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________________ यात्रा का प्रारंभ अपने ही घर से पूछे, यह गुलाब के फूल में क्या धरा है? किसलिए ले आए में? क्योंकि प्रेम में स्तुति करने को तुम राजी नहीं। प्रेम में प्रार्थना गुलाब के फूल, क्या प्रेम काफी नहीं है? तो तुम भी चौंकोगे। करने को तुम राजी नहीं। तो फिर क्रोध में गाली भी छोड़ दो! तुम उसे आलिंगन करना चाहो; वह कहे दूर रहो, आलिंगन में नहीं, आदमी जहां है, वहां आदमी पृथ्वी और आकाश का क्या धरा है? क्या प्रेम बिना आलिंगन के नहीं हो सकता? तुम मिलन है; शरीर और आत्मा का मिलन है; स्थूल और सूक्ष्म का उसका हाथ हाथ में लेना चाहो और वह झिड़क दे और कहे, दूर | मिलन है। आदमी जहां है, वहां दो जगतों में एकसाथ खड़ा है। रहो ! इस हाथ में हाथ लेने से पसीना ही पैदा होगा, प्रेम कैसे पैदा | जड़ें जमीन में हैं, फूल आकाश में हैं। दोनों जुड़े हैं। होगा? प्रेम करो, यह फिजूल की बातें क्यों करते हो? तुम्हें पता ये गैरिक वस्त्र तो केवल प्रतीक हैं। लेकिन जिन्होंने भाव से है कैसे प्रेम करोगे फिर? फिर प्रेम का कोई उपाय न रह जाएगा। लिये हैं, उनके जीवन में क्रांति हो जाएगी। मैंने तो निश्चित भाव प्रेम जैसी अपूर्व घटना भी माध्यम चाहती है। नाव चाहती है, से दिये हैं। लेनेवाले पर निर्भर है। यह माला तो बस प्रतीक है। जिस पर सवार हो सके। प्रेम तो बड़ा सूक्ष्म है। कहीं स्थूल में इस माला में कुछ भी धरा नहीं। जड़ें देनी होंगी; नहीं तो प्रेम टिक न पाएगा। परसों एक मित्र पूछते थे—संन्यास उन्होंने लिया, भाववाले आकाश में खिले सुंदरतम फूल भी गहरी भूमि में गड़े होते हैं। व्यक्ति हैं। सरलचित्त हैं—पूछने लगे, इस माला का वैज्ञानिक वे अगर यह तय कर लें कि आकाश में ही रहेंगे, तो खो जाएंगे। | कारण क्या है? वैज्ञानिक कारण माला का हो ही कैसे सकता कमल जल के ऊपर उठा हुआ भी, सरोवर की कीचड़ में दबा है? वैज्ञानिक कारण-और माला का! कोई भी कारण होता है। अगर कमल कहे, क्या सार है कीचड़ में पड़े होने से? वैज्ञानिक नहीं हो सकता माला का-कारण धार्मिक है। कारण कीचड़ कीचड़ है, मैं कमल हूं। तो टूट जाएगा संबंध। कमल आत्मिक है, वैज्ञानिक नहीं है। तो मैंने उनसे कहा, वैज्ञानिक कुम्हलाएगा और मर जाएगा। पूछना हो तो 'लक्ष्मी' से पूछ लेना। वैज्ञानिक कारण? प्रेम का तुमने कभी खयाल किया, किसी ने प्रेम से तुम्हें एक रूमाल कहीं कोई वैज्ञानिक कारण होता? भेंट दे दिया; उस रूमाल का मूल्य फिर नहीं रह जाता, अमूल्य मुल्ला नसरुद्दीन की लड़की के प्रेम में एक युवक पड़ गया। हो जाता है! ऐसे बाजार में चार आने में मिलता है। लेकिन वह आया, उसने मुल्ला को कहा कि आपकी लड़की से मुझे प्रेम तुमसे कोई कहे कि चार आने में दे दो, तो तुम कहोगे, पागल हो हो गया है, मुझे विवाह की आज्ञा दें। मुल्ला ने कहा, पहले सिद्ध गये हो? प्राण चले जाएं, इसे न दे सकूँगा। वह कहेगा, तुम करो, प्रेम का कारण क्या है? उस युवक ने कहा, कारण कुछ पागल या मैं पागल? चार आने में जितने चाहो बाजार में मिलते भी नहीं है, महानुभाव! प्रेम हो गया है। प्रेम में कहीं कारण हैं। दर्जन से लो तो और भी सस्ते मिलते हैं। क्या पागल हो रहे | होता? और जहां कारण हो, वहां प्रेम हो सकता है? कारण हो हो? लेकिन तुम कहते हो, मेरी प्रेयसी की याददाश्त है। या मेरे तो प्रेम हो ही नहीं सकता। कारण हो तो व्यवसाय होता है, धंधा मित्र की याददाश्त है। किसी ने बहुत भाव से दिया है। होता है, सौदा होता है। अकारण होता है प्रेम। छोटे-छोटे प्रतीक हैं। छोटे-छोटे प्रतीकों पर बसा बड़ा तुम्हारा मुझसे प्रेम हो गया है। मेरा तुमसे प्रेम हो गया है। अब आकाश है। प्रतीक को मत देखो, पीछे छिपे आकाश को देखो। कुछ प्रतीक देना जरूरी है। यह माला तो ऐसे समझो जैसे भांवर तुम गये, किसी के चरणों में सिर रखा। क्या सार है? श्रद्धा पड़ गयी। फंसे! यह तो एक तरह का विवाह हुआ। इसका कोई क्या बिना चरणों में सिर रखे नहीं हो सकती? ठीक! किसी पर | कारण नहीं है। यह प्रेम हो गया। इसका कोई बुद्धियुक्त हिसाब तुम्हें क्रोध आ जाता है, तुम क्या करते हो? उठाकर जूता उसके | नहीं है। यह कुछ हृदय की बात हो गयी। सिर पर मार देते हो। तुम क्या कर रहे हो? श्रद्धा के विपरीत। तुमने मेरे हाथ में हाथ डाल दिया; मैंने तुम्हारा हाथ अपने हाथ उसका सिर अपने चरणों में रख रहे हो। क्रोध बिना इसके नहीं में ले लिया। इसकी याददाश्त के लिए तम्हें यह माला दे दी कि हो सकता? क्रोध में जूता उठाने की क्या जरूरत है? जूते और अब तुम इसे याद रखना। अब तुम अकेले नहीं हो, मैं भी हूं। क्रोध का क्या लेना-देना? गाली देने की क्या जरूरत है क्रोध अब तुम जो करो, मुझे भी याद रखकर करना। अब तुम जो भी Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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