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________________ ही रहा है। तुम झपट्टा मारने में सिर्फ ओछे सिद्ध होते हो। जीवन का कुछ रहस्य ऐसा है कि यहां बिना मांगे... सब मिल ही रहा है । जीवन मिल गया तो अब और क्या चाहिए? और भी मिल जाएगा। जब जीवन बिना मांगे मिल गया... । तुमने कभी मांगा था जीवन ? सोचा इस पर ? कहीं तुम हाथ जोड़कर याचक की तरह खड़े हुए थे कि जीवन दे दो मुझे? जीवन मिल गया। जब जीवन मिल गया तो और क्या है, जो नहीं मिल सकेगा? थोड़ी प्रतीक्षा चाहिए। तो छठे ने कहा, हम बैठ जाएं। पके फल लगे हैं, हवा के झोंके आएंगे। फिर वृक्ष को भी तो दया होगी। फिर वृक्ष भी तो समझेगा कि हम भूखे हैं । फिर वृक्ष भी तो चाहता है कि कोई उसके फलों को चखे और प्रसन्न हो, आनंदित हो । नहीं तो वृक्ष की भी प्रसन्नता कहां है ? कवि के पास गीत हो तो गुनगुनाकर तुम्हें सुनाना चाहता है । तुम ताली बजाओ इसकी प्रतीक्षा करता है। संगीतज्ञ वीणा बजाना चाहता है । तुम्हारी आंखें आह्लाद से भर जाएं तो वह प्रफुल्लित होगा। फूलों की गंध बिखरती है और हवाओं पर सवार हो जाती है, दूर-दूर की यात्रा पर निकल जाती है कि कोई नासापुट प्रतीक्षा करते होंगे। वृक्षों के फल जब पक जाते हैं तो शाखाएं अपने आप नीचे झुक जाती हैं, ताकि कोई राहगीर आए तो शाखाएं बहुत दूर न हों । फिर जब फल पक जाते हैं तो अपने से गिरने लगते हैं। जो पक गया वह अपने से गिर आता है। महावीर यह कह रहे हैं, भरोसा करो, श्रद्धा करो। तुम जिस जीवन से आए हो उसी से वृक्ष भी आया। तुम दोनों जुड़े हो कहीं भीतर गहरे में। तुम्हारी भूख तुम्हारी ही भूख नहीं है, वृक्ष को भी पीड़ा होगी। तुम जरा भूखे होकर इस वृक्ष के नीच बैठ तो जाओ । इस सत्य को भी अब आधुनिक मनोविज्ञान ने बड़े प्रमाण दिए हैं। न्यूयार्क में एक वैज्ञानिक वृक्षों पर प्रयोग कर रहा था - — वृक्षों के संवेगों पर, भावनाओं पर । वह बड़ा हैरान हो गया। पहले किसी ने सोचा भी नहीं था कि वृक्षों में संवेग हो सकते हैं। महावीर के बाद जगदीशचंद्र बसु तक बात ही भूल गई थी। फिर जगदीशचंद्र बसु ने थोड़ी बात उठाई कि वृक्षों में जीवन लेकिन बसु भी धीरे-धीरे विस्मृत हो गए। विज्ञान से यह बात ही Jain Education International 2010_03 छह पथिक और छह लेश्याएं खो गई। इसकी चर्चा ही बंद हो गई। अभी अमरीका में फिर पुनः एक नया उदभव हुआ, आकस्मिक हुआ। दुनिया की बहुत-सी खोजें आकस्मिक हुई हैं। जो वैज्ञानिक काम कर रहा था वह किसी और दृष्टि से काम कर रहा था। लेकिन खोज में उसको यह अनुभव हुआ कि वृक्षों में कुछ संवेदनाएं मालूम होती हैं। तो उसने वृक्षों में महीन तार जोड़े और यंत्र बनाए देखने के लिए, कि वृक्ष भी कुछ अनुभव करते हैं ? तो 'तुम अगर वृक्ष के पास जाओ कुल्हाड़ी लेकर, तो तुम्हें कुल्हाड़ी लेकर आता देखकर वृक्ष कंप जाता है। अगर तुम मारने के विचार से जा रहे हो, वृक्ष को काटने के विचार से जा रहे हो तो बहुत भयभीत हो जाता है। अब तो यंत्र हैं, जो तार से खबर दे देते हैं। नीचे ग्राफ बन जाता है, कि वृक्ष कंप रहा है, घबड़ा रहा है, बहुत बेचैन है, तुम कुल्हाड़ी लेकर आ रहे हो। लेकिन अगर तुम कुल्हाड़ी लेकर जा रहे हो, और काटने का इरादा नहीं है, सिर्फ गुजर रहे हो वहां से तो वृक्ष बिलकुल नहीं कंपता । वृक्ष के भीतर कोई परेशानी नहीं होती । यह तो बड़ी हैरानी की बात है। इसका मतलब यह हुआ कि तुम्हारे भीतर जो काटने का भाव है, वह वृक्ष को संवादित हो जाता है। फिर जिस आदमी ने वृक्ष काटे हैं पहले, वह बिना कुल्हाड़ी के भी निकलता है तो वृक्ष कंप जाता है। क्योंकि उसकी दुष्टता जाहिर है। उसकी दुश्मनी जाहिर है । लेकिन जिस आदमी ने कभी वृक्ष नहीं काटे हैं, पानी दिया है पौधों को, जब वह पास से आता है तो वृक्ष प्रफुल्लता से भर जाता है। उसके भी ग्राफ बन जाते हैं कि कब वह प्रफुल्ल है, कब वह परेशान है। और वैज्ञानिक अदभुत आश्चर्यजनक निष्कर्षों पर पहुंचे हैं कि एक वृक्ष को काटो तो सारे वृक्ष बगीचे के कंप जाते हैं, पीड़ित हो जाते हैं । और एक वृक्ष को पानी दो तो बाकी वृक्ष भी प्रसन्न हो जाते हैं— जैसे एक समुदाय है। इससे भी गहरी बात जो पता चली है, वह यह कि एक वृक्ष के पास बैठकर तुम एक कबूतर को मरोड़कर मार डालो, तो वृक्ष कंप जाता है। जैसे कबूतरों से भी बड़ा जोड़ है, संबंध है। जैसे सारी चीजें जुड़ी हैं, संयुक्त हैं। होना भी ऐसा ही चाहिए, क्योंकि हम एक ही अस्तित्व की For Private & Personal Use Only 427 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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