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________________ DELHI _ जिन सूत्र भागः2 सौंदर्य ? लाल रंग में रखा क्या है? पंखुड़ियां ही खुल गई तो हैं, कितने दरवाजे हैं! और बड़े करता जाऊंगा। उन पर पहरेदार | रखा क्या है? अरे सुगंध ही सही! तो सुगंध में भी रखा क्या है? | बिठाते जाऊंगा। बहुत मुश्किल कर देना है आना। तो ही लोग कोई भी आदमी असिद्ध कर सकता है बड़ी आसानी से। | आ पाएंगे। नास्तिक होना बड़ा आसान है। आस्तिक होना बड़ा कठिन है। तुम लाने की चेष्टा करना ही नहीं। तुम सिर्फ प्रार्थना करना। क्योंकि आस्तिक कुछ ऐसी बातों पर श्रद्धा कर रहा है, जो सिद्ध तुम्हारे ध्यान के बाद-जिनको भी तुम चाहते हो कि वे कभी नहीं की जा सकतीं। आस्तिक बड़ा हिम्मतवर है। वह ऐसे रास्तों यहां आ जाएं-ध्यान के बाद उनकी सूरत का स्मरण करना, पर जा रहा है, जिनके लिए ठीक-ठीक शब्द, तर्क, प्रमाण जुटाने और प्रार्थना करना कि कभी उनका भी सदभाग्य उदय हो। बस, असंभव हैं। चुपचाप, एकांत, मौन में तुम्हारी की गई प्रार्थना रेशम के पतले इसलिए तुम खयाल रखना, तुम व्यर्थ की झंझट में पड़ना ही धागों की तरह उन्हें बांध लेगी, ले आएगी। मत। तुम बदलते जाओ, तुम्हारी आस्तिकता धीरे-धीरे प्रगट मोटे रस्से तर्क के मत बांधना। उनमें तुम जिसको बांधते हो होने लगे तुम्हारे जीवन में, तुम्हारे व्यवहार से। वही शायद उन्हें उसको लगता है, यह तो बंधन हुआ जा रहा है, हथकड़ी डली जा | ले आए तो ले आए और कोई उपाय नहीं है। रही है। कहां जा रहे हो? अपनी स्वतंत्रता गंवाना है? पागल ....क्या उन्हें सन्मार्ग पर लाना संभव नहीं है?' | होना है? लाने की कोशिश की तो मुश्किल है। वे और अकड़ जाएंगे। प्रेम के कच्चे धागे पर्याप्त हैं। वे प्रार्थना में बंध जाते हैं। वे और जिद्द बांध जाएंगे। क्योंकि लाने की कोशिश में उनको सदगुरु के पास होना समर्पण के अतिरिक्त संभव नहीं है। लगता है तुम उन्हें हराने चले? लाने की कोशिश में उनको सदगुरु के पास होना कोई तर्क की निष्पत्ति, निष्कर्ष नहीं है। तर्क लगता है तुम उनके ऊपर विजय की घोषणा कर रहे? तुम उन्हें की हार और पराजय है। सदगुरु के पास होना बुद्धि का पराजित करने में उत्सुक हो? लाने की चेष्टा में लगता है कि खिलवाड़ नहीं है, हृदय का आविर्भाव, हृदय की अभिव्यंजना तुम्हारा कोई स्वार्थ होगा। है। जो सब तरह से मिटने को तैयार है वही केवल आ पाता है। नहीं, यह बात ही मत करना। वे अगर बहत उत्सक भी हों तो तम, जिसे मैंने किया याद भी टालना। कहना कि ले चलेंगे, जब कभी सुविधा होगी। ऐसी जिससे बंधी मेरी प्रीति जल्दी भी क्या है? तुम हजार बहाने करना कि बहुत कठिन है ले कौन तुम अज्ञात वय-कुल-शील मेरे मीत? चलना। मिलाना बड़ा मुश्किल है। तो शायद...। कर्म की बाधा नहीं तुम लोग बड़ी उलटी खोपड़ी के हैं। अगर उनको कहो मिलाना | तुम नहीं प्रवृत्ति से उपरांत बहुत मुश्किल है तो वे तुम्हारे पीछे पड़ेंगे कि मिला दो, एक दफा कब तुम्हारे हित थमा संघर्ष मेरा? तो मिला दो। कि ले चलना बहुत कठिन है। वे तमसे कहेंगे, कि रुका मेरा काम कभी एक दफा तो ले चलो। तुम उनसे कहो कि चलो, ले चलते तुम्हें धारे हृदय में हैं, तो वे हटेंगे। मैं खुले हाथों सदा दूंगा बाह्य का जो देय आदमी का मन बड़े विपरीत ढंग से चलता है। निषेध करो तो . न ही गिरने तक कहूंगा, तनिक ठहरूं निमंत्रण; निमंत्रण दो तो सोचता है, मतलब क्या है? कोई | क्योंकि मेरा चुक गया पाथेय स्वार्थ होगा। कोई छिपी बात होगी। यह आदमी इतना उत्सुक तुम, जिसे मैंने किया याद क्यों है वहां ले जाने में? जेब तो नहीं काट लेगा रास्ते में! कोई जिससे बंधी मेरी प्रीत तरकीब लगा रहा है। कहीं फंसाने ले जा रहा है। कौन तुम अज्ञात वय-कुल-शील मेरे मीत? नहीं, तुम यह कोशिश ही बंद कर दो। इसलिए तो मैं ऐसी | सदगुरु तो बिलकुल अज्ञात है। जो दिखाई पड़ता है, वह थोड़े कोशिश कर रहा हूं कि यहां मुश्किल से ही लोग आ पाएं। देखते ही! जो तुम्हारे देखने के पार रह जाता है वही। जो सुनाई पड़ता 4900 Jan Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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