SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की शांति । महावीर कहते हैं, मौत को मत भूलना। अनित्य का यही अर्थ है । अनित्य भावना का अर्थ हुआ, मृत्यु को स्मरण रखना। प्रतिपल मृत्यु को स्मरण रखना। मनुष्य की महिमा यही है कि उसे मृत्यु का पता है । मृत्यु के पता से ही धर्म का जन्म हुआ है। मृत्यु का जिसको जितना बोध है, उसके जीवन में धर्म की उतनी प्रगाढ़ता हो जाएगी । इसीलिए तो लोग बुढ़ापे में धार्मिक होने लगते हैं। मौत करीब आने लगती है। पगध्वनि ज्यादा साफ सुनाई पड़ती है । चीजें दूर होने लगती हैं। 'यह भी बीत जाएगा, इसका स्मरण ज्यादा ज्यादा आने लगता है। इसीलिए तो आदमी दुख में परमात्मा को स्मरण करता है । क्योंकि दुख में पता चलता है, यहां पर कुछ भी नहीं है, खोजूं परमात्मा को । सुख में फिर भूल जाता है। मौत करीब आती है तो याद आ जाता है। लेकिन कोई अगर तुम्हें चमत्कार से जवान बना दे. ... I मुल्ला नसरुद्दीन बीमार था, उसके डाक्टर ने कहा, बचना मुश्किल है। तो उसने अपनी पत्नी को कहा, अब डाक्टर को बुलाने की कोई जरूरत नहीं । नाहक फीस खराब करनी । अब तो पुरोहित को बुलाओ। अब तो मंत्र सुना दे कान में। पढ़ दे कुरान । पुरोहित आने लगा। संयोग की बात, मुल्ला मरा नहीं। डाक्टर के डायग्नोसिस में, निदान में कहीं भूल थी। महीनेभर जी गया तो उसने फिर डाक्टर को बुलाया। अब वह स्वस्थ हो गया था, सब ठीक था। उसने डाक्टर से कहा, डाक्टर ने जांच की और उसने कहा, चमत्कार है। तुम बिलकुल ठीक हो गए हो। मैं तो सोचता था, तुम बचोगे | नहीं तीन सप्ताह से ज्यादा। और अब तो ऐसा लगता है, तुम कम से कम दस साल बचोगे । उसने अपनी पत्नी को कहा, अब पुरोहित को बुलाने की कोई जरूरत नहीं। और पुरोहित को जाकर कह दे कि अब दस साल तो मौत का कोई कारण नहीं है। इसलिए दस साल इस तरफ कृपा मत करना। लेकिन नौ साल बाद, तीन सौ चौसठ दिन बीत जाने के बाद अगर जीवित रहो तो आ जाना। एक दिन बचे, तब आ जाना। आदमी बिलकुल मरने के वक्त याद करता। धर्म को टालता । Jain Education International 2010_03 ध्यानाग्नि से कर्म भस्मीभूत लेकिन इसमें सार की बात समझ लेने जैसी है— मौत याद दिलाती धर्म की। लेकिन मौत क्या इस तरह थोड़े ही है कि तुम कहो दस साल बाद होने वाली है तो जब एक दिन बचे, नौ साल तीन सौ चौसठ दिन बीत जाएं, तब तुम आ जाना। मौत तो किसी पल आ सकती है। मौत अभी आ सकती है। मौत कल आ सकती है। हम मौत से घिरे हैं। अनित्य भावना का अर्थ है : मौत हमें घेरे हुए है। हम मौत के हाथ में पड़े ही हैं। हम मौत के जाल में फंसे ही हैं। कब जाल सिकोड़ लिया जाएगा और कब हम हटा लिए जाएंगे, कुछ नहीं है। लेकिन इतना तय है कि यह होगा। अगर तुम थोड़े-से होशपूर्वक सोचो तो जैसे-जैसे मौत साफ होगी, वैसे-वैसे धर्म की तरफ तुम्हारी दिशा, अपने आप तुम्हारा हृदय का कांटा धर्म की दिशा में मुड़ने लगेगा। 'अनित्य, अशरण' – अशरण महावीर का बुनियादी सूत्र है। जैसे कृष्ण का सूत्र है शरणागति | इसलिए मैं कहता हूं, बड़ी विपरीत भाषाएं हैं और फिर भी एक ही तरफ ले जाती हैं। कृष्ण कहते हैं, परमात्मा की शरण गहो । मामेकं शरणं व्रज सर्वधर्मान् परित्यज्य । आ तू मेरी शरण । छोड़ सब धर्म । महावीर कहते हैं, अशरण हो रहो। किसी की शरण भूलकर मत जाना। क्योंकि पर से मुक्त होना है। अकेले हो तुम। कोई दूसरा सहारा नहीं है । सब सहारे धोखे हैं। सहारों के कारण ही अब तक तुम भटके हो । अब सहारों का सहारा छोड़ो। अब तुम बेसहारे हो, इस सत्य को समझो। अपने पैर पर खड़े हो जाओ। कोई दूसरा तुम्हारा कल्याण न कर सकेगा। तुमने ही करना चाहा तो ही कल्याण होनेवाला है। और दूसरे की शरण पर छोड़कर कहीं तुम ऐसा मत करना कि यह सिर्फ धोखाधड़ी हो। ऐसा दूसरे पर टालकर तुम बच रहे हो। अक्सर शरणागति में जानेवाले लोग यही करते हैं। एक मित्र मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, हम तो आपकी शरण आ गए। मैं उनको कहता हूं, कुछ ध्यान करो। वे कहते हैं, अब हमें क्या करना ? हम तो आपकी शरण आ गए। मैं उनसे पूछा कि जब तुम दुकान करते हो, तब तुम मेरी शरण नहीं छोड़ते। तुम यह नहीं कहते, अब क्या दुकान करें! करो बंद दुकान। जब मेरी शरण आ गए, कर दो दुकान बंद। उन्होंने कहा, वह कैसे हो सकता है! For Private & Personal Use Only 381 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy