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________________ जिन सूत्र भागः 2 चाहता है जल्दी हो जाए। की तरह। गाओ! इसलिए नहीं कि गाने से उसे रिझाना है। उतावलेपन में धीरज नहीं है, सिर्फ अधैर्य है। अभीप्सा में | गाओ इसलिए, कि उसने तुम्हें रिझा लिया है। अब गाओगे न तो अधैर्य भी है और धीरज भी है। अभीप्सा बड़ी पैराडाक्सिकल, करोगे क्या? बड़ी विरोधाभासी स्थिति है। एक तरफ वह जानता है, मिलना इस फर्क को खयाल में ले लेना। भक्त साधन की तरह नहीं तो होना ही है। वह तो निश्चित है। वह बात तो हो ही गई। | कुछ करता, साध्य की तरह करता है। परम आह्लाद से भरकर उसमें कुछ सोचना नहीं है। करता है क्योंकि जो घटना है, वह घट ही चुका है। जो होना है दूसरी तरफ वह कहता है, अब जल्दी हो जाए। अब और देर वह हो ही चुका है। उसे रंचमात्र भी संदेह नहीं है। अनंत काल न लगाओ। अब कब से पलक-पांवड़े बिछाकर बैठा हूं। अब में भी अगर परमात्मा से मिलना होगा तो इसी क्षण मिलना हो आ भी जाओ। और भीतर वह जानता है कि ऐसी जल्दी भी क्या गया है। इस श्रद्धा में ही मिलना हो गया है कि अनंत काल में है? आओगे तो तुम निश्चित ही। मिलना हो जाएगा। भक्त की मनोदशा बड़ी विरोधाभासी है। जो मिला ही हुआ है। नारद स्वर्ग जा रहे हैं। और एक वृक्ष के नीचे उन्होंने एक बूढ़े उसे, उसके लिए तड़फता है। जिसका मिलना बिलकुल संन्यासी को बैठे देखा, तप में लीन माला जप रहा है। सुनिश्चित है, उसके लिए तड़फता है। जटा-जूटधारी! अग्नि को जला रखा है। धूप घनी, दुपहर तेज, उतावलापन मत कहो। कभी-कभी गलत शब्द खतरनाक हो वह और आग में तप रहा है। पसीने से लथपथ। नारद को सकता है। उतावलेपन में एक तरह का तनाव है। अभीप्सा में देखकर उसने कहा कि सुनो, जाते हो प्रभु की तरफ, पूछ लेना, तनाव नहीं है। प्यास कहो, पुकार कहो। उतावलापन मत | जरा पक्का करके आना, मेरी मुक्ति कब तक होगी? तीन जन्मों कहो। उतावलापन बुद्धि का शब्द है। और ओमप्रकाश से कोशिश कर रहा हूं। आखिर हर चीज की हद्द होती है। बुद्धिमान आदमी नहीं, हृदयवान आदमी हैं। चेष्टा करनेवाले का मन ऐसा ही होता है, व्यवसायी का होता हृदयवान शब्द का लोग उपयोग ही नहीं करते। किसी को है। नारद ने कहा जरूर पछ आऊंगा। उसके ही दो कदम आगे कहो बुद्धिमान नहीं, तो वह नाराज हो जाए। क्योंकि एक ही चलकर दूसरे वृक्ष के नीचे, एक बड़े बरगद के वृक्ष के नीचे एक मतलब होता है, बुद्धिमान नहीं है यानी बुद्ध। दूसरी बात ही हम युवा संन्यासी नाच रहा था। रहा होगा कोई प्राचीन बाउल : भूल गए हैं कि कोई हृदयवान भी हो सकता है। एकतारा लिए, डुगडुगी बांधे। थाप दे रहा डुगडुगी पर, एकतारा ओमप्रकाश हृदय के केंद्र के करीब हैं। घटेगी घटना। घटनी | बजा रहा, नाच रहा। युवा है। अभी बिलकुल ताजा और नया ही है। लेकिन तुम्हारी तरफ से कोई तैयारी की जरूरत नहीं है। है। अभी तो दिन भी संन्यास के न थे। और न तुम्हारे पास कोई उपाय है कि तुम कुछ कर सको। तड़पो, नारद ने कहा-मजाक में ही कहा कि तम्हें भी तो नहीं रोओ, नाचो। लेकिन यह भी उसे पाने के साधन की तरह नहीं। पूछना है कि कितनी देर लगेगी? वह कुछ बोला ही नहीं। वह क्योंकि साधन की तरह सोचना ही बाजार की भाषा है, प्रेम की अपने नाच में लीन था। उसने नारद को देखा ही नहीं। उस घड़ी भाषा नहीं। तो नारायण भी खड़े होते तो वह न देखता। फर्सत किसे? नारद नाचो, क्योंकि श्रद्धा है। नाचो, क्योंकि वह आता ही होगा। चले गए। दूसरे दिन जब वापस लौटे तो उन्होंने उस बूढ़े को नाचो, क्योंकि वह आ ही रहा है, रास्ते पर ही है। नाचो, कि दूर कहा कि मैंने पूछा, उन्होंने कहा कि तीन जन्म और लग जाएंगे। उसके रथ के पहियों की आवाज सुनाई ही पड़ने लगी है। कितने बूढ़ा बड़ा नाराज हो गया। उसने माला आग में फेंक दी। उसने ही दूर-दिगंत में, आकाश में बादलों के पास होती है गड़गड़ाहट कहा, भाड़ में जाए यह सब! तीन जन्म से तड़फ रहा हूं, अब लेकिन वह चल पड़ा। वह अनंत काल से तुम्हारी तरफ चल ही | तीन जन्म और लगेंगे? यह क्या अंधेर है? अन्याय हो रहा है। रहा है। नारद तो चौंके। थोड़े डरे भी। उस युवक के पास जाकर कहा नाचो! उसने तुम्हें चुन लिया है—साधन की तरह नहीं, साध्य कि भई! नाराज मत हो जाना—वह नाच रहा है—मैंने पूछा -538 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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