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________________ जिन सूत्र भाग : 2 मैं भी हूं। और तो कोई उसे उपाय नहीं दिखाई पड़ता सिद्ध करने जब तुम कुछ विनाश करते हो, तब तुम्हें अपने होने का पता का। कैसे सिद्ध करे कि मैं भी हूं? | चलता है। स्कूल में विद्यार्थी खिड़कियों के कांच फोड़ आते हैं, एक आदमी ने अमरीका में सात हत्याएं की एक घंटे के कालेज में उपद्रव खड़े कर देते हैं। इससे उनको पता चलता है भीतर। अपरिचित, अनजान आदमियों पर गोली दाग दी। उनमें कि हम भी हैं। अपने बल का पता चलता है। कुछ तो ऐसे थे, जिनको उसने कभी देखा ही नहीं था पहले। दो | बल को जानने के दो उपाय हैं: या तो कुछ निर्माण करो, या तो ऐसे थे, जिनको उसने गोली मारते वक्त भी नहीं देखा क्योंकि | कुछ मिटाओ। तीसरा कोई उपाय नहीं है। तो जो व्यक्ति मिटाने वे पीठ किए खड़े थे समुद्र के तट पर, उसने पीछे से गोली मार में बल का अनुभव करता है, वह कृष्ण लेश्या में दबा रह दी। अदालत में जब पूछा गया, ऐसा उसने क्यों किया? क्या जाएगा। सजन में बल का अनुभव करो। कुछ बनाओ। कुछ वह विक्षिप्त है? तो उसने कहा, मैं विक्षिप्त नहीं हूं। मुझे सिद्ध तोड़ो मत। क्योंकि तोड़ना तो कोई भी कर सकता है, पागल कर करने का कोई मौका ही नहीं मिल रहा है कि मैं भी हूं। मैं | सकता है। तोड़ना तो कोई बुद्धिमत्ता की अपेक्षा नहीं रखता। अखबार में पहले पेज पर अपना नाम और अपनी तस्वीर छपी | कुछ बनाओ। एक गीत बनाओ, एक मूर्ति बनाओ, एक वृक्ष देखना चाहता था, वह मैंने देख ली। अब तुम मुझे सूली पर भी लगाओ, पौधा रोपो। जब उस पौधे में फूल आएंगे तब तुम्हें चढ़ा दो, तो मैं तृप्त मरूंगा। मैं ऐसे ही नहीं जा रहा हूं, नाम आत्मवान होने का पता चलेगा। देखी है माली की प्रसन्नता, जब करके जा रहा हूं। उसके फूल खिल जाते हैं? देखा है मूर्तिकार का आनंद, जब लोग कहते हैं बदनाम हुए तो क्या, कुछ नाम तो होगा ही। उसकी मूर्ति बन जाती है? देखा है कवि का प्रफुल्ल भाव, जब तुम्हें अपनी आत्मा का पता कब चलता है? जब तुम किसी के कविता के फल खिल जाते हैं? साथ संघर्ष में जूझ जाते हो। उस संघर्ष की स्थिति में तुम्हारी | कुछ बनाओ। दुनिया में सृजनात्मक लोग बहुत कम हैं। और आत्मा में त्वरा आती है। तुम्हें लगता है, मैं भी हूं। मेरे कारण | हर आदमी ऊर्जा लेकर पैदा हुआ है। तुम्हारी ऊर्जा अगर सृजन कुछ हो रहा है। की तरफ न गई तो विध्वंस की तरफ जाएगी। इसे तुम खयाल कहते हैं अडोल्फ हिटलर कलाविद होना चाहता था। उसने करके देखो। जीवन में चारों तरफ आंख फैलाकर देखो। जो एक कला, चित्रकला सीखने के लिए आवेदन किया था, लेकिन लोग कुछ बनाने में लगे हैं, तुम उन्हें झगड़ालू न पाओगे। तुम विश्वविद्यालय ने उसे स्वीकार न किया। वह जीवन के अंत उन्हें बड़ा विनम्र, उदारमना, सरल, सौम्य, आर्जव से भरे, मार्दव समय तक भी कागजों पर चित्र बनाता रहा। लेकिन वह बड़ा से भरे हुए पाओगे-मृदु, कोमल...जो लोग भी कुछ बनाने में रुष्ट हो गया, जब उसे विश्वविद्यालय ने इंकार कर दिया। लगे हैं। जो लोग भी मिटाने में लगे जाते हैं, तुम उन्हें बड़े मनुष्य बड़ा अदभुत है। वह कुछ सृजन करना चाहता था, | झगड़ालू पाओगे। वे हर चीज पर झगड़ने को और विवाद करने लेकिन किया उसने विनाश। मनोवैज्ञानिक सोचते हैं कि अगर | को तत्पर हैं। उसे कला-विश्वविद्यालय में जगह मिल गई होती तो शायद एक बड़ी अदभुत घटना घटती है। तुम राजनीति के क्षेत्र में दुनिया में दूसरा महायुद्ध न होता। वह अगर सृजन में संलग्न हो देख सकते हो। जो लोग सत्ता में पहुंच जाते हैं, सत्ता में पहुंचते गया होता तो उसकी शक्ति सृजनात्मक हो गई होती। उसने सुंदर ही उनके पास बनाने की ताकत आ जाती है। कुछ बना सकते चित्र बनाये होते, रंग भरे होते, गीत गुनगुनाए होते। वह दुनिया | हैं। अगर उनमें थोड़ी भी बनाने की क्षमता हो तो उनकी ऊर्जा को थोड़ा सुंदर करके छोड़ जाता। वह इतिहास में अपना नाम | सृजनात्मक होने लगती है। | छोड़ना चाहता था। लेकिन जब सृजनात्मक मार्ग न मिला तो ये वे ही लोग हैं, जो सत्ता में जब नहीं थे तो विध्वंसात्मक थे। उसकी सारी ऊर्जा विध्वंसात्मक हो गई। जब इनके हाथ में सत्ता नहीं थी तो हड़ताल, बगावत, षड्यंत्र, तुम खयाल रखना; जब तुम झगड़ालू वृत्ति से भरते हो, तब ट्रेनों को गिराना, लोगों को उभाड़ना, झगड़ाना-झगड़ालू वृत्ति तुम किसी तरह चोर रास्ते से आत्मा का अनुभव करने चले हो। | के लोग थे; ये वे ही लोग हैं। इन्हीं को तुम सत्ता में बिठाल दो, 464 Jal Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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