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________________ जिन सूत्र भाग : 2 पीकर तो जरा सैर-ए-जहां की कर ऐ शेख हटाकर रख दो। मंदिर-मस्जिद को भूलो। फिर जहां तुमने जिक्र हे धर्मगुरु ! जरा पीकर, मतवाला होकर, मस्त होकर, नाचता, किया उसका और जहां उसकी याद की, वहीं मंदिर है। फिर तुम दीवाना होकर जरा दुनिया की सैर कर। चलोगे तो तीर्थ बनने लगेंगे। तुम्हारे कदम-कदम पर तीर्थ बनने तू ढूंढता है जिसको वह जन्नत है यहीं लगेंगे। लेकिन यह हो जाए। यह आसान नहीं है। वह स्वर्ग यहीं है। वह मतवाले के पैर-पैर पर है। जहां मस्त ऐसा ही आशीर्वाद मैं दे सकता है। ऐसा आशीर्वाद मांगो तो बैठ गए वहीं स्वर्ग है। काश! यह हो जाए। उसका ध्यान ही | कुछ मांगा। यह हो सकता है लेकिन होना आसान नहीं है। यह तब आता है, उसकी याद ही तब आती है, जब उसने किसी तरह जगत में सबसे ज्यादा दुर्गम है। क्योंकि हमारा मन ऐसा आदी हो तुम्हारी तरफ हाथ बढ़ा दिया। गया है व्यर्थ की बातों को याद करने का, कि बैठते हैं परमात्मा फिर तेरे कूचे को जाता है खयाल को याद करने, न मालूम और और, न मालूम क्या-क्या याद आ दिले-गुमगस्ता मगर याद आया। जाता है। मेरा ध्यान फिर तेरी गली की तरफ खिंच रहा है। लगता है मुझे इसलिए मेरी दृष्टि में तो रास्ता ऐसा है कि तुम परमात्मा की फिर मेरे दिल की स्मति हो आयी। | याद को, और और चीजों की याद को, दुश्मन मत समझना, उसकी पुकार तुम्हारी ही अंतर्तम की पुकार है। अगर तुम्हें | अन्यथा मुश्किल में पड़ोगे। तुम तो ऐसा करना कि सभी चीजों उसकी याद आने लगी तो अपनी ही याद आ रही है। वह कोई को परमात्मा ही मान लेना। तो पत्नी की भी याद आए तो तुम पराया थोड़े ही है! वह कोई दूसरा थोड़े ही है, दूजा थोड़े ही है! | याद रखना कि परमात्मा की ही याद आ रही है। आखिर वह भी फिर तेरे कूचे को जाता है खयाल तो परमात्मा का ही रूप है। अपने बेटे की भी याद आए तो याद दिले-गुमगस्ता मगर याद आया रखना, परमात्मा की ही याद आ रही है। जब तक उसकी याद नहीं, तब तक तुम्हें अपनी भी याद नहीं तम बेटे में और परमात्मा में, पत्नी में और परमात्मा में, पति होगी। में, परमात्मा में किसी तरह का संघर्ष खड़ा मत करना। अन्यथा फिर बेखुदी में भूल गया राहे-कूए-यार मुश्किल में पड़ोगे। तुम्हें तो जो भी याद आए उसी में तुम जाता वगरना एक दिन अपनी खबर को मैं परमात्मा की याद को मान लेना। धीरे-धीरे तुम पाओगे, सब बेहोशी में मंजिल का पता ही भूल गए। प्रेमी का घर ही भूल विरोध समाप्त हो गए। जो शक्ल दिखाई पड़ेगी उसमें तुम उसी की ज्योति देख पाओगे, किसी भी आंख में झांको, तुम्हें उस फिर बेखुदी में भूल गया राहे-कूए-यार आंख में उसी का प्रतिबिंब मिलेगा। झीलें हजार हैं, चांद एक उस प्रीतम का निवास कहां? बेहोशी में यही याद न रहा। है। सभी झीलों में उस चांद का प्रतिबिंब बनता है। बहुत रूप में ध्यान के अभाव में यह भी स्मृति न रही। परमात्मा प्रगट हुआ है। उसने बहुत रंग धरे हैं। उसने बहुत वेश जाता वगरना एक दिन अपनी खबर को मैं | धरे हैं। वही है। उसके अतिरिक्त और कोई भी नहीं। अन्यथा अपनी खबर को एक न एक दिन जाता। क्योंकि जो इसलिए मैं तुमसे यह नहीं कहता कि तुम सांसारिक याद और पहुंचा वह अपने पास पहुंचा। जो परमात्मा से परमात्मा की याद को संघर्ष में जुटा दो। उस संघर्ष में पड़े कि तुम मिला वह अपने से मिला। इसीलिए तो महावीर कहते हैं, टूट जाओगे। और तुम बहुत बुरी तरह हारोगे और पराजित हो आत्मा ही परमात्मा है.--'अप्पा सो परमप्पा।' जाओगे। और तमहीमा म ही अगर हार गए तो परमात्मा की विजय कैसे इस धुन को गूंजने दो। इस गीत को भीतर गुनगुन करने दो। होगी? इसलिए तुम झगड़े में मत पड़ना। द्वंद्व में मत पड़ना। यह तुम्हारी हृदय की धड़कन-धड़कन में बस जाए। तुम तो एक चेष्टा शुरू करो...वृक्ष दिखाई पड़े, तो देखो वृक्ष श्वास-श्वास को इसी में डुबा लो, पग जाओ इसी रस में। को, पहचानो परमात्मा को। फूल हाथ में आए, गौर से देखना। फिर कुछ और करना नहीं है। फिर सब शास्त्र एक तरफ | जरा गहरे देखना। तुम उसे छिपा हुआ पाओगे ही। वह है ही तो Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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