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________________ जिन सत्र भागः2 वह जुलाहे का गीत है। कोई और दूसरा तो गा भी नहीं की कोशिश कर रहे हो, जो चढ़ाव पर है। तो नदी चढ़ाव पर तो सकता। बुद्ध कैसे गाएंगे? बुद्ध ने कभी चदरिया बीनी नहीं। नहीं बहती, ढाल पर ही बह सकती है। रसधार भी ढाल पर ही उन्हें कुछ पता भी नहीं। महावीर कैसे गाएंगे? चदरिया थी, वह | उतरकर, बहकर मिलता है। भी छोड़ दी! उनसे तो पूछो कैसी छोड़ी रे चदरिया, तो बता तो फिर बदलो। इसीलिए साहस की जरूरत है। पहले सारी सकते हैं। चेष्टा कर लो। और फिर तुम्हें लगे कि नहीं, इस ढंग से मेरे लिए लेकिन कबीर ने बुन-बुनकर पाया। वे ताने-बाने चादर के परमात्मा से मिलन नहीं हो सकेगा तो बदलो। उस बदलाहट को बुनते-बुनते उनका ध्यान फला। वहीं रसविमुग्ध हुए। पर कैसे | मैं संन्यास कहता हूं। बदलने की हिम्मत रखो। पाया उन्होंने? क्योंकि हमें बुद्ध की बात समझ में आ जाती है | एक आदमी चालीस साल तक लंदन के बाजार में दलाल का कि दूर बोधिवृक्ष के नीचे ध्यान में बैठे हुए हैं। कि महावीर वनों काम करता रहा। बड़ा सफल आदमी था। खूब कमाई थी। सब में, पर्वतों में, एकांत में, बारह वर्ष मौन में खड़े हुए। तरह का सुख था। किसी ने कभी सोचा भी न था, एक रात वह कबीर...कबीर कपड़ा बुन-बुनकर पा लिए। घर से नदारद हो गया। पत्नी भी भरोसा न कर सकी, बेटे भी रस से बुना होगा। कबीर कहते थे, राम के लिए बुन रहा हूं। | भरोसा न कर सके, मित्र भी भरोसा न कर सके, काम धंधे में जो सभी ग्राहकों में राम देखते थे। जब अपना कपड़ा बुनकर और लोगों से संबंध था वे भी भरोसा न कर सके। क्योंकि न तो वह काशी के बाजार में बेचने जाते, कोई मिल जाता रास्ते में और आदमी कभी किसी और स्त्री के संग में देखा गया था. कि पत्नी कहता, कहां जा रहे हो? तो वे कहते, राम आए होंगे। उनको सोच भी सके कि वह किसी स्त्री के साथ भाग गया। न उसके जरूरत है, कपड़ा बुनकर लाया हूं। बड़ा बढ़िया बुना है। राम कोई धार्मिक रुझान थे कि वह कोई जाकर किसी आश्रम में को देने जा रहा हूं। संन्यासी हो गया होगा। न कोई दुख था कि आत्महत्या कर ली जब कोई ग्राहक उनसे कपड़ा खरीदता तो वे कहते, सम्हालकर होगी। सब भांति सुखी-संपन्न आदमी था; जिसको हम रखना राम। बड़ी मेहनत से बुना है। बड़े रस से बुना है। कपड़ा सुखी-संपन्न कहते हैं, वैसा आदमी था। सब ठीक-ठाक था। ही नहीं है, पीढ़ी दर पीढ़ी चले ऐसी मजबूती से बुना है। अपने | कोई तीन साल बाद उस आदमी का पता चला कि वह पेरिस में प्राण उंडेले हैं। | चित्रकला सीख रहा है। भिखमंगे की हालत हो गई है। भागे तो जिसको ग्राहक में राम दिखाई पड़े, अब उसे किसी उसके मित्र। उससे कहा, तुमने यह क्या किया? तुम्हारे पास बोधिवृक्ष के नीचे जाने की जरूरत न रही। सभी लोग बोधिवृक्ष सब था, सब ठीक था। उसने कहा, वही अड़चन थी। सब ठीक | के नीचे जा भी नहीं सकते। और अच्छा है कि जाते नहीं; नहीं तो था, कहीं कुछ गड़बड़ न थी। लेकिन कोई प्रफुल्लता न थी। बड़ी झंझट खड़ी हो जाए। एकाध बुद्ध बोधिवृक्ष के नीचे बैठता कहीं कोई उमंग न थी। सब ठीक चल रहा था और सब ठीक मैं है, चलता है। एकाध महावीर मौन खड़ा हो जाता है, चलता है। | चला रहा था, लेकिन कोई रसधार न बह रही थी। लेकिन सभी ऐसे खड़े हो जाएं तो जीवन बड़ा विरस हो जाएगा। मेरे जीवन में सदा से आकांक्षा थी कि चित्रकार बनूं। दलाल अधिक को तो कबीर जैसा होना पड़ेगा। अधिक को तो गोरा बनना मैंने कभी चाहा न था। वह सफलता सांयोगिक थी। अब जैसा होना पड़ेगा। गोरा कुम्हार बस घड़े बनाता रहा। और घड़े मैं खुश हूं। मेरे पास अब कुछ भी नहीं है। चित्र बनाता हूं, बिक बनाते-बनाते खुद को भी बना लिया। रैदास जूते सीते-सीते, जाते हैं तो भोजन के लायक, कपड़े के लायक इंतजाम कर पाता जूते बनाते-बनाते पहुंच गए। | हैं। अपने पास रहने का छप्पर भी नहीं है। एक मित्र के कमरे में तो तम जो कर रहे हो, उसमें रस डालो। उंडेलो रस। वही बना हूं, रह रहा हूं। लेकिन वापस मझे जाना नहीं है। मैं प्रसन्न तुम्हारा भजन, वही तुम्हारा ध्यान। हूं। और जो मित्र गए थे उन्होंने देखा कि वह आदमी एक अगर तम्हारी सारी चेष्टाएं असफल हो जाएं तो फिर साहस अदभत ऊर्जा से. एक अदभत आभा से भरा था। सख गया था | करो। तो फिर तुम गलत जगह हो। तुम कुछ ऐसी जगह बहने शरीर उसका, लेकिन एक रोशनी थी। उसने कहा, मैं किसी से Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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