________________
जिन सत्र भागः2
सामने खड़ा है। मंजिल सामने तो खड़ी है, अब कैसा रुकना!। प्रत्येक जीवन-ऊर्जा किसी न किसी दिन तेरहवें गुणस्थान में तुम एक क्षण भी रुक न पाओगे।
आएगी-देर-अबेर। भटकोगे...कितना भटकोगे? किसी न तो तेरहवीं अवस्था से कोई गिरता तो नहीं यह सच है, लेकिन | किसी दिन पीड़ा से थके-हारे, टूटे घर आओगे। उस तेरहवें तेरहवीं अवस्था में कोई रुक सकता है। कठिन है, अति दुर्गम है, | गुणस्थान में भगवत्ता उपलब्ध होगी। लेकिन हुआ है। तेरहवीं अवस्था में जो रुक गए हैं, वे ही | यह जो भगवान की तेरहवीं अवस्था है, इससे कोई च्युत तो अवतारी पुरुष हैं।
| नहीं हो सकता। च्यत होना होता ही नहीं। लेकिन कोई चाहे तो जैन परिभाषा में अवतार परमात्मा के घर से नहीं आता। | रुक सकता है। चौदहवीं अवस्था को आने से रोक सकता है। इसलिए अवतार शब्द का उपयोग जैन नहीं करते। अवतार शब्द | बड़ी प्रगाढ़ करुणा करनी पड़े। करुणा को ऐसी प्रगाढ़ता से का ही मतलब है : उतरे; अवतरित हो ऊपर से आए। जैन | करना पड़े कि वह करीब-करीब वासना बन जाए। सांसारिक परिभाषा में तो सभी नीचे से ऊपर की तरफ जाते हैं। ऊर्ध्वगमन | आदमी जैसे वासना से बंधा है और संसार से नहीं छूटता, ऐसे है जगत में, अधोगमन नहीं है। अवतार का मतलब तो हुआ, | तेरहवें गुणस्थान में पहुंचा हुआ व्यक्ति करुणा की जंजीरें ढालता अधोगमन। अवतार का तो मतलब हुआ, असीम सीमा में | है: करुणा से बंधता है। रुकता है कि किसी तरह थोड़ा साथ, उतरा, विराट क्षुद्र हुआ, महत छोटा बना, आकाश आंगन बना, | थोड़ा संग, थोड़ी पुकार दे सके। उसकी नाव आ लगी, उस पार असीम ने सीमा में अपने को बांधा।
जाने का निमंत्रण आ पहुंचा, फिर भी वह हजार उपाय करता है अवतरण तो अधोगमन हआ। यह तो पतन हआ। जिसको कि इस किनारे पर थोड़ी देर रुक जाए। हिंदू अवतार कहते हैं, उसको जैन मानता है कि यह तो पतन है। अलग-अलग सदगुरुओं ने अलग-अलग उपाय किए हैं, तो उसकी बात में भी बल है। पतन तो है ही। जैसे परमात्मा | कैसे इस किनारे पर थोड़ी देर और रुक जाएं कि तुमसे थोड़ी बात
तो हो नहीं सकता। परमात्मा च्यत हो ही नहीं | हो सके, कि तुम्हें थोड़ा संदेश दिया जा सके कि तुम्हारी नींद को सकता। इसलिए जैन कहते हैं सिर्फ ऊर्ध्वगमन होता है, सिर्फ थोड़ा हिलाया जा सके कि तुम्हारे स्वप्न थोड़े तोड़े जा सकें। उत्क्रांति होती है, सिर्फ विकास होता है। पीछे कोई जाता ही नहीं, | अपने आप रुकना नहीं होता। अपने आप तो तेरहवें गुणस्थान आगे ही जाना है। जाना मात्र आगे की तरफ है। हम ऊपर ही | से चौदहवां गुणस्थान सहज घट जाता है। जैसे बड़ी चिकनी उठते हैं।
भूमि हो और तुम खिसक जाओ, रपट जाओ। बड़ी रपटीली इसलिए तेरहवीं अवस्था में पहंचा हुआ व्यक्ति अवतारी पुरुष | भूमि हो और ढलान हो। तेरहवें से चौदहवां इतने करीब है, और है। आया है लंबी यात्रा पार करके। जन्मों-जन्मों में बारह | इतना आकर्षक है, इतना मोहक है कि कौन रुकना चाहेगा? । अवस्थाएं पूरी की हैं, तेरहवीं पर आया, भगवान हुआ। फिर रुकना कठिन भी है। इसलिए जैन कहते हैं, हजारों लोग
यह भगवान का अर्थ भी समझ लेना। हिंदू सोचते हैं, भगवान केवलज्ञान को उपलब्ध होते हैं, कभी कोई एकाध तीर्थंकर हो का अर्थ, जिसने संसार बनाया।
पाता है। तीर्थंकर का अर्थ है, जो तेरहवें में रुकता-बलपूर्वक, जैनों में भगवान का वैसा अर्थ नहीं है। संसार को तो किसी ने | चेष्टापूर्वक। बनाया नहीं। कोई स्रष्टा तो नहीं है। लेकिन जिसने अपने को | चौदहवें का अर्थ है. शरीर से संबंध का टट जाना। जो तेरहवें बना लिया, वह भगवान। इन बारह सीढ़ियों से गुजरकर जो | में हुआ है, उससे कुछ ज्यादा नहीं होता चौदहवें में। जो तेरहवें में तेरहवीं पर आ गया, वही भगवान।
| है, उससे चौदहवें में कुछ कम हो जाता है बस, ज्यादा नहीं इसलिए भगवान एकवाची भी नहीं है। ऐसा नहीं है कि एक होता। तेरहवें तक शरीर का साथ है, चौदहवें में शुद्ध आत्मा रह भगवान है। जितनी आत्माएं हैं उतने भगवान के होने की जाती है, शरीर से संबंध छूट जाता है। संभावना है। अनंत भगवान के होने की संभावना है। हिंदू कहते हैं भगवान अनंत हैं, जैन कहते हैं अनंत हैं भगवान।
तीसरा प्रश्न : महावीर ने वैराग्य और ध्यान के मार्ग को
5301
Jair Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org