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________________ आज लहरों में निमंत्रण डाक्टर तो बचा ही लेता। उसमें कोई अड़चन ही न थी। इसलिए छुटकारा हो जाता है। लाभ कुछ भी नहीं हो रहा। अगर खयाल भर था...। कभी-कभी झूठे खयाल हो जाते हैं। किसी आदमी को पेट में चौथा प्रश्न: मुझे गरज किसी से न वास्ता गैस बनती है। गैस के भर जाने से हृदय की धड़कन बढ़ जाती मझे काम अपने ही काम से है। वह सोचता है, हार्ट-अटैक हो गया। कुछ मालूम नहीं है। तेरे जिक्र से, तेरी फिक्र से एनिमा काफी होगा। और न भी एनिमा ले तो भी पेट की गैस तेरी याद से, तेरे नाम से निकल जाएगी। तो यह आदमी तो ठीक हो जाएगा। कुछ लोगों को बिलकुल काल्पनिक और मानसिक बीमारियां ऐसा हो जाए, ऐसी बन पड़े बात तो जीवन में जो पाने योग्य होती हैं। वे सोचते हैं तो हो जाती हैं। भाव कर लेते हैं तो हो | जाती हैं। वस्तुतः नहीं हैं। तो कोई भी उनको भरोसा दिला दे कि तेरे जिक्र से, तेरी फिक्र से ठीक हो जाएगा, तो ठीक हो जाते हैं। इसलिए दुनिया में बहुत तेरी याद से, तेरे नाम से धोखाधड़ी की सुविधा है, चलती है। परमात्मा ऐसा तुम्हें घेर ले उठने-बैठने में, सोने जागने में। मिथ्या गुरु की तलाश में तुम जाते हो क्योंकि तलाश अभी जिसे तुम देखो, उसमें वही दिखाई पड़े। जो तुम करो, उसमें उसी मिथ्या चीजों की है। शरीर ठीक भी हो गया तो क्या फर्क पड़ने की सेवा हो, तो पा लिया जीवन का गंतव्य। वाला है? मरोगे! चार दिन पहले मरे कि चार दिन बाद मरे, फिर तुम्हें कहीं और जाने की जरूरत नहीं। तुमने यहीं पा लिया क्या फर्क पड़ता है? मुकदमा जीत गए तो भी मरोगे। जीते-हारे उसे। उसकी याद उसके आने का ढंग है। उसका जिक्र उसके कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन मुकदमा जीतना चाहते हो। उतर आने की व्यवस्था है। तुमने सीढ़ियां लगा दीं। तुमने मेरे पास लोग आ जाते हैं। वे कहते हैं, बस आप आशीर्वाद दे पलक-पांवडे बिछा दिए। तम याद करे जाओ, वह आ ही दें। मैं कहता हूं किसलिए? वे कहते, आपको तो सब पता ही जाएगा। तुम थको मत। तुम अथक याद किए जाओ। है। आप तो आशीर्वाद दे दें। तुम बोलो भी तो, कि किसलिए? रिंदों के लिए मंजिले-राहत है यहीं वे कहते हैं, मुकदमा है अदालत में। मैंने कहा, तुम मुझे फंसा रहे | मयखाना-ए-पुर-कैफ मसर्रत है यहीं हो। चोरी तुम करो, फंसो तुम, आशीर्वाद मेरा। मेरा इसमें क्या पीकर तो जरा सैर-ए-जहां की कर ऐ शेख हाथ है? तू ढूंढता है जिसको वह जन्नत है यहीं पर वे कहते हैं, और गुरुओं के पास जाते हैं, वे तो आशीर्वाद दे रिंदों के लिए मंजिले-राहत है यहीं—पियक्कड़ों के लिए कहीं देते हैं। वे तो पूछते ही नहीं। वे वे जानें। मैं तुम्हें ऐसा आशीर्वाद और जाने की जरूरत नहीं है। जिन्होंने उसके प्याले को पीना नहीं दे सकता। मैं तो इतना ही कह सकता हूं कि अगर तुमने सीख लिया, उसका जिक्र, उसकी फिक्र, उसका नाम। जिन्होंने चोरी की हो तो जरूर तुमको सजा मिले। अगर न की हो तो तुम उसकी शराब ढाल ली उन्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं। निश्चित छूट जाओ, ऐसी मेरी शुभकामना। मैं आशीर्वाद यह रिंदों के लिए मंजिले-राहत है यहीं नहीं दे सकता कि तुम मुकदमा जीत जाओगे। क्योंकि यह तो उनके पास खुद मंजिल चली आती है। उठकर एक कदम भी बात ही गलत हो गई। ये तो चोर भी चोर हए और साधु भी उनके नहीं चलना पड़ता। साथ सम्मिलित हुए। परमात्मा को खोजना नहीं पड़ता, परमात्मा उन्हें खोजता आता मिथ्या गुरु की इसलिए तलाश चलती है क्योंकि मिथ्या गुरु | है। बस, याद भर तुम ठीक से कर पाओ। तुम्हारी याद बीज बन कोई खास काम पूरा कर रहा है, जो कि सदगुरु नहीं कर सकता। जाती है। अंकुरित होता है परमात्मा, फूल खिलते हैं मोक्ष के। तो जब तुम्हारे भीतर से व्यर्थ की चीजों का आकर्षण जाएगा, मयखाना-ए-पुर-कैफ मसर्रत है यहीं व्यर्थ की वासना गिरेगी, उसी क्षण व्यर्थ के गुरुओं से भी उनकी मधुशाला भी यहीं है। मधुशाला का आनंद भी यहीं है। 497 ___ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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