवाले। महावीर को ऐसे ही तो देखा तुमने। ऐसे ही तो तुम मुझ को भी मेरी दुल्हन को देख, लौटती बारात न देख देख रहे हो।
बहुत कम लोग हैं जिन्होंने महावीर की दुल्हन देखी। लौटती चमन को देख तो फिर फूल-पात को न देख...
बारात देखी। तो जैन-शास्त्रों में बड़ा उल्लेख है कि महावीर ने चमन को देख तो फिर फूल-पात को न देख
कितना त्याग किया-कितने घोड़े, कितने हाथी, कितने हीरे, यानी पहचान खिलाड़ी को बस बिसात न देख
कितने जवाहरात! बड़ी लंबी संख्याएं हैं। बड़े शून्यों पर शून्य मेरी डोली की गरीबी पे ओ हंसनेवाले!
रखे हैं। त्याग तो दिखा उन्हें, इसलिए बड़ा वर्णन किया है। मेरी दुल्हन को देख, लौटती बारात न देख
लेकिन यह लौटती बारात है। इसको तो महावीर छोड़कर चले लेकिन दुल्हन बड़ी भीतर है। डोली ही दिखायी पड़ती है, गये। इसमें तो उन्हें कुछ भी न दिखा। बारात दिखायी पड़ती है। दुल्हन तो डोली में छिपी है। डोली जिसको महावीर ने छोड़ दिया, उसको जैनियों ने बड़े विस्तार कभी बहुत सजी-संवरी हो, अमीर की हो, तो भी जरूरी नहीं कि से लिखा है। इनको जरूर कुछ दिखता होगा, अन्यथा कौन दुल्हन भीतर हो ही। डोली गरीब की भी हो, रंग-रोगन सब उड़ कागज खराब करता है। यह लौटती बारात है। यह देख रहे हैं गया हो, तो भी दुल्हन हो सकती है।
कि कौन-कौन आए थे। प्रधानमंत्री थे बारात में, राष्ट्रपति थे, चमन को देख तो फिर फल-पात को न देख
गर्वनर थे, यह लौटती बारात देख रहे हैं, यह दूल्हे को भूल ही तुमने अगर मेरे शब्द-शब्द चुने, तो तुमने फूल-पात चुना। तो गये हैं! दुल्हन की तो बात ही दूर, दुल्हन तो दूर छिपी है चूंघट तुमने चमन को न देखा। तो यह बहार जो आयी थी तुम्हारे पास, | में, डोली में। महावीर के त्याग को तो देखा, महावीर के भोग को ऐसे ही गुजर गयी। तुमने खंड-खंड चुने, तुमने समग्र को न देखा? महावीर की दुल्हन देखी? महावीर ने जो छोड़ा, वह तो देखा।
तुमने गिन लिया! महावीर ने जो पाया, उसको गिना? वह तो चमन को देख तो फिर फूल-पात को न देख!
बिलकुल चूक गया।
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