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________________ पंडितमरण सुमरण है का सुख देती। लेकिन उसकी तैयारी करनी पड़े। उसे अर्जित दूसरा किनारा है। करनी पड़े। सफलता हो तो बहुत हंसो मत। सफलता में तो रो लो तो फिर मरना अवश्यंभावी है तो धीरतापूर्वक मरना उचित। धीर चलेगा। विफलता में हंसना है। जब जीत आ रही हो, हंसने की बनो। इसे रोज-रोज साधो। धीरता को रोज-रोज साधो। जरूरत नहीं। क्योंकि जीत के साथ हंसने से किसी को कोई लाभ छोटी-छोटी चीजें अधीर कर जाती हैं। एक प्याली गिरकर टूट | | कभी नहीं हुआ। तब रो लो तो चलेगा। जब फूलमालाएं गले में जाती है और तुम अधीर हो जाते हो। तो थोड़ा सोचो तो, जब तुम डाली जा रही हों तो सिर नीचे झुका लो तो चलेगा। तब उदास हो टूटोगे तो कैसे न अधीर होओगे! एक छोटी-मोटी दुकान चलाते | जाओ तो चलेगा। थे, डूब जाती है, तो अधीर हो जाते हो। तो जब तुम्हारे जीवन का मुझे आज साहिल पर रोने भी दो पूरा व्यवसाय छीन लिया जाएगा, जीवन का पूरा व्यापार बंद | कि तूफान में मुस्कुराना भी है! होगा, पटाक्षेप होगा, पर्दा गिरेगा तो तुम कैसे बेचैन न हो किनारे पर रो लो तो चलेगा क्योंकि तूफान में हंसने की तैयारी जाओगे! दिवाला निकल गया, एक मित्र नाराज हो गया, और करनी है। जो तूफान में हंसा वही हंसा। साहिल पर तो कोई भी तुम अधीर हो जाते हो। किसी ने गाली दे दी, अपमान कर दिया हंस लेता है। किनारे पर हंसने में क्या लगता है? हलदी लगे न और तुम अधीर हो जाते हो। फिटकरी, रंग चोखा हो जाए। कुछ लगता ही नहीं किनारे पर कर तुम मृत्यु का सामना कर सकोगे? इसे तो। किनारे पर तो मुढ़ भी हंस लेते हैं, कायर भी हंस लेते हैं। साधो। ये सब अवसर हैं धीरज को साधने के, धैर्य को निर्मित तूफान में हंसने की तैयारी करनी है। करने के। जीवन एक गहन प्रयोगशाला है। और प्रतिपल मुझे आज साहिल पर रोने भी दो परमात्मा अनंत अवसर देता। कि तूफान में मुस्कुराना भी है! कभी किसी के द्वारा गाली दिलवा देता। कभी किसी के द्वारा सफलता में ऐसे खड़े रह जाओ, जैसे कुछ भी नहीं हुआ। तभी अपमान करवा देता। वह कहता है, साधो। धैर्य साधो। तुम विफलता में ऐसे खड़े रह सकोगे कि जैसे कुछ भी नहीं स्थितधी बनो। धीरज जगाओ। धीरता पैदा करो। यह आदमी हुआ। जो गाली दे रहा है, यह तुम्हारा हिताकांक्षी है। इसे पता हो न हो, ___ इसको कृष्ण ने कहा है, 'समत्वं योग उच्चते।' दुख में, सुख यह तुम्हारा कल्याणमित्र है। | में सम हो जाओ, यही योग है। यही धीरता है। कबीर ने तो कहा है, 'निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी बहुत कुछ और भी है इस जहां में छवाय।' घर के पास ही बसा लो उनको। आंगन कुटी छवा यह दुनिया महज गम ही गम नहीं है दो। अतिथि की तरह उनकी सेवा करो, पैर दबाओ। पर निंदक लेकिन वह जो बहुत कुछ है, उसे जानने की कला चाहिए। को दूर मत जाने दो, पास ही रखो। क्योंकि वह बार-बार तुम्हें साधारणतः तो आदमी को लगता है, दुख ही दुख है। क्योंकि हम धैर्य को जगाने का अवसर देगा। केवल दुख को चुनने में कुशल हैं। हम कांटे बीनने में बड़े सोचो थोड़ा इस पर। जो भी घटता है उसका सृजनात्मक निष्णात हो गए हैं। फूल हमें दिखाई ही नहीं पड़ते। फूल उसी उपयोग कर लो। दिवाला निकल जाए तो सृजनात्मक उपयोग को दिखाई पड़ते हैं, जो कांटों में भी फूल देखने के लिए तैयार हो कर लो। यह मौका है। इस वक्त अपने को कस लो। सफलता | जाता है। में तो सभी धैर्यवान मालम पडते हैं। वह तो धोखा है। फलों को कांटों में खोज लेना है। दख में सख की तरंग को असफलता जब घेर ले, तभी परीक्षा है। | पकड़ना है। अशांति में शांति की तरंग को पकड़ना है। और ऐसी छोटी-छोटी असफलताओं में साधते-साधते, विफलता में सफलता का स्वर खोजना है। छोटी-छोटी लहरों से लड़ते-लड़ते तुम बड़े सागर में उतरने के ऐसी खोज जारी रहे पूरे जीवन, तो तुम मृत्यु में महाजीवन खोज योग्य हो जाओगे। किनारे से दूर बड़े तूफान हैं। तूफानों के पार पाओगे। इन छोटी-छोटी तरंगों से जूझते-जूझते तुम मृत्यु की 553 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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