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________________ जिन सूत्र भाग : 2 पी रहा है, कहता है बड़ा आनंद आ रहा है। कोई वेश्या का नृत्य दामिनी गई दमक देख रहा है, और कहता है बड़ा आनंद आ रहा है। अब कहो कि | मेघ बजे परमात्मा आनंद है तो इस आदमी के मन में कुछ ऐसे ही लगेगा, | अगर सत्पुरुषों के पास ऐसा कुछ हो जाए–मेघ बजे, दामिनी कि होगा कुछ वेश्या का नाच देखने जैसा, शराब पीने जैसा, चमके, कोई अनूठा नाद सुनाई पड़ने लगे, कोई अदृश्य की ताश खेलने जैसा। जरा बड़ा करके सोच लो। पुकार खींचने लगे, कोई चुनौती मिले तो फिर ललचायी आंखों लेकिन जो भेद होनेवाला है इसके आनंद में और सिद्ध के | से देखते ही मत रहना। आनंद में, इसकी कल्पना में, वह परिमाण का होगा, मात्रा का | फूले कदम्ब होगा। और सिद्धपुरुष का आनंद गुणात्मक रूप से भिन्न है। जाने कबसे वह बरस रहा मात्रा का भेद नहीं है। यह बात ही अनुपम है। ललचायी आंखों से नाहक इसलिए महावीर ठीक कहते हैं कि अनुपम है। तुम अपने | जाने कबसे तू तरस रहा किसी अनुभव से विचार मत करना। तुम्हारा कोई अनुभव | मन कहता है छू ले कदम्ब, मापदंड नहीं बन सकेगा। फूले कदम्ब यह निर्वाण तो जब घटता है तभी जाना जाता है। यह तो स्वाद | जब यह चाहत उठे, यह चाहत का ज्वार उठे तो रुकना मत। जब मिलता है तभी पहचाना जाता है। तोड़-ताड़ सारी जंजीरें चल पड़ना। छोड़-छाड़ सारा तो सत्परुषों के पास तम सिर्फ प्यास ले लो. बस काफी है। मोह-मायापाश चल पडना। लौटकर देखना भी मत। यह उनकी बातें सुन, उनके जीवन को अनुभव कर, उनकी उपस्थिति आह्वान मिल जाए सतपुरुषों से, बस इतना काफी है। से तुम सिर्फ प्यास ले लो, तो बस काफी है। उनके कारण तुम पर लोग अजीब हैं। शास्त्र लेते हैं, प्यास नहीं लेते। सिद्धांत उतावले हो उठो, व्यग्र हो उठो खोजने के लिए; बस काफी है। ले लेते हैं, सत्य की चुनौती नहीं लेते। उनसे सिद्धांत मत लेना; सिद्धांत मिल ही नहीं सकते। उनसे एक अपूर्व घटना है। इस जगत की सबसे अपूर्व घटना है शास्त्र मत लेना। शास्त्र बनाया कि भूल हो गई। उनसे तो प्यास किसी व्यक्ति का सिद्ध या बुद्ध हो जाना। इस जगत की अनुपम लेना जीवंत और चल पड़ना। घटना है किसी व्यक्ति का जिनत्व को उपलब्ध हो जाना, जिन हो मेघ बजे धिन-धिन धा धमक-धमक जाना। उस अपूर्व घटना के पास जला लेना अपने बुझे हुए दीयों दामिनी गई दमक को। अवसर देना अपने हृदय को, कि फिर धड़क उठे उस मेघ बजे, दादुर का कंठ खुला अज्ञात की आकांक्षा से, अभीप्सा से। तो शायद कभी तम जान धरती का हृदय धुला पाओ निर्वाण क्या है। बताने का कोई उपाय नहीं। मेघ बजे, पंक बना हरिचंदन लिखा-लिखी की है नहीं देखा-देखी बात फूले कदम्ब तुम देखोगे तो ही जानोगे। लिखा-लिखी में उलझे मत रह टहनी-टहनी में कंदुक सम फूले कदम्ब, जाना। समय मत गंवाना। ऐसे भी बहुत गंवाया है। फूले कदम्ब महावीर के इन सत्रों पर बात की है इसी आशा में कि तम्हारे जाने कबसे वह बरस रहा भीतर कोई स्वर बजेगा, तुम ललचाओगे, चाह उठेगी, चलोगे। ललचायी आंखों से नाहक पाना तो निश्चित है। पा तो लोगे, चलो भर। न चले तो जो सदा जाने कबसे तू तरस रहा से तुम्हारा है, उससे ही तुम वंचित रहोगे। चले तो जो मिलेगा मन कहता है छू ले कदम्ब, वह कुछ बाहर से नहीं मिलता, तुम्हारा ही था। सदा से तुम्हारा फूले कदम्ब था। भूले-भटके, भूले-बिसरे बैठे थे। अपने ही खजाने की मेघ बजे, धिन-धिन धा धमक-धमक खबर मिली। 646 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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