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________________ SSC-STAGRANED जिन सूत्र भागः 2 ahmmmam दुकान तुम नहीं छोड़ते, बाजार तुम नहीं छोड़ते, धन तुम नहीं सिर था मूल्यवान। ऐसे ही रख देने का न था। सब जांच-परख छोड़ते। सिर्फ शरण आ गए, ध्यान छोड़ते हो? और ध्यान की; इसलिए गीता का जन्म हुआ। तुमने कभी किया नहीं। छोड़ने को भी तुम्हारे पास है नहीं। तो | लोग आ जाते हैं, वे कहते हैं, आपके चरणों में सिर रख दिया, किसको धोखा दे रहे हो? | अब आप सम्हालें। वे उत्तरदायित्व से बच रहे हैं। वे सोचते हैं कि वे बड़ी ऊंची बात कह रहे हैं। वे कह रहे हैं कि | महावीर को यह दिखाई पड़ा कि हजारों लोग धर्म के नाम पर हम आपकी शरण आ गए; अब और क्या करना है? | खुद धोखा खा रहे हैं, दूसरों को धोखा दे रहे हैं। तो महावीर ने अगर यह सच हो तो कृष्ण का सूत्र काम कर जाएगा। लेकिन | बहुत जोर दिया-अशरण भावना। किसी की शरण नहीं जाना यह सौ में निन्यानबे मौकों पर सच होता नहीं। इसलिए कृष्ण का | है। महावीर ने कहा, उत्तरदायित्व तुम्हारा है। पाप तुम्हारे, पुण्य सूत्र तुम्हारे लिए धोखे का कारण बन जाता है। तुम अपने को | तुम्हारे, तुम दूसरे के चरणों में कैसे जा सकते हो? दूसरे से कुछ उस आड़ में छिपा लेते हो। तुम कहते हो, अब कृष्ण के सहारे सीखना हो, सीख लेना। कुछ पूछना हो, पूछ लेना। करना तो हैं। अब वे जहां ले जाएंगे, जाएंगे। तुम्हें होगा। साधना तो तुम्हें होगा। मगर इसमें बेईमानी है। अगर यह पूरा हो तो ठीक। फिर तुम तो महावीर कहते हैं, इसे याद रखना-अशरण भावना। बड़ा दीन हो जाओ, दरिद्र हो जाओ, सड़क पर भीख मांगो, तो भी तुम डर लगता है आदमी को अकेले होने में। बड़ा भय लगता है, प्रसन्न हो। तुम कहोगे, उनकी शरण हैं; जहां ले जाएं। यही असुरक्षा मालूम होती है। दिया, यही जरूरी होगा। गरीबी आवश्यक रही होगी। तुम नाजुक कश्ती, नाजुक चप्पू और इस पर तूफान का जोर शिकायत न करोगे। शरणागति में शिकायत नहीं है। शरणागति पार करेगा दरिया को तू अपनी जान-ए-चार तो देख में सब स्वीकार है। बड़ा डर लगता है। नाजुक कश्ती-नाजुक भी कहना ठीक लेकिन आदमी बड़ा बेईमान है। वह मतलब की जो बातें हैं, नहीं, कागज की कश्ती। अब डूबी, तब डूबी। चलाने के पहले खुद करता है। जिन बातों को वह सोचता है, गैर-मतलब हैं, ही पता है कि डूबेगी। करना चाहता नहीं, उनको वह छोड़ता है। वह कहता है, आपकी नाजुक कश्ती, नाजुक चप्पू और इस पर तूफान का जोर । शरण हैं। मोक्ष अब आप सम्हालो। संसार तो हम सम्हाल रहे और चारों तरफ अंधड़ जीवन के, मत्य के. परिवर्तन के हैं, मोक्ष आप सम्हालो। धन तो हम कमाएंगे, अब ध्यान तो क्षणभंगुरता के। आपके ही हाथ में है। बस, आपके चरणों में सिर रख दिया। नाजुक कश्ती, नाजुक चप्पू और इस पर तूफान का जोर सिर में कोई कीमत है ही नहीं। कचरा भरा है। उसको चरणों पार करेगा दरिया को तू... में रख दिया, सोचते हैं कि बहुत बड़ा काम कर दिया। कुछ हो यह सागर तुझसे होगा पार? तो सिर में! घास-फूस भरा है। वे खेत में झूठे आदमी देखे? ...अपनी जान-ए-चार तो देख? खड़े रहते हैं। बड़ी हांडी लगी रहती है। कुर्ता भी बड़ा पहने रहते | थोड़ी अपनी समागे तो देख। हैं। पशु-पक्षियों को डराने के काम आ जाते हैं। बस वैसा ही इसलिए घबड़ाहट होती है। लेकिन महावीर कहते हैं, कोई सिर है। उसको रख देने से भी क्या होगा? और उपाय ही नहीं है। छोटी कश्ती है तो कश्ती को मजबूत कृष्ण ने कहा था, 'सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।' | करो। चप्पू कमजोर हैं तो नए चप्पू बनाओ। तूफान का जोर है किससे कहा था? जिससे कहा था, उसके पास था कुछ। शरण तो तूफान से लड़ने की हिम्मत जगाओ। में रखने को कुछ था। चरणों में न्योछावर करने को कुछ था। सागर बड़ा है माना, लेकिन अगर तुम होश से चलो तो तुम्हारा अर्जन बड़ा बलशाली व्यक्ति था। और ऐसे शाली व्यक्ति था। और ऐसे ही उसने नहीं रख | होश सागरों से बहत बड़ा है। आकाश बड़ा है माना, लेकिन दिया जल्दी। कि कृष्ण ने कहा और उसने रख दिया, उसने कहा, | जिसके पास आत्मा है, उसके लिए आकाश भी छोटा है। अपने जी हुजूर! ठीक कहते हैं। जो हुकुम ! उसने बड़ी जद्दोजहद की। | को जगाओ। 382 | Jan Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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