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जिन सुत्र भाग 2
वन
यहां चली, कोई कहने लगा वहां चली, तो भीतर याद रखना नहीं सकता भ्रम से। बहुत मुश्किल हो जाता है कि पिया के गांव चली है। क्योंकि इस | इसलिए तो हमने ब्रह्म की परिभाषा में अंतिम बात कही पिया से तो मुलाकात बड़ी नई है। और ये जो लोग कह रहे हैं है-सच्चिदानंद। आनंद आखिरी बात है। सत, चित, यहां चली, वहां चली, इनसे बड़े पुराने संबंध हैं। इनकी भाषा तो | आनंद-आखिरी बात है। जहां से तुम्हें आनंद मिल रहा हो, जानी-मानी है, इस पिया की भाषा तो जानी-मानी नहीं है। फिर दुनिया कुछ भी कहे, तुम फिक्र मत करना। तुम अपने
यह पिया का गांव है भी या नहीं? जिसको दिखाई पड़ने आनंद को ही कसौटी मानना, तो ही पहुंच पाओगे पिया के गांव लगता है, उसको भी शक आता है। जिनको नहीं दिखाई पड़ता | तक। नहीं तो बीच में हजार बाधाएं हैं। सारी दुनिया तुम्हें इस उनका शक तो बिलकुल स्वाभाविक है। जिसको पिया का गांव | तरफ खींचेगी। साफ-साफ दिखाई पड़ने लगता है, उसके मंदिर के कलश धूप और सारी दुनिया का इस तरफ खींचना भी अकारण नहीं है। में चमकते दिखाई पड़ने लगते हैं, उसको भी शक होता है कि जब किसी एक व्यक्ति को पिया का गांव दिखाई पड़ता है तो वह कहीं मैं कल्पना तो नहीं कर रहा? क्योंकि वे कलश दूसरों को | बाकी सारे लागों के लिए चिंता का कारण हो जाता है। अगर वह दिखाए नहीं जा सकते। यह कठिनाई है।
सही है तो हम सब गलत हैं। जो कहता है, मुझे परमात्मा के पति को दिखाई पड़े तो अपनी पत्नी को भी नहीं दिखला | दर्शन हुए, अगर वह सही है तो बाकी इन चार अरब लोगों का सकता। पत्नी कहती है, अगर वे कलश हैं और पिया का गांव है | क्या? अगर बुद्ध सही हैं तो इन चार अरब बुद्धओं का क्या? तो हमें भी तो दिखाई पड़े। पांच पंचों को दिखाई पड़े तो सत्य है। ये गलत होंगे ही। बुद्धओं को यह बात जंचती नहीं। यह पसंद तुमको दिखाई पड़ने से क्या होता है ? तुम कोई कल्पना के जाल | नहीं पड़ती। कौन अपने को बुद्ध मानना चाहता है ? ये चार में पड़ गए हो। तुम्हें कुछ बुद्धि-भ्रम हुआ है। तुम्हारी बुद्धि, अरब भीड़ की तरह इकट्ठे हो जाते हैं। ये कहते हैं बुद्ध को कुछ तुम्हारा विवेक, तुम्हारे तर्कना की क्षमता क्षीण हुई। तुम किस | भ्रम हुआ होगा। सम्मोहन में पड़ गए हो? जो किसी को नहीं दिखाई पड़ता वह | इसलिए तो जीसस को सूली लग जाती है। सुकरात को जहर तुम्हें दिखाई पड़ रहा है?
पिला देते हैं। बुद्ध और महावीर को पत्थर मारे जाते हैं। यह तो जिस व्यक्ति को पिया का गांव दिखाई भी पड़ता है, वह भी अकारण नहीं है, इसके पीछे बड़ा गहरा कारण है। कारण यह है इस जगत में बड़ा अकेला हो जाता है। और यह जगत तो बड़ा | कि अगर तुम सही हो, तो हम गलत हैं। और यह बात मानना लोकतांत्रिक है। यहां तो सत्य का निर्णय भीड़ से होता है। यहां कि हम गलत हैं...और हम ज्यादा हैं, तुम अकेले हो। तुम तो कितने लोग मानते हैं इससे तय होता है कि सत्य है या नहीं! कभी-कभी होते हो। तुम अपवाद-रूप हो, हम नियम हैं।
मोगे, जिस दिन तुम्हें पिया का गांव दिखाई। इसलिए मनोवैज्ञानिक तो पागलों को, बुद्धों को, एक ही गणना पड़ना शुरू होगा। उस दिन तुम इतने अकेले हो जाओगे कि तुम्हें में गिनते हैं। दोनों को एबनार्मल कहते हैं। दोनों सामान्य नहीं हैं, खुद ही संदेह पैदा होना शुरू होगा कि पता नहीं, कहीं कोई भ्रांति | कुछ गड़बड़ हैं। पागल को भी एबनार्मल कहते हैं, बुद्ध को भी, तो नहीं हो रही है? मैं किसी भ्रम का शिकार तो नहीं है? उस | महावीर को भी. कष्ण को भी। सामान्य नहीं हैं।
कुछ चूके, वक्त याद रखना, बड़ा श्रम मांगता है, बड़ी श्रद्धा मांगता है। इधर-उधर हैं। नियम नहीं हैं, अपवाद हैं।
इसे स्मरण रखना। इसे मन में निरंतर दोहराते रहना। इसकी अगर मनोवैज्ञानिकों का बस चले तो वे बुद्धों को भी चिकित्सा बहुत फिकर मत करना कि लोग क्या कहते हैं। एक ही कसौटी | करके ठीक कर देना चाहेंगे। ऐसा हो रहा है। पश्चिम के है-अगर तुम्हें आनंद मिल रहा हो तो तुम फिकर ही मत करना पागलखानों में ऐसे कुछ लोग आज बंद हैं, जो अतीत के दिनों में कि भ्रम है कि सत्य! क्योंकि आनंद लक्ष्य है। मैं तुमसे यह बुद्ध हो गए होते। जिनको बड़ा सम्मान मिलता; कबीर और कहना चाहता हूं कि अगर भ्रम से भी आनंद मिल रहा हो तो तुम दादू और नानक हो गए होते, वे आज पागलखानों में बंद हैं। वह सत्य को फेंक देना कूड़ाघर में, कचरे में। क्योंकि आनंद मिल ही | तो बुद्ध-महावीर ने बड़ा अच्छा किया, जल्दी निकल गए। आज
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