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________________ जिन सूत्र भाग: 2 हो सकती है, लेकिन हम पर्ण नहीं हो सकते। हैं, उन्हें वहीं वृंदावन के दर्शन हो जाएंगे। यहां फर्क तुम समझने की कोशिश करना। ज्ञानी कहता है, हंसी तो आएगी। क्योंकि तब पता चलेगा कि हम अकारण ही चाहत छोड़ो और पूर्ण बनो। भक्त कहता है, चाहत को पूर्ण परेशान थे। हंसी अपने पर आएगी। हंसी औरों पर भी आएगी, करो; तुम्हारी पूर्णता-अपूर्णता की चिंता न करो। दोनों विपरीत, जो अभी भी परेशान हैं। हंसी आएगी इस सारे खेल पर।। लेकिन पहुंच जाते हैं एक ही शिखर पर। इसीलिए तो भक्तों ने कहा है कि यह जगत लीला है। यह खेल है। इसे बहुत गंभीरता से मत लो। गंभीरता ज्ञानी का मार्ग चौथा प्रश्न : रजनीश एशो आमी तोमार बोइरागी है; सरलता, उत्फुल्लता भक्त का। आमी पूना गेलाम, आमी काशी गेलाम हंसी तो आएगी क्योंकि फिर जो कहने योग्य मालूम पड़ेगा उसे लाओ री लाओ संगे डुगडुगी कह भी न सकोगे। हंसकर ही कहा जा सकता है या रोकर कहा बहुत हंसी आती है। अब तो डुगडुगी के सिवा कुछ बचा जा सकता है। वाणी बड़ी छोटी पड़ जाती है। डुगडुगी बजाकर नहीं है। ही कहा जा सकता है। शब-ए-वस्ल की क्या कहूं दास्तां डुगडुगी ही बच जाए तो सब बच गया। डुगडुगी खो जाए तो | जबां थक गई, गुफ्तगू रह गई सब खो गया। तुम डुगडुगी हो जाओ तो सब हो गया। उस मिलन की रात की कहानी क्या कहूं? कैसे कहूं? आह्लाद! नृत्य! तुम्हारे भीतर के स्वर नाचने लगें, गुनगुनाने जबां थक गई, गुफ्तगू रह गई। लगें, तो निश्चित ही फिर हंसी के योग्य ही है सब-सब कहते-कहते जबान तो थक गई लेकिन जो कहना चाहते थे, खोजबीन, सब दौड़धूप। वह नहीं कहा जा सका। बजाओ डुगडुगी! उससे ही कहो। भक्त तो उत्सव में मानता है। भक्त तो उत्सव को ही पूजा और नाचो! ले लो एकतारा हाथ में। और जो तुम्हें नाचकर मिलेगा, प्रार्थना बनाता है। यह जगत एक महोत्सव है। इसमें तुम नाहक वह किसी शास्त्र से किसी को कभी नहीं मिला। उदास-उदास बैठे हो। सम्मिलित हो जाओ। सब थिरक रहा है, | नृत्य का अर्थ है, गीत का अर्थ है, उत्सव का अर्थ है कि तुमने तुम भी थिरको। सब नाच रहा है। देखो चांद-तारे, देखो वृक्ष, पैर से पैर मिलाए अस्तित्व के साथ। तुम ऐसे किनारे पर न खड़े पशु-पक्षी, देखो हवाएं, अकाश में घिरे बादल, ये बूंदों की रहे राह के। जा रही थी यात्रा, रथोत्सव हो रहा था, तुम भी टिपटिप! सब नाच रहा है। यहां थिर कोई भी नहीं है। सब | सम्मिलित हुए। नाचता जा रहा है अस्तित्व प्रतिपल। तुम क्यों फुदक रहे हैं। सिर्फ आदमी उदास है। | बैठे किनारे? कैसे उदास? कैसे हताश? डुगडुगी बनो। बजो। बांसुरी बनो। फूटने दो स्वर कोः । उठो! लौटाओ अपनी थिरक! इस नाचते हुए रासमंडल में झरनों की तरह, चांद-तारों की तरह। नाचो, इस महत नृत्य में सम्मिलित हो जाओ। खो जाओगे उस नृत्य में। तुम न बचोगे। सम्मिलित हो जाओ। डुगडुगी बजेगी तो तुम न बचोगे। तब जरूर हंसी आएगी। हंसी आएगी, नाहक इतने दिन उदास __ भक्त खोने की तैयारी रखता। ज्ञानी अपने को बचाता, रहे। नाहक इतने दिन रोए। नाहक इतने दिन वंचित रहे। जो निखारता। भक्त अपने को डुबाता और खोता। मिला ही था, उसके साथ नाच क्यों न सके? रास हो ही रहा है। मिलते ही किसी के खो गए हम यह ब्रह्मांड रास की एक प्रक्रिया है। जागे जो नसीब सो गए हम तुम्हें सुनाई नहीं पड़ता? बांसुरी कभी बंद नहीं हई, बज ही | जब वस्तुतः भाग्य जागता है, जब वस्तुतः वर्षा होती है, जब | रही है। तुम बहरे हुए हो। अंधे हुए हो। नाच हो ही रहा है। | वस्तुतः अमृत के द्वार मिलते हैं तो तुम नहीं बचते। कोई आज ऐसा नहीं था कि कुछ कभी वृंदावन में हुआ था, अब नहीं हो रहा तक परमात्मा से मिला थोड़े ही! मिलने के पहले ही खो जाता है। परमात्मा नाच ही रहा है। जिनके पास आंखें हैं, वे जहां भी है। मिलने की पहली शर्त खो जाना है। 536 Jan Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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