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________________ रसमयता और एकाग्रता नाराज नहीं हूं। मेरी पत्नी को कहना, मैं किसी से नाराज नहीं हूं। | यहां आ गई। इरादा था कि यहां से दक्षिण भारत घूमने सब ठीक था। मैं बिलकुल, जैसा जिसको हम सुखी-संपन्न | जाऊंगी। किंतु आपके प्रवचन सुनकर कुछ ऐसी पागल हुई कि कहते हैं, वैसा आदमी था। मेरे बच्चे ठीक हैं, मेरे बेटे ठीक हैं, | संन्यास भी ले लिया। और अब ऐसा लगने लगा कि जैसा मेरी पत्नी ठीक है। सब ठीक था। पहले कभी नहीं लगा था। जिस किनारे पर अब तक खड़ी थी लेकिन मत तीक से कहीं कळ होता? ठीक से कछ ज्यादा | वह किनारा ओझल हो गया है आंख से: और अब तो आप ही चाहिए। ठीक से क्या होगा? ऐसे तो ठीक-ठीक-ठीक, और | मेरे कृष्ण बन गए हैं, जिनकी मैं आराधना करती थी। और यह मर जाएंगे। सुविधापूर्वक जी लिए और मर गए। नाच तो पैदा विश्वास लेकर जाती हूं कि जो ध्यान मिला यहां, वह कायम ही न हुआ। जीवन में फूल तो खिले ही नहीं। रहेगा। और पुकारने पर आप सदा आते रहेंगे। लौटा नहीं वापस। बड़ा चित्रकार बन गया। 'मेरे तो रजनीश ही दूसरो न कोई।' इसे मैं संन्यास कहता हूं। न उसने गैरिक वस्त्र पहने, न वह | किसी आश्रम में गया लेकिन इसे मैं संन्यास कहता हूं। संन्यास | __ पूछा है त्रिवेणी ने। नई-नई महिला, नया-नया उसका आना का अर्थ हुआ, साहस इस बात का कि अगर दिखाई पड़े कि मेरा हुआ है। लेकिन जैसे बहुत दिन का प्यासा जल के पास आ जीवन मरुस्थल में खोया जा रहा है तो अपनी राह बदल लेने | जाए, दिल खोलकर पी ले, ऐसा उसने पीया है। की। चाहे कोई भी कीमत चुकानी पड़े। तो कभी-कभी ऐसा होता है, जो मुझे बहुत सुनते रहे, वे खाली आदमी कमजोर है। वह सुविधा से जीता है। चाहे कुछ न हाथ रह जाते हैं। और ऐसा भी होता है, कभी-कभी कोई नया मिले, लेकिन सुविधा तो है, सुरक्षा तो है। कुछ न मिले! व्यक्ति एकदम भरपूर हो उठता है। प्यास पर निर्भर है। इसलिए ये सारे प्रश्न उठते हैं कि एकाग्रता कैसे सधे? तो | त्रिवेणी कोई पढ़ी-लिखी महिला नहीं है, ग्रामीण है; गैर-पढ़ी पहले तो कोशिश करना। सध जाए तो शुभ। चेष्टा करने से लिखी है। पर हृदय उसका बड़ा पढ़ा-लिखा मालूम होता पचास प्रतिशत मौके हैं, सध जाएगी। न सधे तो हिम्मत करना। है-'ढाई आखर प्रेम के।' बुद्धि का कोई शिक्षण नहीं हुआ है देर मत लगाना, क्योंकि जिंदगी रोज हाथ से सरकी जाती है। लेकिन हृदय जीवंत है। जिंदगी उन्हीं की है, जो हिम्मत से जिंदगी को बदलने के लिए तो घटना बड़ी सरलता से घट गई है। पति-पत्नी दोनों यहां तैयार होते हैं। नहीं तो जिंदगी बह जाती है। चिकने घड़े के ऊपर हैं। लक्ष्मी मुझे कहती थी कि दोनों दिनभर रसविमुग्ध बैठे रहते जैसे वर्षा का जल बह जाता है, कुछ भरता-करता नहीं। या हैं। जाते ही नहीं आश्रम से। खोए-खोए। जैसे कुछ मिल गया उल्टे घड़े पर जैसे वर्षा गिरती रहती है—टप-टप। बहुत है-कोई खजाना। भरोसा भी नहीं हो रहा है कि मिल गया है। आवाज, शोरगुल मचता है लेकिन घड़ा खाली का खाली रहता इतने अचानक मिला है। विश्वास भी नहीं आता कि मिल गया है। उल्टा रखा है। | है। हटते भी नहीं। कहीं जाते भी नहीं। ठगे-ठगे! तो जरा गौर से देखना। तुम्हारा घड़ा अगर भरता न हो तो कहीं त्रिवेणी मुझे मिलने आयी थी। कुछ कहा नहीं उसने। कुछ उल्टा तो नहीं रखा है? कहने को उसके पास है भी नहीं। यह प्रश्न भी किसी दूसरे से तो न तो मौलिक सवाल ध्यान का है, न भजन का है; मौलिक लिखवाया होगा। यह प्रश्न भी किसी और ने तैयार किया होगा। सवाल समझ का है। मन के स्वभाव को समझो। लेकिन वह मौजूद रही, बैठी रही। और बैठे-बैठे उसने जो एकाग्रता की बात ही मत उठाओ, रसमयता की बात उठाओ। कहना था, कह दिया बिना कहे। उसकी मौजूदगी से उसने रसमयता के पीछे-पीछे तुम पाओगो, एकाग्रता घूघर बजाती हुई अपने भाव अर्पित कर दिए। अपना भाव-सुमन चढ़ा दिया। चली आती है। लोग आते हैं, बहुत बात कर जाते हैं और बिना कछ कहे भी चले जाते हैं। आए, बकवास कर जाते हैं। त्रिवेणी आयी, बैठी दूसरा प्रश्नः बिना किसी उद्देश्य के मैं अपने पति के साथ रही चुपचाप एक तरफ। न कुछ बोली, न पास पैर छूने आयी। 5751 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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