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यह भी कोई बात हुई ? यह तो बड़ी खतरनाक धारणा हुई इस धारणा का अर्थ तो बड़ी हताशा होगा । तब हमारे हाथ में | कुल इतना ही है कि हम महावीरों की स्तुति करते रहें, स्वयं महावीर न बनें।
इसलिए तुम जब उन्हें सिद्ध पुरुषों की बात कहोगे, वे राजी न होंगे। तुम शायद सोचते हो कि तुम बड़ी सरल-सी बात कह रहे हो कि देखो! कोई सिद्ध पुरुष है, कोई जाग्रत पुरुष है, आओ, सुनो, समझो, बैठो पास; थोड़ा सत्संग करो। चलो थोड़ी सेवा करें। तुम सोचते हो, सीधा-सा निमंत्रण दे रहे हो। यह निमंत्रण इतना सीधा नहीं है। यह निमंत्रण खतरनाक है। क्योंकि वह आदमी अगर आ जाए तो फिर वही न हो सकेगा, जो था । वह अपनी सुरक्षा कर रहा है।
और दूसरी बात ध्यान रखना, दूसरे के बताए कोई कभी आता नहीं। तुम यह चिंता छोड़ो। इसमें समय खराब भी मत करो। जिसको जब आना है, तभी आता है। जिसकी प्यास जब पक जाती है तभी आता है। तुम किसी को खींच-तानकर लाना मत। तुम जितनी खींच-तान करोगे, उतने ही वह सुरक्षा के उपाय करेगा। तुम जितना सिद्ध करने की कोशिश करोगे कि चलो, कोई जाग्रत पुरुष है, वह उतना ही सिद्ध करने की कोशिश करेगा कि नहीं, जाग्रत नहीं है । सब पाखंड है। सब धोखाधड़ी है। सब षड्यंत्र है, जालसाजी है।
तुम यह कोशिश ही मत करो। तुम आ गए, इतना बहुत । तुम बदलो । सारी शक्ति तुम अपनी बदलाहट में लगा दो। तुम्हारी बदलाहट ही शायद, जिन्हें तुम लाना चाहते हो, उन्हें आकर्षित करे तो करे । तुम्हारी आंखों में आ गई नई चमक, तुम्हारे चेहरे पर आ गई नई दीप्ति, तुम्हारे पैरों में आ गया नया संगीत का स्वर, तुममें उतर आया माधुर्य, मार्दव, शायद किसी को बुला लाए तो बुला लाए। तुम्हारे जीवन में अगर थोड़ी मधुरिमा फैल जाए, थोड़ा स्वाद तुम्हारा बदल जाए तो जो तुम्हारे निकट हैं, जिन्हें तुम स्वभावतः चाहते हो आएं, जागें, वे भी मार्ग को पाएं, उनके जीवन में भी फूल खिलें ... ।
तुम्हारी आकांक्षा तो ठीक है, लेकिन जल्दबाजी मत करना । तुम लाने की कोशिश ही मत करना। तुम तो चुपचाप अपने को बदलने में लगे रहो। तुम्हारी बदलाहट जैसे-जैसे सघन होगी वैसे-वैसे वे उत्सुक होंगे। और दूसरा कोई उपाय नहीं है।
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आज लहरों में निमंत्रण
अगर तुम उन्हें मेरे पास लाना चाहते हो तो एक ही उपाय है— तुम्हारे जीवन में किसी तरह मेरी खबर उन्हें मिलनी चाहिए; तुम्हारे शब्दों में नहीं । तुम्हारे कहने से वे न सुनेंगे। तुम्हारे होने को सुनेंगे। तुम्हारे भीतर गूंजने लगे नाद, तो शायद... फिर भी मैं कहता शायद, कोई जरूरी नहीं है। क्योंकि ऐसे बज्र-बधिर लोग हैं कि तुम्हारे भीतर घंटनाद गूंजता रहे, उन्हें कुछ भी सुनाई न पड़ेगा। ऐसे अंधे लोग हैं कि तुम बदल भी जाओ, उन्हें कोई दीप्ति न दिखाई पड़ेगी।
तुम उनकी फिक्र छोड़ो। तुम उनकी चिंता मत करो। | तुम लिए प्रार्थना करो जरूर, लेकिन उन्हें समझाओ मत।
उनके
तुम जब ध्यान करके उठो तो उनके लिए प्रार्थना करो। जब तुम ध्यान करके उठो तब उन पर भी प्रभु की अनुकंपा हो, वे भी सत्य की तरफ उन्मुख हों, उनमें भी जाग आए ऐसी प्रार्थना करो, बस । तुम प्रभु को समझाओ कि उन्हें जगाए। तुम सीधे जगाने मत चले जाना ।
बुद्ध ने अपने भिक्षुओं को कहा है कि हर प्रार्थना, हर ध्यान करुणा पर पूरा होना चाहिए। जो तुम्हें हुआ है वह सारे जगत को हो, ऐसी भावना से ही ध्यान को पूरा करना । जो तुम्हें मिला है। वह सबको मिले, ऐसी भावना से ही ध्यान के बाहर आना ।
इसका परिणाम होगा। तर्क से, विचार से तुम सिद्ध न कर पाओगे। अक्सर तो ऐसा होगा, अगर तुमने तर्क किया तो शायद वे तुम्हें डांवांडोल कर दें, बजाय इसके कि तुम उन्हें समझा पाओ। क्योंकि बात कुछ ऐसी है कि तर्क से समझाई नहीं जा सकती, लेकिन तर्क से खंडित की जा सकती है। तुमने अगर मेरे निकट कुछ पाया तो तुम उसे तर्क से समझा न सकोगे। हां, कोई भी उसे तर्क से खंडित कर सकता है।
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भी
फूल है गुलाब का खिला; तुम कहते हो, परम सुंदर है । कोई सिद्ध कर सकता है कि नहीं है सुंदर । तुम सिद्ध न कर पाओगे कि सुंदर है। सीधी-सी बात, कि गुलाब का सुंदर फूल, तुम सिद्ध कैसे करेगे कि सुंदर है? सौंदर्य की क्या कसौटी है, क्या मापदंड है? क्या आधार है घोषणा का, कि सुंदर है ? दार्शनिक सदियों से चिंतन करते रहे। अब तक तय नहीं कर पाए कि सौंदर्य की परिभाषा क्या है ? किस चीज को सुंदर कहें ? और कोई भी सिद्ध कर सकता है कि सुंदर नहीं है। सिर्फ घोषणा भर कर दे कि नहीं है सुंदर। कहां है सुंदर ? क्या है इसमें
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