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जिन सूत्र भाग : 2
तरंगें हैं। सागर तो एक है, हम उसकी ही लहरें हैं। एक लहर पर जाकर खड़े हो गए और कहा कि भोजन दो, तो जबर्दस्ती है। वृक्ष बन गई, एक लहर पशु बन गई, एक लहर मनुष्य बन गई, न देना हो उसे तो? इंकार करे तो बेइज्जती होती है, अपमान लेकिन हम सब भीतर जुड़े हैं। हम सब जीवन के ही अंग हैं। होता है। बेमन से दे तो लेने का मजा ही चला गया।
तो महावीर कहते हैं, छठवां कहता है, बैठे। वह श्वेत लेश्या तो महावीर ने बड़ा अनूठा प्रयोग किया। सिर्फ महावीर ने को उपलब्ध व्यक्ति है। उसके भीतर चंद्रमा की चांदनी फैल गई किया पृथ्वी पर। दो-दो महीने, महीने-महीनेभर के उपवास के है। वह होश से भरा व्यक्ति है। वह कहता है, काटने-पीटने की बाद गांव में जाते और अगर न मिलता तो वे प्रसन्नता से वापस जरूरत ही नहीं है। छीनने-झपटने की बात ही गलत है। जहां लौट आते। जीवन मुफ्त मिला है, वहां भोजन न मिलेगा?
___ इसमें कुछ विषाद भी न था, शिकायत भी न थी। वे कहते. तो जीसस ने कहा है अपने शिष्यों को, देखो खेत में लगे हुए | ठीक है। आज भोजन की जरूरत न होगी। जब प्रकृति आज देने लिली के फूलों को; न तो ये श्रम करते हैं, न ये दुकान करते हैं, न | को तैयार नहीं है तो साफ है कि मेरे मन का ही खयाल होगा कि ये बाजार करते। फिर भी कोई अनजान, अपरिचित इनकी सब | भूख लगी है। अगर भूख लगी ही होती तो कहीं न कहीं, कहीं न जरूरतें पूरी कर जाता है। और देखो तो जरा इनके सौंदर्य को। कहीं प्रकृति में कंपन होता। कोई न कोई उपाय बनता। सम्राट सोलोमन भी अपनी सारी सजावट के साथ इतना सुंदर न एक दफा उन्होंने नियम ले लिया कि कोई राजकुमारी लोहे की था, जितने ये खेत के किनारे लगे लिली के फूल हैं। तुम इन जैसे जंजीरों में बंधी...अब राजकुमारी और लोहे की जंजीरों में हो जाओ: जीसस ने अपने शिष्यों से कहा।
बंधी!-निमंत्रण देगी; द्वार पर कोई गाय खड़ी, उसके सींग में महावीर तो इस तरह जीए हैं। महावीर तो जब उन्हें भूख लगती | गुड़ लगा; तो स्वीकार करूंगा। कई दिन आए और गए, पूरा तो गांव में आ जाते। कैसे यह पक्का हो कि मैंने मांगा नहीं? तो | नगर परेशान हो गया। क्योंकि पूरा नगर देख रहा है कि उन्होंने वे सुबह ही जब ध्यान में होते तब निर्णय कर लेते कि आज किसी| कुछ व्रत लिया है, पूरा नहीं हो रहा है। हम भोजन भी नहीं दे पा द्वार के सामने कोई स्त्री अपने बच्चे को कंधे पर लिए खड़ी होगी रहे हैं। लोग रो रहे हैं, पीड़ित हैं, परेशान हैं। वे रोज आते हैं,
और यदि निवेदन करेगी कि आप हमारे घर भोजन कर लें. तो मैं उसी प्रसन्नचित्त-भाव से, उसी आह्लाद से, चक्कर लगाकर गांव भोजन करूंगा। कोई स्त्री अगर कंधे पर बच्चे को लिए खड़ी | का वापस चले जाते हैं। ऐसा कई दिन हुआ। फिर एक दिन वह होगी तो! एक पैर बाहर निकला होगा देहली के, एक पैर भीतर घटना भी घट गई। वह जो बिलकुल अकल्पित मालूम पड़ती है होगा तो!
| कि कभी कैसे घटेगी, वह भी घट गई। ऐसा ध्यान में तय कर लेते, फिर वे गांव में जाते। अगर ऐसी | एक बैलगाड़ी में गुड़ लदा जाता था। और कोई गाय पीछे से कोई युवती बच्चे को लिए हुए एक पैर देहली के बाहर, एक | उस गुड़ को खाने के लिए बढ़ी तो उसके सींग में गुड़ लग गया।
खड़ी हो और निवेदन करे कि हे महामनि। आप कहां जा | वह गाय वहां खड़ी थी गड़ चबाती। सींग में गड़ लगा। और रहे हैं? सौभाग्य हमारा। हमारे घर को धन्य करें, भोजन ग्रहण | | बाप नाराज हो गया था तो अपनी बेटी को उसने हथकड़ियां कर लें। तो वे भोजन ग्रहण कर लेते। अगर ऐसा न होता तो वे | डलवाकर कारागृह में बंद कर दिया था। सींखचों के पार पूरे गांव का चक्कर लगाकर वापस चले आते। कई लोग रास्ते | राजकुमारी लोहे की जंजीरों में पड़ी थी। गाय सींग पर गुड़ लगाए में उनको कहते भी, कि भोजन ग्रहण कर लें, तो भी वे न करते। खड़ी थी। तो महावीर ने भोजन स्वीकार किया। क्योंकि जो उन्होंने स्वयं सुबह बांध लिया था नियम, उससे | महावीर कहते हैं, जब जरूरत होगी, मिलेगा। मांगो मत। अन्यथा नहीं।
| मांगकर व्यर्थ दीन मत बनो। उस नियम का अर्थ था, महावीर कहते कि अगर प्रकृति को इसलिए श्वेत लेश्या का वे कह रहे हैं, छठवें ने कहा, चुप भी देना होगा तो वह नियम पूरा करेगी। अगर नहीं देना होगा तो हम | रहो। शांति से बैठो भी। वृक्ष से फल टपकेंगे। पके फल झपटेंगे नहीं। मांगने में तो झपटना हो जाएगा। किसी के दरवाजे चुनकर क्यों न खाए जाएं?
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