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________________ - गोशालकः एक अस्वीकृत तीर्थंकर बनते। फिर बीस कैरेट, अठारह कैरेट-कुछ मिलाना पड़ता किए जा सकते हैं। है-तांबा, कुछ और। नहीं तो सोना बहुत नर्म है। जैसे-जैसे लेकिन मैं उनसे कहता हूं, मोक्ष इतना सस्ता नहीं है कि पानी | संप्रदाय बनता है, सोने के आभूषण बनते हैं, वैसे-वैसे अशुद्धि छानने से मिल जाए। मोक्ष इतना सस्ता नहीं है, यह शुभ है। मिलती है। जितना व्यवस्थित संप्रदाय बनता है, उतना ही विकृत नहीं तो जितने लोग पानी छानकर पी रहे हैं, ये मोक्ष में रहेंगे। संप्रदाय हो जाता है। | तुम थोड़ा सोचो। उस मोक्ष में तुम रहना पसंद करोगे, जहां सब जैन संप्रदाय बहुत व्यवस्थित है। छोटा है, लेकिन बहुत पानी छाननेवाले पहुंच गए ? वह बड़ा बेरौनक होगा। वह बड़ा नियोजित है, व्यवस्थित है। एक-एक रेखा साफ है, सीमा पर | उदास होगा। वहां कोई जीवन का उल्लास, आनंद न होगा। बंधी है। द्वार, दरवाजे, आंगन, बागुड़, सब साफ है। जैन | गोशालक बहुत मस्त आदमी था। मस्त फकीर! संप्रदाय गणित जैसा सुस्पष्ट है। और गोशालक जैसे व्यक्ति | नाचता-गाता आदमी था। जैन शास्त्रों में इसलिए भी बड़ा काव्य जैसे हैं-अस्पष्ट, धुंधले, रहस्यपूर्ण। | विरोध है। क्योंकि कभी-कभी ऐसा हो जाता कि गोशालक के फिर हम यहां रास्ता खोज रहे हैं। हम चाहते हैं कोई रास्ता बता | पास महफिल जमी है, नाच रहे लोग। एक गांव में वेश्या ने दे। हमें रास्ता पता नहीं है। गोशालक रास्ते पर मिल जाए तो निमंत्रण दे दिया, और गोशालक वहीं चला गया नाचते हुए। वह कहता है, रास्ता है ही नहीं। क्या खोज रहे हो? इससे हमें अब जैन शास्त्रों में उसका विरोध होना स्वाभाविक है। चैन नहीं होता। हम कहते हैं हटो। हमें रास्ता पूछना है। हम कहते हैं वह मरा-जैन शास्त्र कहते हैं तो एक वेश्या के बेचैन हैं बिना रास्ते के। हम चाहते हैं, जीवन का लक्ष्य क्या है? घर ही टिका हआ था। पता नहीं, यह सच हो या न हो। क्योंकि गोशालक मिल जाए, वह कहता है कोई लक्ष्य है ही नहीं। जैन शास्त्रों की बात मानने का कोई भी कारण नहीं है। मगर यह अलक्ष्य जीवन चल रहा है। कहीं पहुंचना थोड़े ही है! हो भी सकता है। क्योंकि गोशालक जैसे व्यक्ति को पापी में जीवन नृत्य जैसा है, यात्रा जैसा नहीं। इसमें कोई अंतिम और पुण्यात्मा में कोई फर्क नहीं है। गोशालक जैसे व्यक्ति को पड़ाव नहीं है। ही है। हां, बीच में बहुत पड़ाव हैं, वे विश्राम के लिए वेश्या में भी वही परमात्मा नजर आता है-वही शुद्ध, जो हैं। सुबह उठे फिर चल पड़ना है। यह अनंत यात्रा है। पुण्यात्मा में है; कोई भेद नहीं है। मगर इससे हमारे मन में भरोसा नहीं आता। कोई चाहिए, जो भेद ओछी दृष्टियों के हैं। भेद नासमझों के हैं। गोशालक हमें बता दे स्पष्ट कि कहां हम जा रहे हैं? क्यों जा रहे हैं? तो निश्चित अभेद में रहा होगा। परमहंस था। निश्चितता हो जाए, भय मिटे। हिसाब बैठ जाए। तो हम क्या करें और क्या न करें। तो क्या करने से रास्ते पर रहेंगे और क्या | दूसरा प्रश्नः महावीर अशरण का उपदेश देते थे और शिष्य करने से रास्ते से बिछुड़ जाएंगे! भी बनाते थे। क्या ये दोनों बातें परस्पर-विरोधी नहीं हैं? मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, आप कुछ मर्यादा क्यों नहीं देते? साफ-साफ अनुशासन क्यों नहीं देते? आप हमें दिखती विरोधी हैं; हैं नहीं। और इस जगत में जो भी सत्पुरुष ठीक-ठीक बता दें क्या हम करें और क्या हम न करें? बस, हुए हैं, वे हमेशा विरोधाभासी दिखाई पड़ेंगे। जीवन फिर हम निपट लेंगे। मगर आप कुछ कहें तो! साफ-साफ सूत्र विरोधाभासी है। तो जो भी इस जीवन को झलकाएगा इसकी | सचाई में, वह भी विरोधाभासी होगा। वे मुझसे चाहते हैं कि मैं उन्हें आश्वासन दे दूं कि इतनी बातें सिर्फ पंडित विरोधाभासी नहीं होते। ज्ञानी सदा विरोधाभासी तुम पूरी करते रहोगे, पानी छानकर पीओगे तो मोक्ष निश्चित है। होंगे। क्योंकि ज्ञानी छांटता नहीं। वह जिंदगी पर कोई ढांचा नहीं मांसाहार न करोगे, मोक्ष निश्चित है। खेती-बाड़ी न करोगे, रोकता। उसके लिए जिंदगी जैसी है, स्वीकार है। वह सिर्फ मोक्ष निश्चित है। तो फिर वे इतने काम करना शुरू कर दें। ये जिंदगी को झलका देता है। फिर जो भी जिंदगी में है, वह सब काम बंद कर दें। यह कोई बहुत कठिन तो नहीं है। ये काम बंद उसमें झलक जाता है। वह दर्पण का काम करता है। 405 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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