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________________ 602 जिन सूत्र भाग: 2 तुम मोक्ष की कीमत कितनी आंक रहे हो? मोक्ष का मतलब हुआ: बुहारी लगाकर बैठे पानी छानकर पीया = मोक्ष ? मोक्ष दो कौड़ी का कर दिया तुमने । बनता है— निन्यानबे पर भी भाप नहीं बनता, साढ़े निन्यानबे पर भी भाप नहीं बनता, ठीक सौ डिग्री पर बनता है। ऐसे ही तुम्हारे प्रयत्न की एक डिग्री है। तुम्हारी चेष्टा की एक डिग्री है, तुम्हारे नहीं, मोक्ष बड़ी घटना है। और उस बड़ी घटना की बड़ी तप की एक डिग्री है। ठीक उस जगह आकर अचानक रोशनी हो तैयारी जरूरी है। जाती है, अंधकार कट जाता है। उसके एक क्षण पहले तक गहन अंधेरी रात थी। + उस तैयारी का पहला कदम तुम उठाना शुरू करो। मैं कहता हूं कठिन है। क्योंकि अगर तुम जागकर चलना चाहोगे तो तुम पाओगे, क्षणभर भी नहीं चल पाते। अगर भोजन तुम होश से करना चाहोगे तो एकाध कौर कर लिया तो बहुत । फिर भटके, फिर भटके। लेकिन बार-बार लौटाते रहो! पकड़-पकड़कर अपने घर आते रहो। फिर जब याद आ जाए कि अरे! कहां चला गया? फिर चबाने लगे बिना होश के, फिर लौटकर आ जाओ। फिर हाथ शिथिल कर लो। फिर से अपने को जगाकर बैठ जाओ। फिर से भोजन शुरू कर दो। राह चलते-चलते एक कदम चलोगे, होश रहेगा, दूसरे कदम पर फिर बेहोशी आ गई, फिर कोई खयाल उतर आया, फिर किसी खयाल में खो गए। जब याद आ जाए, फिर अपने को सम्हाल लो। शुरू-शुरू में तो ऐसा ही होगा। पकड़ोगे, खोओगे; पकड़ोगे, खोओगे। हाथ लगेगा धागा, छूटेगा; छूटेगा हजार बार । तुम फिकिर मत करो । हजार बार छूटे, हजार बार पकड़ो। इससे हताश भी मत होना, क्योंकि यह बात ही ऐसी है कि सधते-सधते सधती है। यह बात इतनी मूल्यवान है कि यह एक दफा में सध जाती तो इसका कोई मूल्य ही न था । ये कोई मौसमी फूल नहीं हैं कि डाल दिए बीज और दो-चार सप्ताह में फूल आ । ये तो देवदार और चिनार के बड़े वृक्ष हैं, जो बहुत समय लेते हैं। बड़े होते हैं। आकाश को छूने जाते हैं। गए। मोक्ष से बड़ी और कोई घटना इस संसार में नहीं है, न इस संसार के बाहर है। मोक्ष महत्तम घटना है। इसलिए उसके लिए जितना भी श्रम किया जाए वह अंततः थोड़ा है। जब मोक्ष की उपलब्धि होती है तो पता चलता है, जो हमने किया था वह न कुछ था। हां, जब तक मिला नहीं है मोक्ष, तब तक ऐसा लगता है कि कितना कर रहे हैं, और कुछ भी नहीं हो रहा है... कुछ भी नहीं हो रहा है। और बात खयाल रखना, जैसे सौ डिग्री गर्मी पर पानी भाप Jain Education International 2010_03 हताश मत होना। लौट मत जाना। यह मत सोचना कि क्या फायदा ! हो सकता है, तुम सनतानबे डिग्री पर थे कि अनठानबे डिग्री पर थे और लौट गए, निराश हो गए। एक कदम और — एक कदम और लौटना ही मत। जीवन की एक ही बात को याद रखो तो महावीर का सारा सार-संचय तुम्हारे पास रहेगा। उठो जागकर बैठो जागकर, चलो जागकर बोलो, सुनो-जो भी करो - अपने को झकझोर कर । भीतर दीया जागने का जगा रहे। तुम मुझे यहां सुन रहे हो, तुम इस तरह सुन सकते हो कि बैठे हैं, हजार बातें चल रही हैं खोपड़ी में, यह मेरी बात भी सुनाई पड़ रही है उन्हीं हजार बातों के बीच में। कहीं-कहीं कुछ-कुछ शब्द भीतर प्रवेश कर जाते हैं। वे हजार बातों में लिपटकर उनका अर्थ भी बदल जाता है। कुछ का कुछ सुनाई पड़ जाता है। कहा कुछ, सुन कुछ लेते हो । अर्थ कुछ था, अर्थ कुछ निकाल लेते हो । ऐसे सोए-सोए सुनकर तुम जो ले जाते हो, वह तुम्हारा ही होगा। उसका मुझसे कुछ लेना-देना नहीं है । जागकर सुनो। जागकर सुनने का अर्थ है, सुनते वक्त तुम कान ही कान हो जाओ। तुम्हारा पूरा शरीर कान की तरह काम करे तो जागकर सुना। भोजन करते वक्त तुम स्वाद ही स्वाद हो जाओ। तुम्हारा पूरा शरीर बस भोजन करे। चलते वक्त तुम पैर ही पैर हो जाओ। बस तुम चलो। सोचते वक्त तुम मन ही मन हो जाओ; फिर सिर्फ सोचो। I तो मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सोचने के लिए समय ही मत दो घड़ी दो घड़ी निकाल लो और उस समय सिर्फ सोचो। जरूरत है उसकी भी । वह भी तुम्हारे जीवन का अंग है। उसे भी समय चाहिए। सब समय को ठीक से बांट दो। मगर एक खयाल रहे कि जो भी कृत्य हो वह मूर्च्छा में न हो । अगर हाथ में आ-आकर होश छूट जाता हो, तो इतना ही खयाल रखना कि थोड़ी चेष्टा और । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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