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________________ 398 जिन सूत्र भाग: 2 है। इस उपाय को करते-करते ही एक दिन संकल्प टूटकर गिर जाता है। अहंकार को निखारना पड़ता है; पवित्र करना पड़ता है । एक ऐसी घड़ी आती है पवित्र होते-होते ही, जैसे कपूर उड़ जाता है, ऐसा अहंकार उड़ जाता है। शुद्ध अहंकार कपूर की तरह उड़ जाता है। जैसे तुम रात दीया जलाते हो तो पहले दीये की ज्योति तेल को जलाती है। फिर तेल चुक जाता है तो बाती को जलाती है । फिर बाती भी चुक जाती है, तो फिर ज्योति भी बुझ जाती है । तो | ज्योति ने पहले तेल को जलाया, फिर बाती को जलाया, फिर जब सब जल गया तो खुद भी बच नहीं सकती। इतनी शुद्ध हो गई कि खो जाती है। महावीर के मार्ग पर अहंकार को शुद्ध करने की प्रक्रिया है । शरीर छूटेगा पहले, फिर मन छूटेगा। फिर एक दिन तुम पाओगे अचानक, तेल भी जल गया, बाती भी जल गई, फिर लपट जो रह गई थी, वह कोरे आकाश में खो गई। । शुद्ध हो - होकर अहंकार कपूर की भांति उड़ जाता है। गोशालक के मार्ग पर शुद्ध करने का कोई सवाल ही नहीं है शुद्ध करने की चेष्टा को गोशालक कहता है, व्यर्थ है । जो है ही नहीं, उसे शुद्ध क्या करना? इतना जान लेना काफी है कि नहीं है। अभी घट सकती है बात। तो जैनों को कठिनाई हुई । गोशालक ने बड़ा गहरा विवाद अनुयायियों के लिए खड़ा कर दिया होगा। इसलिए जैन बड़े नाराज हैं। और चूंकि गोशालक के कोई शास्त्र नहीं हैं, इसलिए और सुविधा हो गई। तुम ऐसा ही समझो कि अगर हिंदुओं के सब शास्त्र खो जाएं और कृष्ण के संबंध में सिर्फ जैनों के शास्त्र बचें तो कृष्ण के संबंध में क्या स्थिति बनेगी ? लोग क्या सोचेंगे? लोग सोचेंगे, आदमी महानारकीय रहा होगा, क्योंकि शास्त्र में लिखा है कि सातवें नर्क में गया। अगर बुद्ध के संबंध में बौद्धों के शास्त्र खो जाएं, सिर्फ हिंदुओं के शास्त्र बचें तो उन शास्त्रों से क्या पता चलेगा ? हिंदू शास्त्र कहते हैं कि परमात्मा ने नर्क बनाया। लेकिन सदियां बीत गईं, कोई पाप करे ही नहीं। नर्क कोई जाए ही नहीं। तो नर्क में बैठे थे जो पहरेदार, और व्यवस्थापक, और मैनेजर, वे थक गए। कोई आता ही नहीं! ऊब गए। उन्होंने परमात्मा से प्रार्थना की, यह Jain Education International 2010_03 नर्क बनाया किसलिए ? न कोई पाप करता, न कोई आता। हमें नाहक अटका रखा है। बंद करो यह दुकान। हमें छुट्टी दो या आदमी भेजो । तो परमात्मा ने कहा, . ठीक है घबड़ाओ मत। मैं जल्दी ही बुद्ध के रूप में अवतार लूंगा और लोगों के मन भ्रष्ट करूंगा। फिर उन्होंने बुद्ध की तरह अवतार लिया, लोगों को भ्रष्ट किया। लोग नर्क जाने लगे। अब तो नर्क में ऐसी भीड़ है कि वहां जगह ही नहीं बची। लोग क्यू लगाए खड़े हैं सदियों से। जगह नहीं मिल रही है अंदर जाने के लिए, इतना धक्कम - धुक्का है। यह सब बुद्ध की कृपा से हुआ ! हिंदू यह भी नहीं कह सके कि बुद्ध भगवान नहीं हैं। यह तो बड़ा झूठ होता। इतने बड़े सत्य को झुठलाना संभव न हुआ। तो मान लिया कि भगवान तो हैं, लेकिन आए हैं पाप करवाने, लोगों को भ्रष्ट करने। तो तरकीब समझे? तरकीब यह हुई कि बुद्ध को स्वीकार कर लिया कि हैं भगवान के रूप ही। दसवें अवतार हैं। और साथ में बात भी बता दी कि कोई इनकी मानना मत, नहीं तो नर्क जाओगे, बुद्ध-धर्म का अनुगमन मत करना। यह भगवान की एक शरारत है। यह भगवान की एक चालबाजी है। यह भगवान का एक षड्यंत्र है । हैं तो भगवत-रूप। जैनों ने भी कृष्ण को नर्क भेजा, सातवें नर्क में डाला। लेकिन थोड़ी बेचैनी लगी होगी। क्योंकि इतना प्रतिभाशाली व्यक्ति, इतना महिमावान, ऐसा तेजोद्दीप्त! इसको नर्क में डालने में हाथ कंपा होगा। शास्त्र लिखनेवाले को भी डर लगा होगा। उसको भी लगा होगा कि यह थोड़ी ज्यादती हुई जा रही है। तो शास्त्रकारों ने जैन शास्त्रों में लिखा है कि अगली सृष्टि में, जब यह प्रलय होकर सब समाप्त हो जाएगा, फिर से सृष्टि का निर्माण होगा, कृष्ण पहले जैन तीर्थंकर होंगे। इससे राहत हो गई। इधर चांटा मारा, इधर पुचकार लिया। अगर विरोधी काही शास्त्र बचे तो निर्णय करना मुश्किल है। यही असुविधा है गोशालक के लिए। खुद का कोई शास्त्र नहीं है। खुद कुछ लिखा नहीं है। करने को ही जो नहीं मानता था, वह लिखे क्यों? कुछ बोलाचाला होगा। कुछ दिन तक लोगों को याद रही होगी, फिर बिसर गई । शास्त्रों में जहां उल्लेख है— या तो बौद्ध शास्त्रों में उल्लेख है । लेकिन बौद्ध शास्त्रों में सम्मानपूर्वक उल्लेख है । उसका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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